याददाश्त-ए-बाबरी मस्जिद:अयोध्या के मुकदमेबाज , अदालत में दुश्मन, बाहर दोस्त
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
अयोध्या भले ही बाबरी लड़ाई को भूलने का एक सचेत प्रयास कर रही है, लेकिन बाबरी मामले में दो वादियों – हाशिम अंसारी और महंत रामचंद्र परमहंस के बीच दोस्ती का जश्न भी मना रही है. इससे पता चलता है कि वे अदालत में कट्टर दुश्मन और बाहर दोस्त हैं. दोनों पक्षों ने कोर्ट में जमकर केस लड़ा, लेकिन बाहर निकलते ही वे गहरे दोस्त बन गए.
राम जन्मभूमि न्यास के मुख्य न्यासी महंत रामचंद्र परमहंस की 2003 में मृत्यु हो गई थी, जबकि इस मामले के सबसे पुराने पक्षकार हाशिम अंसारी की 2016 में मृत्यु हो गई थी.
न्यास में उनके उत्तराधिकारी बने महंत धर्म दास कहते हैं, “वे एक रिक्शे में एक साथ अदालत जाते थे. उनके वकील केस का डटकर मुकाबला करते थे और सुनवाई के बाद दोनों एक ही रिक्शे में एक साथ लौटते थे. इस अनोखे रिश्ते से हर कोई हैरान रह जाता था. वे दोस्त और हाशिम अंसारी के रूप में रहते थे. 2003 में जब महंत परमहंस की मृत्यु हुई, तो अंसारी फूट-फूट कर रोए थे.”
आज, चीजें बदल गई हैं और सामान्य मामलों में वादी सुरक्षा के घेरे में आ जाते हैं और सौहार्द गायब हो जाता है.
सन् 1949 में जब कथित तौर पर मस्जिद में मूर्तियां रखी गई थीं, उस समय हुए विवाद के बाद गिरफ्तार किए गए लोगों में हाशिम अंसारी भी शामिल थे. 1961 में जब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अयोध्या टाइटल सूट दायर किया तो वह मुख्य वादी थे। वह जीवनयापन के लिए साइकिल की मरम्मत करते थे.
अयोध्या आंदोलन के अग्रदूतों में से एक परमहंस ने मार्च 1950 में फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर कर मूर्ति की रक्षा का अधिकार मांगा था.
फैजाबाद कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील विवेक कुमार श्रीवास्तव याद करते हैं, “मेरे पिता, जो एक वकील भी हैं, जब दोस्ती की बात आती थी तो वे इन दोनों का उदाहरण देते थे. वह हमें बताते थे कि अगर सुनवाई में देरी हो जाती थी, तो अंसारी और परमहंस अदालत परिसर में चाय का प्याला भी साझा करते थे. उनके बीच सौहार्द देखकर अन्य लोग चौंक जाते थे.”
कोर्ट की सुनवाई के बाद वे दंत धवन कुंड में आते और ताश खेलते हुए बातचीत करते.
अयोध्या में वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि उनकी दोस्ती छह दशकों से अधिक समय तक चली.
एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी महेंद्र नाथ, जो साइकिल की मरम्मत के लिए अंसारी के पास जाते थे, कहते हैं, “अयोध्या मुद्दे पर जब देश में सांप्रदायिक आधार पर दंगे हुए, तब भी दोनों के बीच कभी कड़वाहट नहीं थी. दोनों हिंसा की आलोचना करते थे और एक-दूसरे से बातचीत करते रहते थे. हाशिम अंसारी को बाबरी विध्वंस के बाद सुरक्षा प्रदान की गई थी, लेकिन उन्हें यह पसंद नहीं था कि चार पुलिसकर्मी हर समय उनके छोटे से घर के बाहर बैठे रहें.”
उनके सहयोगियों का कहना है कि हाशिम ने ‘राम मंदिर के मुद्दे का राजनीतिकरण’ करने के लिए विहिप, आरएसएस और अन्य राजनीतिक संगठनों का ‘तिरस्कार’ किया.
दिगंबर अखाड़े के एक कार्यकर्ता राजू कहते हैं, “वह इस बारे में अपने विचार महंत रामचंद्र परमहंस को भी बताते थे, लेकिन महंत ने कभी उनकी बात नहीं मानी.”
स्थानीय पुजारी आचार्य प्रदीप तिवारी कहते हैं, “बाबरी मस्जिद विध्वंस की 25वीं बरसी पर हम उन दोनों लोगों के बीच के रिश्ते को याद करते हैं, जब महंत की मृत्यु हुई, हाशिम एक दोस्त के खोने पर फूट-फूट कर रोए और अंतिम संस्कार तक उनके साथ रहे। मुझे यकीन है कि मरने के बाद दोनों ऊपर साथ-साथ रह रहे होंगे.”