करण थापर और पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक की बातचीत को याद रखना क्यों जरूरी है
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
पहले गैंगस्टर अतीक अहमद के बेटे का एनकाउंटर और उसके एक दिन बाद तीन टुच्चे से अपराधियों द्वारा अतीक अहमद और उसके भाई की पुलिस की मौजूदगी में हत्या ने भले सियासी बवंडर खड़ा कर दिया है. मगर इन सब के बीच वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को दिए गए कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का इंटरव्यू याद रखना बेहद जरूरी है.
यदि मलिक का इंटरव्यू किसी राजनीति से प्रेरित नहीं है और जो वे कह रहे हैं, सौ प्रतिशत सत्य है तो यह न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि कश्मीर की सियासत में भी बड़ा भूचाल सकता है.
मीडिया आउट लेट्स ‘ द वाॅयर’ के करण थापर के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुलवामा को लेकर जिस तरह की बातें कही गई हैं, निश्चित ही इसपर भारत की घेराबंदी होगी. कश्मीर और आतंकवाद के मुददे पर हमेशा से भारत का पाकिस्तान और उसके समर्थक देशों पर पलड़ा भारी रहा है. मगर करण थापर से बातचीत में सत्यपाल मलिक का बयान भारत की स्थिति कमजोर करने वाली है.
सत्यपाल मलिक का यह बयान ऐसे समय आया है जब कश्मीर में जी 20 समिट के आयोजन की पुरजोर तैयारी चल रही है. पुलवामा का मुददा इस्लामिक देश के संगठन और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय पटल पर हमलावर होने के लिए थमा दिया गया है.
करण थापर से बातचीत में कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अनुच्छेद 370 हटाने, भाजपा-महबूबा सईद की सरकार भंग करने और राष्ट्रपति को लेकर भी बेहद गंभीर बातें कही हैं. मलिक के बयान से राष्ट्रपति और राज्यपाल के पद की गरिमा कम होती है. दुनिया में गलत संदेश भी जाएगा.
महबूबा-भाजपा सरकार के बर्खस्त करने के मामले मंे अपने इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने जो बातें कहीं हैं, उससे लगता है कि इसके लिए फारूख अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद और खुद महबूबा मुफ्ती की मौन सहमति थी. मलिक ने कश्मीर के तीनों नेताओं को लेकर संदेहास्पद बातें कही हैं. मगर इस मामले में अब तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है.
सत्यपाल मलिक का कहना है कि उन्हांेने रात आठ बजे के बाद बीजेपी-महबूबा सरकार को बर्खस्त किया था. इस दौरान सरकार बचाने के लिए तीनांे नेताओं की ओर से गंभीर प्रयास नहीं किए गए. गुलाम नबी आजाद की प्रतिक्रिया तब ढुलमुल वाली थी. फारूख ने कहा था कि वह दिल्ली में बैठक कर तय करेंगे कि महबूबा सरकार दोबार बहाल करने के लिए समर्थन देना है अथवा नहीं. जबकि खुद महबूबा दिनभर बयानबाजी करती रही हैं, पर समर्थन का पत्र जुटाकर राज्यापाल तक पहुंचाने की जहमत नहीं उठाई. करण थापर से बातचीत में सत्यपाल मलिक महबूबा पर चोट करते हुए कहते हैं,‘‘ सबको पता है कि ट्विटर पर सरकार नहीं बनती. इसके लिए समर्थन जुटाना पड़ता है.’’
पूर्व राज्यपाल के इस बयान के बाद निश्चित ही कश्मीर के तीनों प्रमुख नेताओं गुलाम नबी आजाद, महबूबा मुफ्ती और फारूख अब्दुल्ला की जनता के सामने स्थिति खराब हुई है. कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मामले में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा सत्यपाल मलिक को विश्वास में नहीं लिए जाने वाला बयान भी कम बवाली नहीं. इस इंटरव्यू के बाद पुलवामा में शहीद हुए जवानों के परिजन निश्चित ही आने वाले समय में सरकार से सवाल जवाब कर सकते हैं और यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब कुछ महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव की सरगर्मियां शुरू होने वाली हैं़.