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उत्तर प्रदेश के सियासी हल्के से किसने खत्म किया दावत-ए-इफ्तार का कल्चर

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

प्रत्येक वर्ष की तरह बिहार सहित गैर भाजपा शासित प्रदेश में इस रमजान में भी सियासी गलियारों मंें दावत-ए-इफ्तार का दौर चल रहा है. मगर इसके लिए मशहूर उत्तर प्रदेश में यह संस्कृति खत्म हो गई है. कोरोना महामारी के दो-तीन साल को छोड़ दें तो पिछले सात-आठ सालों से रमजान के दिनों में सियासतदानों के बीच से दावत-ए-इफ्तार का कल्चर लगभग खत्म सा हो गया है.

कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति का अहम हिस्सा रही इफ्तार पार्टियां अब पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं. इस साल रमजान का महीना खत्म होने में कुछ ही दिन बचे हैं और पिछले कई सालों की तरह इस साल भी किसी राजनीतिक दल ने इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं किया है.

समाजवादी पार्टी अपने पार्टी मुख्यालय में सबसे बड़ी और बेहतरीन इफ्तार पार्टी आयोजित करने के लिए जानी जाती थी. इसके संस्थापक स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव व्यक्तिगत रूप से मेहमानों से मिलते थे और यह सुनिश्चित करते थे कि सभी को अच्छा खाना मिले. मेज पर रखा मेन्यू भी उतना ही शानदार होता था, लेकिन समाजवादी पार्टी भी कई सालों से इफ्तार पार्टियों के आयोजन से बचती रही है.

समाजवादी पार्टी के सूत्रों का अब दावा है कि अखिलेश यादव इफ्तार पार्टी की मेजबानी करने के लिए अनिच्छुक हैं, क्योंकि ऐसा करना उन्हें हिंदू विरोधी बना देगा. पार्टी के एक विधायक ने कहा, नए विवाद में फंसने के बजाय हम नगरपालिका चुनावों पर ध्यान देंगे.हालांकि अखिलेश अपने नेताओं और विधायकों द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टियों में शामिल होते रहे हैं.

दूसरी ओर, बहुजन समाज पार्टी राज्य में सत्ता में होने पर ही इफ्तार पार्टियों की मेजबानी करने के लिए जानी जाती है. इसकी मेहमानों की सूची हमेशा बहुत सीमित होती है. भाजपा ने अब तक राज्य में केवल एक बार इफ्तार पार्टी आयोजित की थी, तब राजनाथ सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे. अब इस पार्टी के अन्य नेताओं ने ऐसे आयोजनों की मेजबानी करने से पूरी तरह से हाथ खींच लिया है. हद तो यह है कि मुस्लिम त्योहारों में भाजपा के अधिकांश राजनेता बधाई, शुभकामनाएं देने की औपचारिकता पूरी करने की भी जहमत नहीं उठाते.

कांग्रेस भी नियमित रूप से पहले इफ्तार पार्टियों की मेजबानी करती थी. दिल्ली के कई नेता इसमें भाग भी लेते थे. हाल के वर्षों में, कांग्रेस ने भी इस परंपरा से किनाराकशी कर लिया है. अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि उसने मुख्य रूप से धन की कमी के कारण इफ्तार पार्टियों की मेजबानी करना बंद कर दिया है. हालांकि राज्य में इफ्तार पार्टियों की शुरुआत 70 के दशक में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने ही की थी. यह तब एक वार्षिक परंपरा बन गई थी, जो अब टूट चुकी है.