तिनसुखिया के सब्जीफरोश सोबरन अहमद ज्योति को क्यों कहते हैं, उन्हें कोयले की खान से हीरा मिला ?
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
जयपुर से मुंबई जा रही ट्रेन में ‘मोदी-योगी’ के नाम पर तीन मुसलमानों को गोली मार देने और हरियाणा के नूंह हिंसा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि देश की जड़ों में साम्प्रदायिकता का जहर इस कदर बढ़ चुका है कि कोई एक दूसरे को देखना नहीं चाहता.
हालांकि, अब भी कुछ मिसालें ऐसी हैं, जिसके भरोसा आम लोगों को गाहे-बगाहे एहसास होता है कि हिंदुस्तान की आत्मा अभी जिंदा है. हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति जीवित है और सांप्रदायिक सौहार्द को तमाम झटके लगने के बावजूद इसके अब तक कोई बिगाड़ नहीं सकता है. इसे ही रेखांकित करते हुए एक घटना फिर सामने आई है.
राजस्थान हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ता एमएम ढेरा ने अपने ट्वीटर हैंडल से यह घटना साझा की है. अपने लंबे पास्ट में उन्हांेने सारा सुनाया है, जिसे यहां हू,बहू प्रकाशित किया जा रहा है–
इंसानियत और भाग्य का अनोखा संगम !!
— M.M. Dhera(Advocate) (@AdvocateDhera) August 11, 2023
पहली फ़ोटो में दिख रहा इंसान 'सोबरन'अहमद हैं! सब्जी बेचते हैं, असम के तिनसुखिया जिले में रहते हैं। जब ये 30 वर्ष के थे, तब कचरे के डिब्बे में इन्हें एक बच्ची रोती हुई मिली थी। दूसरे फोटो दिख रही प्यारी सी लड़की वही बच्ची है…
कचरे में पड़ी उस… pic.twitter.com/cg4VBdKmdw
‘‘पहली फोटो में दिख रहा इंसान सोबरन अहमद हैं. सब्जी बेचते हैं. असम के तिनसुखिया जिले में रहते हैं. जब ये 30 वर्ष के थे, तब कचरे के डिब्बे में इन्हें एक बच्ची रोती हुई मिली थी. दूसरे फोटो में दिख रही प्यारी सी लड़की वही बच्ची है.’’
‘‘कचरे में पड़ी उस मासूम को जब सोबरन अहमद घर लाए, तब उनकी शादी नहीं हुई थी. सोबरन ने तय किया कि वे उस मासूम को पालेंगे. पढ़ाएंगे. अपनी शादी नहीं करेंगे. इस तरह उन्होंने उस बिटिया का नाम रखा ज्योति!!!’’
पोस्ट में आगे लिखा हैः-
‘‘सोबरन सब्जी बेचते, दिन-रात मेहनत करते और बिटिया रानी मन लगाकर पढ़ती रहती. वही ज्योति 25 साल की हो गई है. 2013 में ज्योति ने कंप्यूटर साइंस से ग्रेजुएशन किया. 2014 में असम पब्लिक सर्विस कमीशन में सेलेक्ट हुईं.आज ज्योति असम में इनकम टैक्स असिस्टेन्ट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं !!’’
पोस्ट में आगे कहा गया है-
‘‘आज जब सोबरन से पूछेंगे कि क्या आपको उस वक्त लगता था कि जिस बच्ची को आप पाल-पोस रहे हैं, पढ़ा-लिखा रहे हैं, वो इतनी कामयाब भी होगी?
‘‘मुझे बस इतना पता है कि मुझे कोयले की खान से एक हीरा मिला था.’’सोबरन कहते हैं.
जात, पात, धर्म, द्वेष, हिंसा, क्रूरता, घमंड, अहंकार से ऊपर उठकर जीने वाले सोबरन. जीवन को जीने का रास्ता दिखाते सोबरन!!
यही लोग असली हीरो हैं दोस्तों!’’
दरअसल, यह खबर कई दिनों से सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफाॅर्म पर चल रही है. जो भी देखता-पढ़ता, सुनता है फरिश्तासिफत सोबरन अहमद की तारीफ किए बिना नहीं रहता. वैसे, सोशल मीडिया में चल रहे इस पोस्ट की पुष्टि ‘मुस्लिम नाउ’ नहीं करता.