ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कड़े तेवर, विधि आयोग से कहा-यूसीसी कुबूल नहीं
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
यूसीसी को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने कड़ा स्टैंड लिया है. इसने भारत के विधि आयोग से कहा है कि शरिया के मूल प्रारूप में एक मिनट का भी बदलाव स्वीकार्य नहीं होगा. भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में उल्लेख किया गया है.
इसमें कहा गया है कि कुरान और सुन्ना (पैगंबर के शब्द और कार्य) पर आधारित शरिया कानून (मुस्लिम पर्सनल लॉ) में बदलाव नहीं किया जा सकता, जबकि इज्तिहाद, यानी इस्लामी विद्वानों की राय, समय और परिस्थितियों के साथ भिन्न हो सकती है.एआईएमपीएलबी के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपने अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी के नेतृत्व में बुधवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर अपना रुख बताने के लिए विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी से मुलाकात की.
मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करने का दावा करने वाली संस्था ने सवाल उठाया कि जब सरकार पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासियों और ईसाइयों को इसके आवेदन से बाहर करने के लिए तैयार है तो केवल मुसलमानों को यूसीसी से छूट क्यों नहीं ?
एआईएमपीएलबी ने कहा कि अगर किसी को धार्मिक व्यक्तिगत कानून से कोई समस्या है, तो वे विशेष विवाह पंजीकरण अधिनियम के तहत अपनी शादी कर सकते हैं, जो एक धर्मनिरपेक्ष कानून है.
वर्तमान में, मुस्लिम कानून के तहत, विवाह के लिए ऐसी कोई विशिष्ट आयु निर्धारित नहीं है. यदि पति और पत्नी दोनों विवाह के दायित्वों को पूरा करने की स्थिति में हैं, तो वे विवाह कर सकते हैं.
विशेष रूप से, यह मुद्दा कि क्या ऐसे विवाह बाल विवाह निरोधक अधिनियम और यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों के संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों से प्रभावित होंगे, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है.
एआईएमपीएल द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, विधि आयोग के अध्यक्ष ने आश्वासन दिया है कि वह ऐसे किसी भी बड़े बदलाव का सुझाव नहीं देने जा रहे हैं जो शरिया कानून की बुनियादी विशेषताओं को बदल दे. इसकी भूमिका केवल सुझाव देने तक ही सीमित है. सरकार अंतिम निर्णय लेगी.
14 जून को 22वें विधि आयोग ने यूसीसी की जांच के लिए जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचार मांगे थे.हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को अपने संबोधन के दौरान यूसीसी की वकालत की थी. इसके अलावा इस मुददे पर एक सियासी पार्टी मुसलमानों में फूट डालने के षड़यंत्र के तहत पसमांदा मुसलमानांे से यूसीसी का समर्थन करा रही है.