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मुस्लिम क्यों और कैसे पढ़ते हैं नमाज ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

दिल्ली-एनसीआर में नमाज पढ़ने के सवाल पर रार मचा है. देखा-देखी ऐसी आवाज बिहार के भाजपा नेताओं ने भी उठानी शुरू कर दी है. हद यह कि नए आदेश के बहाने हरियाणा सरकार ने गुरूग्राम में शुक्रवार को खुले में नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसी तरह नोएडा पुलिस ने भी शहर के सेक्टर -58 क्षेत्र में ऐसी व्यवस्था कर दी है कि  बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुस्लिम कर्मचारी शुक्रवार को खुले में नमाज अदा नहीं कर सकें. इसके लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नोटिस भेजा गया है.नोटिस में कंपनियों को चेतावनी दी गई है कि उनके कर्मचारी आदेश का उल्लंघन करते हैं तो इसका उत्तरदायी उन्हें ठहराया जाएगा.

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बता दूं कि हरियाणा के गुरूग्राम में हिंदुत्व समूह मुसलमानों को खुली जगहों पर जुमे की नमाज अदा करने से रोकने के लिए तरह-तरह के तिकड़म आजमाते रहे हंै. नमाज के दौरान कभी नारेबाजी की जाती तो कभी नमाज पढ़ने वाली जगह पर पूजा-पाठ कर इसमें व्यवधान डाला जाता. एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, दो साल पहले गुरुग्राम में 80 जगहों पर खुले में जुमे की नमाज अदा की जाती थी. हिंदूवादी संगठनों के हंगामे के बाद ऐसी जगहों की संख्या पहले घटाकर 32 की गई. फिर 18 कर दी गई. हद यह कि इस मामले को सुलझाने की बजाए हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर सरकार ने मनमाना आदेश जारी कर यह कहते हुए खुले में नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी कि जब तक नए स्थान का चयन नहीं होता, खुले में नमाज आदा नहीं होने दी जाएगी. ऐसे आदेश जारी करते समय हरियाणा सरकार मुसलमनों की उन मांगों को खान गई जिसमें कहा गया था कि अतिक्रमण हटाकर वक्फ की जमीन उन्हें नमाज पढ़ने के लिए अलाट की जाए तथा सेक्टरों मंे दूसरे धर्मस्थलों की तरह मस्जिदों के निर्माण के लिए जमीन आवंटित की जाए. फिलहाल हरियाणा सरकार के आदेश के विरोध में कुछ लोग अदालत पहुंच गए हैं.

 क्या है नमाज ?

नमाज मुसलमानों के लिए अनिवार्य है. मुस्लिम समुदाय इसे दिन में पांच बार अदा करते हैं. नमाज अदा करने का समय सुबह, दोपहर, शाम, सूर्यास्त के करीब और देर शाम का है. प्रत्येक नमाज पांच से 10 मिनट तक चलती है. कुल मिलाकर नमाज एक दिन में लगभग 30 मिनट तक पढ़ी जाती है. नमाज के दौरान कई खास तरह के पोस्चर बनाए जाते हैं, जिसका शारीरिक लाभ भी है. कुछ लोग इसे योग से जोड़ कर देखते हैं.

बहरहाल, नमाज अदा करते समय मुसलमान अपना मुंह मक्का शहर की ओर रखते हैं. इस दिशा को किबला कहा जाता है.नमाज इस्लाम के पांच अनिवार्य स्तंभों में से एक है. अन्य चार में ईश्वर की एकता में विश्वास, दान करना, रमजान के इस्लामी महीने में रोजे रखना और जीवन में एक बार हज (मक्का) करना शामिल है.

प्रसिद्ध इतिहासकार राणा सफवी ने बताया, ‘‘नमाज के माध्यम से, एक मुसलमान अल्लाह के सामने खड़ा होता है. अपनी उपस्थित दर्ज कराता है. खुद को अल्लाह की इच्छा के अधीन करता है.‘‘ इस्लाम अल्लाह की इच्छा को प्रस्तुत करने के बारे में है.नमाज एक ऐसा तरीका है जब एक मुसलमान खुद को अल्लाह के सबसे करीब मानता है.‘‘

कुरान के मुताबिक, नमाज बाथरूम और कब्र को छोड़कर किसी भी साफ जगह पढ़ी जा सकती है. मस्जिद का प्राथमिक उद्देश्य एक ऐसी जगह के रूप में सेवा करना है जहां मुसलमान नमाज के लिए एक साथ आ सकें. एक साथ नमाज पढ़ने को इस्लाम में खास महत्व दिया गया है.

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महिलाएं मस्जिद में पढ़ सकती हैं नमाज ?

मस्जिद में महिलाएं नमाज नहीं पढ़ सकतीं, यह एक मिथक है. इस्लाम पुरुषों और महिलाओं दोनों को एक स्थान पर नमाज अदा करने की इजाजत देता है. हालांकि शर्त यह है कि महिलाएं नमाज के दौरान अलग-अलग सफों या पंक्तियों में नमाज अदा करें.

मस्जिद में नमाज अदा करने वाली महिलाओं का सबसे बड़ा उदाहरण है जब वे हज के लिए जाती हैं जो मुसलमान के पांच स्तंभों में से एक है. दिल्ली के मौलवी मोहम्मद इरफान ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद की मस्जिद नबवी में पुरुष और महिलाएं नमाज अदा करते हैं. मस्जिद नबवी में उनके बीच कोई अलगाव नहीं है, जबकि दुनिया भर की अन्य मस्जिदों में महिलाएं अलग-अलग बाड़ों में प्रार्थना करती है.‘‘दिल्ली की जामा मस्जिद में भी आपको महिलाएं अलग पंक्तियांे में नमाज पढ़ती दिख जाएंगी.

शुक्रवार की नमाज का क्या है महत्व ?

इस तथ्य के अलावा कि कुरान विशेष रूप से नमाज के बारे में ‘‘सभा रूप‘‘ में उल्लेख करता है. दोपहर में शुक्रवार की नमाज सुन्नत या पैगंबर मुहम्मद के जीवन का एक हिस्सा है. यह सबसे लंबी नमाज है, जिसमें अकेले लगभग 30 मिनट लगते हैं.

शुक्रवार को सप्ताह का शुभ दिन माना जाता है. यहां तक कि वे मुसलमान भी जो नियमित रूप से नमाज नहीं पढ़ते, वे मस्जिदों में नमाज में शामिल होने या किसी खुली सभा में भाग लेने की कोशिश करते हैं.

धार्मिक विद्वानों का कहना है कि ‘‘सभा‘‘ मुस्लिम प्रार्थनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया. मध्यकाल में भाईचारे पर बहुत जोर दिया जाता था. इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो गुलामी और नस्लवाद के खिलाफ खड़ा रहा है. सफवी ने कहा, इस्लाम का मूल संदेश सार्वभौमिक भाईचारा है. एक मंडली में खड़े होने से, स्थिति, वर्ग और पद के अंतर मिट जाते हैं. सामूहिक नमाज भाईचारे को मजबूत करने का एक तरीका है. सफवी अपनी बात को पुष्ट करने के लिए पाकिस्तानी कवि और विद्वान अल्लामा इकबाल की कविता ‘शिकवा’ का हवाला देते हुए कहते हैं-एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद-ओ-अयाज, न कोई बंदा रहा न बंदानवाज. महमूद राजा और अयाज गुलाम को कहते हैं. यानी नमाज पढ़ते समय एक ही पंक्ति में राजा और रंक खड़े होते हैं.

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ईद में सामूहिक नमाज क्यों ?

वर्ष में दो ईद त्योहारों पर सामूहिक नमाज पढ़ी जाती है. इन दो मौकों पर नमाज के बाद मुसलमान एक-दूसरे को गले लगाते नजर आते हैं. सफवी ने कहा कि हर जुमे की नमाज के बाद मुसलमान एक दूसरे को जुम्मा की मुबारकबाद देते हैं.डिजिटल युग में जब लोग सामाजिक रूप से अलग-थलग होते जा रहे हैं, कुछ मुसलमानों का कहना है कि नमाज के जरिए एक साथ आने से उन्हें एक-दूसरे को करीब से समझने का मौका मिलता है.नियमित रूप से नमाज अदा करने वाले अब्दुल राशिद ने कहा कि सामूहिक नमाज मजबूत सामाजिक बंधन बनाने में मदद करती हैं.

दिल्ली के एक व्यवसायी राशिद ने कहा, ‘‘अगर हम देखते हैं कि कोई मस्जिद से अनुपस्थित है, तो हम उससे अगले दिन पूछते हैं कि वह ठीक है या नहीं ?‘‘ मस्जिद में एक साथ आना उस समाज की मदद करने का एक तरीका है जिसमें आप रह रहे हैं. शुक्रवार के उपदेश सामाजिक समस्याओं पर चर्चा करने के बारे में होते हैं.‘‘ इस खास उपदेश को खुतबा कहा जाता है.

1994 के इस्माइल फारूकी मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी थी कि मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं. नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है. यहां तक कि खुले इलाकों में भी. कोर्ट की इस टिप्पणी से सवालिया निशान खड़े हो जाते हैं ? पहला तो यही कि मुसलमानों को कहां नमाज पढ़नी चाहिए ?

सफवी का तर्क है कि खुले में नमाज बंद कराना है तो ‘‘पर्याप्त मस्जिद बनानी चाहिए.‘‘ अधिकांश ऐतिहासिक मस्जिदें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीन हैं, इसलिए कोई वहां नमाज नहीं पढ़ सकता. खुले क्षेत्रों में नमाज पढ़ने वाले मुख्य रूप से श्रमिक या मजदूर होते हैं.अगर इस समस्या को दूर करना है तो इसका समाधान यही है कि मुसलमानों के लिए नमाज अदा करने के लिए पर्याप्त संख्या में मस्जिदें बनाई जाएं.