Muslim World

हमने आंदोलन करना क्यों छोड़ दिया, मुस्लिम रहनुमाओं के सोशल मीडिया तक सीमित रहने की वजह ?

मुस्लिम नाउ संपादकीय

इस लेखक की उम्र सत्तर साल के उपर है. बचपन से आज तक छोटे-बड़े न जाने कितने आंदोलन देखे हैं. उन्हीं आंदोलनों से सरकारों के होश ठिकाने होते देखा और मांगें मनवाते हुए भी. आंदोलनों से ही हमें आजादी मिली. इसमें से अधिकांश अहिंसक आंदोलन रहे. धरना,प्रदर्शन, घेराव, ज्ञापन देकर मसला सुलझाया गया. राम मंदिर भी आंदोलन से निकला प्रतिफल है. आजादी के आंदोलन हों या जयप्रकाश आंदोलन, हमने ऐसे कई आंदोलनों मंे मुस्लिम रहनुमाओं को भी शाना-बशाना आगे बढ़ते देखा है. संघर्ष की रहनुमाई करते देखी है.

अब मुसलमान नहीं करते आंदोलन. पिछले दस वर्षों में तथाकथित मुस्लिम रहनुमाओं को किसी भी आंदोलन में बतौर अगुवाई करने नहीं देखा गया. यहां तक सीएए-एनसीआर के आंदोलन में जब मुस्लिम बिना नेतृत्व यहां, वहां धरना दे रहे थे, तब भी उनकी रहनुमाई करने कोई मदनी,ओवैसी, सिद्दीकी, सैयद, अंसारी, रिज्वी, हुसैन, नकवी, जव्वाद सामने नहीं आया. उस आंदोलन के दौरान विभिन्न संगीन आरोपों में गिरफ्तार किए गए युवा आज भी देश के कई जेलों में सड़ रहे हैं. मगर यह रहनुमा उन्हें जेल से बाहर लाने के लिए आगे नहीं आए हैं.

क्या मुस्लिम रहनुमाओं का यह रवैया किसी साजिश का हिस्सा है ?क्या वजह है कि पिछले दस वर्षों में मुसलमानों के खिलाफ लिए गए किसी भी फैसले को लेकर कोई मुस्लिम रहनुमा सार्वजनिक रूप से संघर्ष करता नहीं दिखा ? ऐसे मसले जब भी सामने आए सोशल मीडिया में बयानों की बौछार कर खुद को फैसले के खिलाफ खड़ा होने का नाटक किया. फिर सारे मुस्लिम रहनुमा उस मसले को अदालतों में ले गए और अदालतांे में मुसलमानों से जुड़े मसलमों का जो हश्र हुआ, वह किसी से ढका छुपा नहीं है. यानी सब सेटिंग है और मुस्लिम रहनुमा उस सेटिंग का हिस्सा हैं ! ऐसे कई मुस्लिम रहनुमाओं के बारे में जानता हूं जो रात के अंधेरे में उससे मिलते हैं, जो पिछले कई सालों से इस कौम को पासमांदा और सूफी के नाम पर बांटने की साजिश में लगा है. कुछ मुस्लिम रहनुमा तो इन वर्षों में इतने ढीठ हो गए हैं कि कौम के खिलाफ कोई फैसला आते ही उसके पक्ष में खड़े हो जाते हैं. फिर ऐसे सड़े-गले तर्क देते हैं, जिसे सुनकर उनके घर वाले ही उनपर जूते बरसाते होंगे. ऐसे लोगों की वजह से एक मुस्लिम विरोधी संगठन दिल्ली की एक दरगाह और एक इस्लामिक संेटर पर काबिज सा हो गया है.

वक्फ बोर्ड नियम-कायदे-कानून में बदलाव लाने के क्रम में भी यह नजारा आम है. कौम के सभी सजग लोगांे को यह बहुत पहले से पता चल गया था कि ऐसी कोई कोशिश हो रही है. कौम के तथाकथित रहनुमाओं के सोशल मीडिया पर चलने वाले बयानों से ऐसा लगता है कि यह हमारे हक में नहीं है. इसके बावजूद इस कोशिश को बीच में रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया. सदन के पटल पर मसौदा रखने से पहले न कहीं धरना दिया गया, न कोई प्रदर्शन हुआ, न ज्ञापन दिया गया, न रहनुमआंे का कोई प्रतिनिधमंडल किसी से बड़े शख्स से मिला. ऐसे तथाकथित रहनुमाआंे को जाकर दिल्ली के जंतर मंतर या देश के हर जिला के मुख्यालय पर देखना चाहिए कि कैसे कोई संगठन अपनी मांगें मनवाने के लिए महीनों-महीनों तिरपाल के नीचे दरी बिछाकर धरने पर बैठकर अपनी मांगे उठा रहा है ?

क्या मजाल के हमारे रहनुमा कहीं नजर आ जाएं. क्या किसी ने पिछले दस वर्षों में ओवैसी या जामात ए इस्लामी हिंद अथवा जमियत उलेमा ए हिंद सरीखे किसी मुस्लिम संगठन को मुसलमानों के मुददे पर सड़कांे पर लड़ते देखा है ? देश के किसान अपनी मांगों के लिए संघर्ष कर सकते हैं, छात्र और नवजवान संघर्ष कर सकते हैं. मगर ये अपने हुजरे से बाहर नहीं निकलते. वहीं बैठे-बैठे पिंगल छांटते रहते हैं.

क्या ऐसे में इनसे क्यादत छीन लेनी चाहिए ? इनके रहते वो सारे काम हो जाएंगे, जिसे मुस्लिम विरोधी समझा जाता है. अगर वे अपनी मांगे पुरजोर तरीके से कहीं रखने लायक नहीं हैं तो युवा संगठन खड़ा करें. अपनी मजबूरी बताएं कि वह सोशल मीडिया पर बयान जारी करने के अलावा क्यों कुछ नहीं कर पाते ?

ऐसे नअहल रहनुमाओं के कारण ही आजादी के बाद भी देश का मुसलमान दलितों से पिछड़ा है. वक्फ की संपत्ति हाथ से निकल रही है, पर इस कौम ने कभी इसे अपने हित में इस्तेमाल करने के लिए संघर्ष नहीं किया. फोन या चिट्ठी से तलाक देने के कितने मामले सामने आए थे ? साल में दो चार. मगर इसे बहाना बनाकर काननू बना दिया गया. इसी तरह वक्फ संपत्ति के दुरूपयोग के कितने मामले होंगे ? सौ-दो सौ. मगर इसकी आड़े में तीन तलाक की तरह कानून बनाने की कोशिशें चल रही हंै.

आज वक्फ संपित्त से जितनी आमदनी दिखाई जाती है, यदि वास्तव में हमारे हित में इस्तेमाल हुआ होता तो इस कौम की स्थिति आज देश के दूसरे वर्गों से कई गुणा बेहतर होती. मुंबई में एक उद्योगपति अपनी आलीशान बिल्डिंग वक्फ लैंड पर खड़ा किए है. मालमा कोर्ट में है. क्या कोई बता सकता है कि जब उक्त व्यक्ति वक्फ लैंड पर कब्जा करने की साजिश चल रहा था तो कोई मुस्लिम रहनुमा उसे रोकने आगे आया था ?

न तब आया था और न अब आ रहा है. पिछले दस वर्षों मंे न जाने कितने फैसले मुसलमानों के खिलाफ हुए और आने वाले समय में होने वाले हैं. यदि मुस्लिम रहनुमा उक्त अदृश्य साजिश का हिस्सा बने रहते तो यकीन जानिए आपकी पहचान अपने घरों तक सीमित रह जाएगी.