Politics

दिलीप मंडल को मरोड़, हैदराबाद से मुसलमान सांसद क्यों चुने जाते हैं ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, हैदराबाद

चुनाव के मौसम में डॉक्टर  भीमराव अंबेडकर के एक नए ठेकेदार पैदा हो गए हैं, वह हैं दिलीप मंडल. इनके ट्विट को देखकर साफ पता चलता है कि यह शख्स मुस्लिम विरोधी है और एक खास एजेंडे पर काम कर रहा है. कई पत्र-पत्रिकाओं में संपादक के पद पर रहने वाला यह शख्स बीजेपी की तरह बात तो पसमांदा के उत्थान की करता है, पर मुसलमानों को आरक्षण देने का धुर विरोधी है. इनदिनों नरेंद्र मोदी और बीजेपी के दूसरे नेता भी यही कर रहे हैं.

ALSO READ

क्या दिलीप मंडल अंबेडकर के नए ‘ठेकेदार’ है ?

दिलीप मंडल का यू-टर्न, आखिर क्या है वजह ?

अब दिलीप मंडल ने सवाल उठाए हैं कि हैदराबाद में 40 साल से मुसलमान ही क्यों सांसद चुने जाते हैं ?यही सवाल तो एक खास समुदाय को सर्वाधिक टिकट देने वाली सियासी पार्टियों से भी पूछा जा सकता है. यह भी पूछा जा सकता है कि जहां से सालांे-साल सियासी दल एक खास समुदाय के व्यक्ति को उम्मीदवार बना रहे हैं, कभी ऐसी सीटों पर मुसलमानों को क्यों नहीं खड़ा करते  ?

दिलीप मंडल ने आरक्षण के नाम पर एक खास वर्ग को सीटें आरक्षित करने पर भी कभी सवाल नहीं उठाए. कभी ऐसे सीटों का आरक्षण करने की बात नहीं करते, क्यों कि उन्हें तो आरक्षण का पूरा लाभ मिलना चाहिए, पर दूसरे समुदाय को आरक्षण देने की बात आते ही ऐसे लोगों को थोथे तर्कों की उल्टी होने लगती है.

दिलीप मंडल कहने तो वरिष्ठ पत्रकार हैं, पर इतना असभ्य है यह शख्स कि किसी के लिए सार्वजनिक प्लेट फाॅम पर ‘गधा’ जैसे शब्द का इस्तेमाल कर सकता है.

@UFbySamdishh   ने अभी एआईएमआईएम के सदर ओवैसी का एक इंटरव्यू लिया. हो सकता है कि इसमें कही गई बात किसी को नागंवार लगे या उसके विचार के अनुरूप न हो, पर इसके लिए आप किसी को ‘गधा’ नहीं
कह सकते. इस इंटरव्यू पर सवाल उठाते हुए दिलीप मंडल ने एक्स पर लिखा –

गधा है, कोई स्टडी नहीं है. पलटकर कुछ पूछ ही नहीं पा रहा है. ये पूछना चाहिएः-

  1. 40 साल से हैदराबाद में कोई गैर-मुस्लिम सांसद नहीं बना. थोड़ा सेक्युलरिज्म आप लोग भी तो करो.
  2. ये क्या कि मुसलमान ज्यादा हैं तो मुसलमान सांसद ही चुनेंगे.
  3. केरल के मंजेरी-मलप्पुरम से आजादी के बाद कभी गैर-मुस्लिम सांसद नहीं बना. कई सीटें ऐसी हैं. क्यों?
  4. 1976 में जब भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता या सेक्युलरिज्म जोड़ा गया, तो जम्मू-कश्मीर में ये लागू क्यों नहीं हुआ.

भाईचारा वैसा ही अच्छा जिसमें सभी भाई हों और कोई ‘चारा’ न बने.’’

अब दिलीप मंडल से इन सवाल के आधार पर कोई  पूछे कि गोदी मीडिया के एंकर जब एक खास पार्टी के सर्वशीर्ष नेता से थोथे और भोथरे सवाल करते हैं, तब आपका ज्ञान कहां सो जाता है. ‘गधा’ से संबोधित करते हुए ऐसे एंकरों को कुछ सुझाव क्यों नहीं देते. रही बात मुसलमान सांसदों की तो उनके लिए यह सवाल क्यों नहीं उठाते जहां से सालों साल एक खास कौम के लोगों को ही टिकट दिया जा रहा है ? सारा सेक्युलरिज्म का ज्ञान मुसलमानों के लिए ही क्यों ?