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‘रेडियंस’ की संगोष्ठी में द हिंदू के ऋषिकेश बहादुर देसाई बोले, ‘मारे गए ’ और ‘हमला’ जैसे शब्द विपरीत कहानी तैयार करते हैं

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

‘रेडियंस’ ने “पत्रकारों के समक्ष चुनौतियां: तकनीकी, भाषाई, सामाजिक और राजनीतिक” विषय पर एक शिक्षाप्रद परिचर्चा का आयोजन किया. द हिंदू के विशेष संवाददाता ऋषिकेश बहादुर देसाई कार्यक्रम के अतिथि वक्ता थे.

रेडियंस (अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका) के संपादक सिकंदर आज़म ने परिचर्चा के अतिथि वक्ता देसाई का परिचय कराते हुए बताया कि वह लगभग दो दशकों से राजनीति, कला और संस्कृति, ई-गवर्नेंस, सूखा और बाढ़, सांप्रदायिक हिंसा, खेती और भूख, अशिक्षा और शिक्षा आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों को कवर कर रहे हैं.

देसाई ने मीडिया में पत्रकारों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात की. उन्होंने कहा, “हम एक विकासशील देश के नागरिक हैं और जो भी चीज़ पूरी तरह से विकसित नहीं होती है वह कई बदलावों और चुनौतियों से गुजरती है और इन बदलावों से निपटना आज पत्रकारों के लिए एक बड़ी चुनौती है.”

तकनीकी चुनौतियों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि तकनीक परिवर्तन लाता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) भी एक तकनीक है जो अवसर और चुनौतियां दोनों प्रस्तुत करता है. उन्होंने कहा कि चूंकि मीडिया एक गतिशील क्षेत्र है जिसमें निरंतर सीखने और अनुकूलन की आवश्यकता होती है, इसलिए अपने डिजिटल कौशल और सोशल मीडिया जुड़ाव को निखारकर विकसित हो रही प्रौद्योगिकियों, उद्योग के रुझानों और दर्शकों की बदलती प्राथमिकताओं के साथ अपडेट रहना चाहिए.

पत्रकारिता में कुछ भाषाई चुनौतियाँ भी हैं, जिनके बारे में उन्होंने कहा, “पत्रकारिता और भाषा आपस में जुड़े हुए हैं, आज की पत्रकारिता अतीत की तुलना में बेहतर है या खराब, इस पर बहस व्यक्तिपरक है और यह अवधि और व्यक्तिगत लेखक पर निर्भर करती है.” इसके अलावा, उन्होंने कहा कि भाषा परिप्रेक्ष्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है: यदि हम एक ही समाचार के लिए “मारे गए” और “हमला” जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं, तो यह पूरी तरह से विपरीत कहानी तैयार करता है जो हमारे सन्दर्भ को आकार देता है.

उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चुनौतियों के बारे में भी बात की जिसमें बढ़ती असमानता और मीडिया से खोता विश्वास, फर्जी खबरें और गलत सूचना, सेंसरशिप और दमन का खतरा, धमकी, राजनीतिक वकालत, नौकरी की असुरक्षा, आर्थिक और राजनीतिक दबाव शामिल हैं. उन्होंने अपना भाषण समाप्त करते हुए कहा, “पत्रकारिता कोई जोखिम भरा पेशा नहीं है,” क्योंकि सुरक्षा ज्यादातर एक अंधविश्वास है.

ऋषिकेश देसाई ने कुछ प्रतिभागियों द्वारा तटस्थता, जोखिम कारकों आदि पर पूछे गए सवालों का भी जवाब दिया. एक प्रश्न का उत्तर देते हुए देसाई ने राजस्व संबंधी चुनौतियों के बारे में भी बात की.

रेडिएंस के प्रधान संपादक, एज़ाज़ अहमद असलम ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि भारत में पत्रकारों को अधिक बोझ उठाना पड़ता है. हमारा देश अभी भी विकास कर रहा है और संयोगवश सबसे अधिक आबादी वाला देश है.

रेडिएंस का ‘प्रकाशक द बोर्ड ऑफ इस्लामिक पब्लिकेशन्स’ के सचिव सैयद तनवीर अहमद ने धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया. कार्यक्रम का संचालन रेडियंस के उप-संपादक मोहम्मद नौशाद खान ने किया .

कार्यक्रम में कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली समेत भारत के कई राज्यों से पत्रकारों ने हिस्सा लिया. दर्शकों में अंडमान का एक पत्रकार भी शामिल था.

कार्यक्रम में ई-मैगजीन ‘औरा’ की मुख्य संपादक रहमतुन्निसा ए. और जमाअत-ए-इस्लामी हिंद, महाराष्ट्र की मीडिया सचिव निलोफर इकबाल भी शामिल हुईं.

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