ऐम्फिबीअस साइकिल का अविष्कार किसने किया I Who invented amphibious cycle?
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मुस्लिम नाउ विशेष
‘‘नाव का इंतजार मुझे गंवरा न था, मुझे मेरे प्यार से मिलना ही था, मेरी बेकरारी ने मुझे अविष्कारी बना दिया,पर प्यार को भी अविष्कार का सहारा लेना पड़ा,अविष्कार ही मेरी नूरजहां का नूर है,नई खोज ही मेरी जिंदगी का जनून है.’’ यह कहना है उस शख्स का जिसने पानी पर ही साइकिल दौड़ा दी थी. बाद में बिहार का यह शख्स अविष्कारक घोषित किया गया. जी, हां हम बात कर रहे हैं बिहार प्रदेश के मोतिहारी जिले के मोहम्मद सैदुल्लाह की. अपने इनोवेशन के लिए पिछले कुछ वर्षों में उन्हें न केवल कई पुरस्कार और ट्रॉफियां मिलीं, विदेशी मीडिया में भी छाए रहे. यहां तक कि डिकवरी चैनल उन्हें और उनके अविष्कार पर एक विशेष शो बना चुका है.
मोतिहारी जिले के मोहम्मद सैदुल्लाह के अविष्कार के पीछे एक लंबी कहानी है.कहते हैं, 1975 में उनका पैतृक गांव जटवा-जनेरवा बाढ़ के पानी में पूरी तरह डूब गया. हर साल बरसात में इलाके की यही समस्या थी. तेज बारिश के बाद इलाका बाढ़ के पानी में डूब जाता था. बताते हैं कि 1975 की बाढ़ ज्यादा खतरनाक थी, इसलिए उन्हांेने एक स्थानीय नाविक से उन्हें बाढ़ से निकालकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाने की गुहार लगाई.
गांव वालों ने बताया कि जब नाविक ने उन्हंे बिना पैसे के अपनी नाव में बैठने देने मना कर दिया, यह बात युवा सैदुल्लाह को इतनी चुभ गई कि उन्हांेने बाढ़ के पानी से निपटने के तरीकों की खोज शुरू कर दी.
सैदुल्लाह ने तीन दिन में बना दी ऐम्फिबीअस साइकिल
आश्यकता ही अविष्कार की जननी है. समस्या का हल ढूंढने की शिद्दत ने मोहम्मद सैदुल्लाह को अविष्कारक बना दिया. उन्हांेने केवल तीन दिन में पानी पर चलने वाली एक उभयचर साइकिल यानी ऐम्फिबीअस साइकिल बना डाली. इसकी मदद से बिना किसी परेशनी के वह बाढ़ के पानी में आ जा सकते थे.
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उन्होंने पारंपरिक साइकिल को पानी पर चलने के दौरान सहारा देने के लिए चार आयताकार एयर फ्लोट्स जोड़कर संशोधित किया. पिछले पहिए की तीलियों से दो पंखे के ब्लेड जुड़े, जो इसे पानी और जमीन दोनों पर चलने में सक्षम बनाते थे.ब्लेडों को इस तरह से व्यवस्थित किया गया था कि साइकिल को विपरीत दिशा में भी चलाया जा सके.
बाद में सैदुल्लाह जब अपने अविष्कार में बैठकर बिहार की राजधानी पटना में गंगा नदी पार की तो जिसने यह कारनामा देखा स्तब्ध रह गया. उन्होंने इसका तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई के समक्ष भी प्रदर्शन किया.
एपीजे अब्दुल कलाम ने की उनकी तारीफ
उनका सितारा तब और चमका जब जनवरी 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ) का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्रदान किया. उन्हांेने इनकी तारीफ भी की .उसी वर्ष उन्हें प्रतिष्ठित वॉल स्ट्रीट जर्नल एशियन इनोवेशन अवार्ड्स के लिए 12 फाइनलिस्टों में चुना गया. कहते हैं,सैदुल्लाह अपने पोते-पोतियों को अक्सर अपने अविष्कार ऐम्फिबीअस साइकिल की सवारी करवाते थे.डिस्कवरी चैनल के ‘बियॉन्ड टुमॉरो’ कार्यक्रम मंे उनका प्रोफाइल दिखाया गया है. कहते हैं एक बार एक कंपनी ने उनकी ऐम्फिबीअस साइकिल पेटेंट कराने के लिए उनसे ले ली, बाद में सैदुल्लाह को न पेटेंट मिला और न ही साइकिल.
मोहम्मद सैदुल्लाह गरीबी से निपटने को बेचते शहद
मोहम्मद सैदुल्लाह निहायत गरीब परिवार से आते थे. जीविका चलाने के लिए उन्हें हर दिन अपनी साइकिल से लगभग 30 किलोमीटर का चक्कर लगाकर शहद बेचना पड़ता था. उनके परिवार में 16 लोग थे जिनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी मोहम्मद सैदुल्लाह की थी. शहद बेचकर हर महीने वह लगभग 1,500 रुपये कमा लेते थे. स्थिति ज्याद खराब होने पर उन्हें पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी के मठिया डीह इलाके में सड़क के किनारे बना अपना आधा कच्चा, आधा कंक्रीट के घर का एक हिस्सा बेच दिया. तब वो इस कदर परेशान हो गए थे कि उन्हें उनके अविष्कार के लिए जो भी पुरस्कार देना चाहता, उससे वह कहते, ‘‘अगर आप किसी को बर्बाद करना चाहते हैं तो उसे पुरस्कार दीजिए.’’
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हालाकि इसी तंगहाली मंे भी सैदुल्लाह ने उभयचर साइकिल के बाद उभयचर रिक्शा का आविष्कार किया, जिसे उन्होंने पास के तालाब में बीबीसी टीम के सामने प्रदर्शित किया. सैदुल्लाह ने बीबीसी से बातचीत में कहा,इस पर, मैं अपने पोते-पोतियों को पानी में आनंदमय सवारी पर ले जा सकता हूं.’’वह कहते हैं, कंपनी ने मेरे साथ जो किया उससे वह आहत हैं.’’ जब उनसे कोई पूछता कि आपके अन्वेषण से कितने लोगों को लाभ पहुंचा तो उनके चेहरे पर दर्द बढ़ जाता था.
हालांकि कंपनी के अनिल गुप्ता का कहना है कि सैदुल्लाह की उभयचर साइकिल को लेकर जांच चल रही है.हमारे सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, कुछ कारणों से हम उनकी साइकिल के लिए कोई उद्यमिता उत्पन्न करने में विफल रहे. हमने उन्हें एक निश्चित राशि की इनोवेशन फेलोशिप दी है और हम भविष्य में भी उनका समर्थन करने के लिए तैयार है.बिहार राज्य के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी अजय कुमार भी बीबीसी से बातचीत में मोहम्मद सैदुल्लाह की मदद की बातचीत कर चुके हैं.
मोहम्मद सैदुल्लाह के बेटे, मोहम्मद शकीलुरहमान के अनुसार, परिवार हमेशा गरीब नहीं था.सैदुल्लाह को अपने पिता से कई एकड़ जमीन, बगीचे, हाथी और एक बड़ा घर विरासत में मिला था. मगर ग्रामीण वैज्ञानिक ने अपने आविष्कारों को आगे बढ़ाने के लिए अपनी सारी संपत्ति बेच डाली.
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उभयचर साइकिल के बाद टेबल फैन
उनके बेटे ने बताया कि उनके पिता ने उभयचर साइकिल के बाद, कुंजी-संचालित टेबल फैन विकसित किया जो दो घंटे तक बिना रुके चल सकता है. इसके अलावा एक मिनी-वॉटर पंप का अविष्कार किया जो बिना ईंधन के चल सकता है. इसी तरह एक मिनी-ट्रैक्टर का निर्माण किया जो केवल पांच लीटर डीजल पर दो घंटे तक चल सकता है.सैदुल्लाह ने अपने सभी आविष्कारों का नाम अपनी पत्नी नूर के नाम पर रखा है.
वह एक हेलीकॉप्टर भी बना चाहते थे, जिसपर 62,500 डॉलर का खर्च आने वाला था और वह वायु से चलता, पर धन की किल्लत की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाए. उनकी प्रयोगशाला में हाथ से बनी खराद मशीनों और लंबे जंग लगे लोहे के रैक पर अनगिनत जंग लगे नट-बोल्ट हमेशा भरे रहते थे. यह उनकी पसंदीदा जगह थी. वह यह भी कहा करते थे कि यदि रहने को घर नहीं होगा तो चलने वाला तीन मंजिला फोल्डिंग खाट बनाएंगे और अपने परिवार को उसमें ही सड़क किनारे खुली सरकारी जमीन पर पार्क रखेंगे. उनका कहना था कि वो अपने अपने नवाचारों के लिए अपने रोजमर्रा के अनुभवों से प्रेरणा लेते हंै.
मोहम्मद सैदुल्लाह का प्रोफाइल
बिहार के मोतिहारी जिले के जटवा-जेनेवा (पूर्वी चंपारण) नामक एक छोटे से गांव में पले-बढ़े मोहम्मद सैदुल्लाहके पिता शेख इदरीस एक किसान और आजादी के समय कांग्रेस के ग्राम नेता थे. सैदुल्लाह ने दसवीं तक की पढ़ाई गजपुरा के रामसिंह चटुआनी में की, लेकिन निजी कारणों से अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके. उन्होंने 1960 में नूरजहां से शादी की और उनके तीन बच्चे हैं, दो बेटियां और एक बेटा. वह एक कट्टर मुसलमान थे.उन्हें केवल अल्लाह पर भरोसा था. वह बहुत दयालु व्यक्ति थे और अक्सर वित्तीय कठिनाइयों में रहते थे.
अपनी पत्नी के प्रति उनका प्रेम इतना स्पष्ट था कि उनके हर आविष्कार का नाम उनके नाम पर रखा. इसके आधार अपने अवष्किार का नाम नूर साइकिल, नूर राहत बिजली घर, नूर वाटर पंप आदि रखा. बाद में मो. सैदुल्लाह अपनी बेटियों के साथ पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) के मठिया डीह गांव में रहने लगे थे. दुर्भाग्य से नवप्रवर्तन के प्रति उनके प्रेम की व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़ी. उनका बेटा उनसे अलग हो गया. वह अक्सर कहा करते थे,“एक आविष्कारक का दिमाग स्वतंत्र होना चाहिए, शर्तों से बंधा नहीं.” उन्होंने एक जादुई पेंटिंग भी डिजाइन की थी, जिसमें लाल बहादुर शास्त्री, पंडित नेहरू जैसे प्रमुख नेताओं की तस्वीर दिखाई पड़ती थी.