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मर्दों के पेशे में एक औरत की दस्तक: हैदराबाद की अनाया बनीं पहली महिला कसाई

— मोहम्मद जुबैर, हैदराबाद से

दुनियाभर में कसाई का पेशा अब भी पुरुष प्रधान माना जाता है। तेज धार वाली छुरियों, जानवरों के वध और मांस की बिक्री को अब तक मर्दों का काम ही समझा गया है। लेकिन हैदराबाद की अनाया ने इस सोच को चुनौती दी है। वे न केवल खुद जानवरों का वध करती हैं, बल्कि अब “अनाया द बचर” के नाम से पहचान भी बना चुकी हैं। यह पहचान सिर्फ उनके पेशे से नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति की वजह से बनी है, जिसमें उन्होंने वर्षों से चली आ रही लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ दिया है।

बचपन से था छुरी-कसाईखाने से लगाव

अनाया बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें कसाईखानों में जाने और जानवरों के वध की प्रक्रिया को देखने में गहरी दिलचस्पी थी। “जब भी मैं किसी को बकरी या मुर्गी काटते देखती, मुझे खुद उसे करने की प्रबल इच्छा होती,” वे कहती हैं। लेकिन उनके समुदाय में किसी लड़की का ऐसा सोचना भी असामान्य और ‘असभ्य’ माना जाता था।

यहां तक कि उनकी मां ने भी उन्हें छुरी छूने से मना कर दिया था। मां का मानना था कि यह काम लड़कियों के लिए ठीक नहीं। पर अनाया की जिज्ञासा और लगाव समय के साथ बढ़ता गया। उन्होंने इंटरनेट, किताबों और इस्लामी विद्वानों से सलाह लेकर इस विषय पर गहराई से अध्ययन करना शुरू कर दिया।

धर्मिक अध्ययन से मिली हिम्मत

अपने शोध के दौरान अनाया को पता चला कि इस्लामी शरिया के अनुसार, महिलाएं भी वध कर सकती हैं, बशर्ते वे कुछ धार्मिक नियमों का पालन करें — जैसे कि वध से पहले “तक़बीर” पढ़ना। इस ज्ञान ने उन्हें आत्मविश्वास दिया कि यह काम वे धार्मिक रूप से भी कर सकती हैं।

पति की सलाह बनी प्रेरणा

एक दिन जब वे बाज़ार से चिकन खरीदने गईं, तो उन्हें संदेह हुआ कि शायद कसाई ने वध करते समय तकबीर नहीं पढ़ा। जब उन्होंने यह बात अपने पति से साझा की, तो उन्होंने सहजता से कहा, “तुम खुद क्यों नहीं जानवरों को ज़बह करने लगती?” यह वाक्य जैसे उनके जीवन में बदलाव का कारण बन गया।

उस दिन के बाद से अनाया ने खुद जानवरों को हलाल करना शुरू किया और देखते ही देखते एक महिला कसाई के रूप में पहचान बना ली।

पुरुषों के पेशे में महिलाओं की दावेदारी

आज अनाया न केवल खुद जानवरों को ज़बह करती हैं, बल्कि लोगों से ऑर्डर भी लेने लगी हैं। वे धार्मिक शुद्धता, साफ-सफाई और ग्राहक की धार्मिक संवेदनाओं का पूरा ध्यान रखती हैं। “मुझे खुशी है कि मेरे जरिए कई महिलाओं को यह समझ में आ रहा है कि अगर आपकी नीयत साफ है और जानकारी सही है, तो कोई भी पेशा आपके लिए नामुमकिन नहीं,” वे मुस्कराते हुए कहती हैं।

बदलाव की राह पर

अनाया ‘द बचर’ अब उन चंद महिलाओं में हैं, जिन्होंने पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्र में खुद को स्थापित किया है। वे ना सिर्फ एक व्यवसाय चला रही हैं, बल्कि महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन गई हैं। उनके काम की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि लोग उन्हें धार्मिक त्योहारों जैसे बकरीद पर बुक करने लगे हैं।

निष्कर्ष

अनाया की कहानी इस बात का प्रमाण है कि समाज में बदलाव लाने के लिए सिर्फ एक इंसान की हिम्मत, नीयत और सही जानकारी की ज़रूरत होती है। ‘अनाया द बचर’ अब एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रतीक बन चुका है — उस महिला का, जो न केवल छुरी चलाती है, बल्कि रूढ़ियों को भी चीरती है।

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