बोलती क्यों बंद है मुसलमानों के ठेकेदारों की
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
शनिवार की रात अतीक अहमद और उसके भाई की पुलिस और पत्रकारों की मौजूदगी में हत्या किए जाने के बावजूद मुसलमानों के ठेकेदारों को सांप सूंघा हुआ है. क्यों ? यह अहम सवाल है. यदि मुसलमानों के ठेकेदार यह समझते हैं कि अतीक अहमद ने पूर्व में जैसा किया, यह उसी का परिणाम है, तो यह बात कहने से उन्हें कौन रोक रहा है ? मुसलमानों के ठेकेदारों को पूरी कौम को खुले तौर पर यह नसीहत देनी चाहिए कि जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा. बुराई का बदला बुराई से ही मिलता है. दोनों भाइयों की सरेआम हत्या लोगों के लिए सबक है. इसलिए ऐसी बुराइयों से खुद भी दूर रहे और अपनी आने वाली नस्ल को भी दूर रखें.
इसके विपरीत मुसलमानों के ठेकेदारों को यह लगता है कि जो कुछ हुआ गलत हुआ. पुलिस की मौजूदगी में कोई ऐसी व्यक्ति की हत्या इतनी आसानी से कैसे कर सकता है जिसे अंबाला जेल से लाने के लिए पुलिस वालों की पूरी फौज लगाई गई थी. वैसे व्यक्ति को रात के अंधेरे में कथित रूटीन चेकअप के लिए चंद पुलिस वालों के साथ अस्पताल ले जाना, इसे क्या समझा जाए ? क्या यह हत्यारों को एक तरह का संकेत था. आ जाओ मैदान खाली है ! यदि ऐसा नहीं था तो अतीक की सुरक्षा में इतनी लापरवाही क्यों बरती गई ? हत्यारों को पकड़ कर तुरंत जेल में भेजने को क्या समझा जाए ? उन्हंे बाहर रखकर पुलिस यदि पूछताछ करती तो शायद ‘मास्टर माइंड’ का खुलासा हो जाता. मगर ऐसे सवाल भी मुस्लिम ठेकेदारों की ओर से नहीं उठाए जा रहे हैं.
क्या यह मान लिया जाए कि देश के मुसलमानों के साथ खुलेआम जो कुछ हो रहा है और रात के अंधेरे में बंद दरवाजे के पीछे वे जो कुछ कर रहे हैं, दरअसल एक सिक्के के दो पहलू हैं ?
देखिए सवाल तो बनता है. कनाडा में, पाकिस्तान में किसी के धर्मस्थल को नुकसान पहुंचाया जाता है या दूसरे कौम के साथ ज्यादती होती है, तो यहां के मुस्लिम ठेकेदार बिलबिला उठते हैं. तुरंत अखबारों को बयान जारी कर देते हैं. मगर जब देश के मुसलमानों के साथ कुछ होता है, तो उनकी बोलती बंद हो जाती है. क्यों ? मुसलमानों के अच्छे-बुरे मे आपकी बोतली बंद रहती है तो क्या माना जाए कि आप भरोसे लायक नहीं हैं. ऐसे में क्या मुसलमानों को नहीं चाहिए कि ‘चंदे पर पलने वाले ऐसे ‘लालों’ से किनाराकशी करने का वक्त आ गया है ? आज क्यों न इसपर विचार मंथन की जरूरत है कि देश के तमाम मुस्लिम अदारों के मौजूदा ठेकेदारों को किनारे कर किसी नई सोच, समझ वाले को नेतृत्व दे देना चाहिए. पिछले आठ वर्षों मंे मौजूदा मुस्लिम ठेकेदारों ने पूरी कौम को पंगु बनाकर रखा हुआ है. कौम से जुड़े उनके तमाम रूख का अध्ययन कर लें. साफ पता चल जाएगा ये या तो बिके हुए हैं या उनका कोई ऐसा राज किसी के हाथ लग गया है, जिसकी वजह से यह कभी भी जेल की हवा खा सकते हैं. ऐसे में नहीं लगता कि ये अब भरोसे के लायक नहीं. एक बड़े राजनेता से देश के कई हिस्से के मुस्लिम ठेकेदार रात के अंधेरे में मिलने गए थे. सुबह जब कौम ने उनसे सवाल जवाब किए तो अब ये खाल बचाने के लिए अखबारों में लेख लिखकर सफाई दे रहे हैं. आखिर आपको सफाई देने की नौबत क्यों आन पड़ी. आप सच्चे रहते तो डटे रहते. मगर ऐसा नहीं करेंगे, क्यों कि आपका सौदा कहीं से सौदा हुआ है.
इसलिए फिर कह रहा हूं. ऐसे लोगांे पर भरोसा करना छोड़िए. उन्हें चंदा देना बंद कीजिए. अपनी नई नस्ल के लिए नए इंतजाम कीजिए. वर्ना यह आपके दिए हुए पैसे से अखबारों में अपनी तस्वीरें छपवाते रहेंगे, बंद कमरे में मीटिंग कर आपका सौदा करते रहेंगे और आपकी आने वाली पीढ़ी दूसरों के तलवों के नीचे लोटती रहेगी या किसी और देश में बसने के लिए रास्ते लतलाशेगी. यह समस्या का हल नहीं. आपका देश है. आपको यहां जीना-मरना है.