Religion

जकात कौन खा सकता है ?

गुलरूख जहीन

तकरीबन हर रमजान इस अहम इस्लामी मसले पर अवश्य चर्चा होती है कि जकात का हकदार कौन है, कजात कौन खा सकता है और क्या का पैसा गैर-मुस्लिम पर खर्च किया जा सकता है ?हालांकि, हर साल बहस के बाद मुसलमान इस नतीजे पहुंच जाते हैं कि इसका हकदार कौन है. कौन जकात के पैसे खा सकता है और हिंदू या गैर-मुस्लिम को जकात दिया जा सकता है अथवा नहीं.

कुरान और हदीस में बहुत ही स्पष्ट ढंग से जकात के बारे में जानकारी दी गई है कि इसका हकदार कौन है और जकात का पैसा किसे दिया जा सकता है. इसके आधार पर ही भारत और भारत के बाहर दूसरे देशों में जकात के पैसे पर कई organization अच्छा काम कर रही हैं. भारत का जकात फाउंडेशन तो इस पैसे से गरीब परिवारों से आने वाले मुस्लिम युवाओं को आईपीएस, आईएएस बना रहा है. फाउंडेशन इसके लिए फ्री आवासीय कोचिंग चलाता है. इसके अलावा भी भारत के बहुत सारे अदारे जकात का पैसा लेते हैं और उससे तामीरी काम करते हैं.

हालांकि, जकात इस्लाम में दान का एकमात्र रूप नहीं है. इस्लाम में दान इतना महत्वपूर्ण है कि इसे तीसरा स्तंभ बनाया गया है. जकात के माध्यम से समृद्ध लोग गरीबों का उत्थान कर सकते हैं. परेशान लोगों की मदद कर सकते हैं और जो कठिनाई में हैं उन्हें इससे उबार सकते हैं. जकात का कानून गरीबों के समर्थन और मदद के अधिकार को स्थापित करता है, और उन लोगों को रिहा करता है जिन्हें दास या देनदार के रूप में बंदी बनाया गया है. कहते हैं, यदि जकात का सही इस्तेमाल किया जाए तो इस धन से हर साल दुनिया में बड़ी औद्योगिक क्रांति लाई जा सकती है और विश्व को गरीबी से निजात दिलाया जा सकता है.

अब सवाल उठता है कि कौन लोग जकात के हकदार हैं और जकात का पैसा खा सकते हैं. यानी इस पैसे से घर चला सकते हैं.जकात को लेकर कुरान में जो निर्देश दिए गए हैं और हदीस में इस बारे में इशारा किया गया है उससे पता चलता है कि कुछ खास वर्ग हैं जो इस पैसे से के हकदार हैं. इसलिए जकात देते समय इसकी अवश्य जांच कर लें.

वैसे यहां आपकी सहूलियत के लिए बताया जा रहा है कि आप जकात किसे दे सकते हैं ?

इसका उत्तर जकात योग्य व्यक्तियों या समूहों को देना है और कुरान में अल्लाह ने इसके लिए आठ श्रेणी बनाए हैं. इस श्रेणी में जो भी आता है उसे जकात दिया जा सकता है.वास्तव में धर्मार्थ पैसे केवल गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाना चाहिए. कुरान निर्दिष्ट करता है कि जकात को सटीक रूप से कैसे वितरित किया जाना है.

साथ  इसके भुगतान में लचीलापन जरूरी है. यह जरूरतमंदों के अधिकार की गारंटी देता है. साथ ही धन कैसे संग्रहित किया जाए, धन कैसे सर्वोत्तम तरीके से वितरित किया जाए और समय के साथ विभिन्न संस्कृतियां कैसे बदलती हैं, में बदलाव को समायोजित करता है. कुरान मुसलमानों के लिए विश्वसनीय संस्थानों को अपनी जकात का भुगतान करना भी संभव बनाता है.

उल्लेखनीय है कि अल्लाह ने स्वयं जकात देने वालों और प्रशासकों के लिए जकात वितरण के लिए आठ श्रेणियों की पहचान की है. यह निर्धारण सरकार, विद्वानों यहां तक कि स्वयं पैगंबर पर भी निर्भर नहीं है. बताया गया कि एक बार एक आदमी पैगंबर साहब के पास आया और उनसे जकात मांगी.

पैगंबर मोहम्मद ने कहा-‘‘ अल्लाह ने किसी पैगंबर को भी जकात के-योग्यता, का फैसला करने की अनुमति नहीं दी है, बल्कि उन्होंने स्वयं इस पर शासन किया और आठ मामलों में इसकी अनुमति दी. इसलिए, यदि आप इनमें से किसी से संबंधित हैं, तो मैं निश्चित रूप से आपको आपका अधिकार दूंगा – अबू दाऊद

यह आठ श्रेणी है जिसे आप जकात दे सकते हैं और इस श्रेणी में आने वाले जकात खा सकते हैं.

  • 1 गरीब (अल-फुकाराश्), जिसका अर्थ है कम आय वाला या गरीब.
  • 2 जरूरतमंद (अल-मसाकिन), जिसका अर्थ है कोई व्यक्ति जो कठिनाई में है.
  • 3 जकात प्रशासक
  • 4 जिनके दिलों को मिलाना है, मतलब नए मुसलमान और मुस्लिम समुदाय के दोस्त.
  • 5 जो बंधन में हैं (गुलाम और बंदी).
  • 6 कर्ज में डूबा हुआ.
  • 7 अल्लाह के कारण में.
  • 8 पथिक, अर्थात वे जो फंसे हुए हैं या कम संसाधनों के साथ यात्रा कर रहे हैं.

गैर-मुसलमानों को जकात क्यों नहीं दे सकते ?

अधिकांश विद्वान इस बात से सहमत हैं कि जकात केवल मुसलमानों को ही देनी और प्राप्त करनी है. उपर जो श्रेणी दी गई है, वे इसमें नहीं आते. जब जकात के निर्वहन और वितरण की बात आती है तो यह कई नियमों के अधीन होता है.

उदाहरण के लिए, हनफी न्यायशास्त्र स्कूल के अनुसार, जो बच्चा अमीर है उसे जकात देने की आवश्यकता नहीं है. इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने माता-पिता या बच्चों आदि को जकात नहीं दे सकता. दूसरा उदाहरण यह है कि कोई जकात के पैसे का इस्तेमाल गरीबों को खाना खिलाने के लिए नहीं कर सकता.

जरूरतमंद गैर-मुसलमानों की मदद के लिए तरीके

हालाँकि, ये नियम सदका जैसे दान के अन्य कार्यों तक ही सीमित नहीं हैं, जो किसी को भी दिया जा सकता है. यह कई रूप भी ले सकता है.उदाहरण के लिए, अल्लाह के दूत (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा, यदि कोई मुसलमान पेड़ लगाता है, या खेत बोता है और मनुष्य और जानवर और पक्षी उसमें से खाते हैं, तो यह सब उसका दान है.

इसलिए मुसलमानों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे मुसलमानों और गैर-मुसलमानों (चाहे गरीब हों या नहीं) दोनों की जितना संभव हो उतना सदका खर्च करें.