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अब मिस्र पर किसका नियंत्रण है I Who is in control of Egypt now?

गोबरन मोहम्मद, काहिरा

अब्देल फतह अल-सिसी ने 89.6 प्रतिशत वोट के साथ भारी बहुमत से फिर मिस्र के राष्ट्रपति चुने गए. इनका यह कार्यकाल आगले छह सालों के लिए होगा. राष्ट्रीय चुनाव प्राधिकरण के प्रमुख न्यायाधीश हेजम बदावी के मुताबिक, अल-सिसी चुनाव में 39,702,451 वैध मत हासिल करने में सफल रहे.बताया गया, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने 89.6 प्रतिशत वोट के साथ शानदार चुनावी जीत हासिल कर छह साल का नया कार्यकाल हासिल किया है.बदावी ने कहा कि 67.3 मिलियन से अधिक पंजीकृत मतदाताओं में से 66.8 प्रतिशत ने मतदान किया.राष्ट्रपति चुनाव में देश और विदेश से लगभग 44.8 मिलियन लोगों ने वोट डाले.

प्राधिकरण ने मतदान में सकारात्मक भागीदारी के लिए मिस्र के लोगों की प्रशंसा की.दिसंबर में हुए मतदान में अल-सिसी को तीन उम्मीदवारों से मुकाबला करना पड़ा. विदेशों में मिस्रवासियों ने दिसंबर से मतदान किया. 121 देशों में 137 मिस्र दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों ने भी वोटिंग में हिस्सा लिया. कुल 44,288,361 वैध वोट थे.

तीन उम्मीदवार को पटखनी देकर सिसी बने राष्ट्रपति

राष्ट्रपति के चुनाव में दूसरे नंबरपर रहे हेजेम उमर को 1,986,352 वोट मिले, जो प्राधिकरण द्वारा दर्ज किए गए वैध मतपत्रों का 4.5 प्रतिशत है. इसी तरह फरीद जहरान 1,776,952 मत यानी 4 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.बदावी ने कहा कि अब्देल-सनद यामामा को 822,606 यानी 1.9 प्रतिशत वोट मिला और वह चैथे स्थान पर रहे.एल-सिसी 2014 में पहली बार मिस्र के राष्ट्रपति चुने गए थे. वह 2018 में फिर से चुने गए.

नवीनतम चुनाव एक दशक में तीसरी बार है, जब अल-सिसी ने भारी जीत हासिल की है.उन्हें 2011 के विद्रोह के बाद राजनीतिक हिंसा और अराजकता की अवधि के बाद मिस्र में सार्वजनिक व्यवस्था की वापसी की.

जनरल अब्देल फतह अल-सिसी के बारे जानिए पूरी बात

अब्देल फतह अल-सिसी (जन्म 19 नवंबर, 1954, काहिरा, मिस्र) मिस्र के सैन्य अधिकारी भी हैं. वह जुलाई 2013 में देश की सेना द्वारा राष्ट्रपति को हटाए जाने के बाद मिस्र के वास्तविक नेता बन गए. मोहम्मद मुर्सी को उनके शासन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा. सिसी मई 2014 में राष्ट्रपति चुने गए और मार्च 2018 में दूसरे कार्यकाल के लिए चुने गए. सिसी ने 1977 में मिस्र सैन्य अकादमी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है.

फिर वह पैदल सेना में शालि हो गए. अन्य मिस्र अधिकारियों की तरह उन्होंने भी कभी युद्ध नहीं देखा है. बावजूद इसके वह एक पैदल सेना डिवीजन की कमान संभालने के लिए रैंकों के माध्यम से आगे बढ़े और फिर मिस्र के उत्तरी सैन्य क्षेत्र के कमांडर के रूप में नियुक्त किए गए.

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2010 में उन्हें सैन्य खुफिया निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया. उन्हंेे यह पद मिस्र के राष्ट्रपति के निष्कासन के बाद मिला. जनवरी और फरवरी 2011 में विद्रोह के बाद होस्नी मुबारक, सिसी सशस्त्र बलों की सर्वोच्च परिषद (एससीएएफ) के सबसे कम उम्र के सदस्य थे, जो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों का एक निकाय था. उन्हें अगस्त 2012 में तब रक्षा मंत्री और सशस्त्र बलों के कमांडर के पद पर पदोन्नत किया गया था, जब सेना के साथ सत्ता संघर्ष में उलझे मोरसी एससीएएफ के सबसे वरिष्ठ सदस्यों को सेवानिवृत्ति के लिए मजबूर करने में कामयाब रहे. फिर अल्पज्ञात सिसी को पदोन्नत किया गया.

30 जून की क्रांति

अब्देल फतह अल-सिसी, 2013 की गर्मियों में मिस्र की राजनीति के केंद्र में थे. तमारुद (विद्रोह) नामक एक विरोध आंदोलन उभरा जिसमें मांग की गई कि मोर्सी को हटाया जाए या शीघ्र चुनाव के माध्यम से प्रतिस्थापित किया जाए. 30 जून को, मोरसी के खिलाफ प्रदर्शन इतने बड़े पैमाने पर और तीव्रता तक पहुंच गए थे कि फरवरी 2011 में मुबारक को सत्ता के बाहर होने को मजूबर होना पड़ा. कुछ प्रदर्शनकारियों ने सिसी के लिए इसी तरह से मुर्सी को हटाने के नारे लगाए थे.

1 जुलाई को सिसी ने मुर्सी को 48 घंटों के भीतर संकट का समाधान करने या सैन्य हस्तक्षेप का सामना करने का अल्टीमेटम जारी किया. मोर्सी ने कुछ बातचीत की पेशकश की लेकिन पद छोड़ने या शीघ्र चुनाव के लिए सहमत होने से इनकार कर दिया. इसके बाद 3 जुलाई को सेना ने उन्हें अपदस्थ कर दिया और गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद एडली मंसूर को राष्ट्रपति बनाया गया. मगर तब सिसी, जो रक्षा मंत्री थे, ने सत्ता का संचालन किया. इस हस्तक्षेप की मुस्लिम ब्रदरहुड में मोर्सी के समर्थकों ने निंदा की. सिसी पर स्वतंत्र रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति को पदच्युत करके लोकतंत्र को पलटने का आरोप लगाया गया. सिसी ने प्रतिवाद किया कि सेना ने मिस्र के लोगों की इच्छा पूरी की है.

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मोर्सी के विरोध में होने वाले प्रदर्शनों से बार बार यह मांग उठाई जा रही थी. आरोप लगाया गया कि मोर्सी के नेतृत्व वाला इस्लामवादी-प्रभुत्व वाला प्रशासन देश के हितों का दरकिनार कर मुस्लिम ब्रदरहुड के हितों को प्राथमिकता दे रहा है. इसके चललते मुस्लिम ब्रदरहुड और सेना के बीच टकराव तनावपूर्ण हो गया. मुस्लिम ब्रदरहुड और उसके सहयोगियों ने देश भर में प्रदर्शन किया. इस बीच, मुस्लिम ब्रदरहुड नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. मीडिया चैनल बंद कर दिए गए. 8 जुलाई को, जब मुस्लिम ब्रदरहुड ने एक सैन्य अड्डे के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, तो सुरक्षा बलों ने गोलीबारी की और 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई.

मुस्लिम ब्रदरहुड पर सिसी ने बरसाई गोलियां

मुस्लिम ब्रदरहुड के लगातार विरोध का सामना करते हुए, सिसी ने मिस्रवासियों से हिंसा और आतंकवाद के खिलाफ सेना के समर्थन में रैली करने का आह्वान किया. 26 जुलाई को देश भर में हजारों मिस्रवासी समर्थन दिखाने के लिए सड़कों पर उतरे. समर्थन के इस प्रदर्शन के साथ, सेना ने अपनी कार्रवाई बढ़ाने में बहुत कम समय बर्बाद किया. अगले दिन मुस्लिम ब्रदरहुड समर्थकों की एक रैली के दौरान लगभग 100 लोग मारे गए.

14 अगस्त को, जब मिस्र के सुरक्षा बल काहिरा में रबा अल-अदाविया मस्जिद के बाहर धरने पर बैठे लोगों को तितर-बितर करने के लिए आगे बढ़े तो सैकड़ों लोग मारे गए. अगले कई दिनों के भीतर, कार्रवाई में 1,000 से अधिक लोग मारे गए.

इस दौरान, सिसी को मिस्रवासियों की ओर से महत्वपूर्ण राजनीतिक समर्थन मिला. दो साल की आर्थिक और राजनीतिक उथल-पुथल से थक चुके लोग उनके साथ खड़े नजर आए. सड़कों पर उनके पक्ष में बड़े आकार पोस्टर लगे.सिसी को एक मजबूत नेता के रूप में प्रचारित किया गया. उनसे राष्ट्रपति पद ग्रहण करने का आग्रह करने के लिए कई राजनीतिक समूहों का गठन किया गया. तब सिसी ने स्वयं पद संभालने की इच्छा से इनकार किया, लेकिन मार्च 2014 में वह राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए सेना से इस्तीफा देने को तैयार हो गए.

सिसी की लोकप्रियता देख सामने नहीं आए प्रतिद्वंदी

सिसी की लोकप्रियता के चलते मिस्र की राजनीति में कई प्रमुख हस्तियां होने के बावजूद 2014 में चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. चुनाव मई में हुआ. जैसा कि अपेक्षित थी, सिसी ने आसानी से अपने एकमात्र प्रतिद्वंद्वी वामपंथी हमदीन सबाही को हरा दिया. राष्ट्रपति बनते ही सिसी को इस्लामी आतंकवादियों के नए हमलों का सामना करना पड़ा. मिस्र सरकार के खिलाफ लंबे समय से चल रहे विद्रोह के स्थल सिनाई प्रायद्वीप में, 2014 में एक स्थानीय चरमपंथी समूह द्वारा इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवंत (आईएसआईएल) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा के बाद हमले और घातक हो गए.

मगर सिसी ने इसे कुचलने के लिए सैन्य बल का सहारा लिया. बड़े पैमाने पर अभियान चलाया. सिसी के नेतृत्व में मिस्र की स्थिरता की वापसी ने उन्हें अपने पहले कार्यकाल के दौरान अपनी अनुमोदन रेटिंग बरकरार रखने मदद की. बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, मिस्र की अर्थव्यवस्था में निवेश और वित्तीय सुधार ने आर्थिक सुधार के लिए आशा की किरण जगाई. हालांकि जीवन स्तर में सुधार धीमी गति से हुई. सिसी की सबसे बड़ी परियोजनाओं में स्वेज नहर का विस्तार और काहिरा के पूर्व में नई प्रशासनिक राजधानी (एनएसी) का निर्माण शामिल है.

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इस बीच, सुरक्षा और स्थिरता के लिए शासन के इन प्रयासों को लेकर उन्हंे राजनीतिक विरोध और आलोचनाएं भी मिलती रहीं. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने सरकार पर राजनीतिक विरोधियों और पत्रकारों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग करने का आरोप लगाया है.