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क्या दिलीप मंडल अंबेडकर के नए ‘ठेकेदार’ है ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

कई पत्र-पत्रिकाओं में संपादक रहे दिलीप मंडल इनदिनों बाबा साहब भीम राव अंबेडकर और संविधान को लेकर नए ‘ठेकेदार’ के रूप में उभरने का प्रयास कर रहे हैं. इनकी ओर से रोजाना एक्स पर न केवल नैतिकता बघाराने वाले अनेक ट्विट किए जाते हंै, बाबा भीम राव अंबेडकर और आरक्षण को लेकर उल-जुलूल दलीलें भी दी जाती हैं ताकि यह आभास कराया जा सके कि ‘अंबेडकर’ और दलित-पिछड़ों के असली लड़ईया यही हैं. हद तो यह कि ध्रुव राठी भी इन्हें तनिक भी नहीं भाता. राठी के वीडियो भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाले होते हैं, पर इसे गलत साबित करने का पहला प्रयास दिलीप मंडल का होता है.

सत्तारूढ़ दल की आईटी सेल के लोग इनके बाद सक्रिया होते हैं. अभी ध्रुव ने चुनावी चंदे और बीफ एक्सपोर्ट को लेकर एक वीडियो बनाया था. इस वीडियो की शुरुआत उन्होंने गाय को साथ में रखकर की थी, जबकि उन्हांेने गाय के मांस के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था. बावजूद इसके दिलीप मंडल उन्हें सांप्रदायिकता फैलाने वाला करार देने लगे. हालांकि दिलीप मंडल को भी पता है कि ध्रुव राठी के मुकाबले सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति उंट के मुंह में जीरा के बराबर है. मंडल के एक्स पर तकरीबन पौने छह लाख फॉलोअर्स हैं, जबकि धु्रव के दो मिलियन. इसी तरह ध्रुव के यूट्यूब पर डेढ़ करोड़ सब्सक्राइबर्स हैं.

बहरहाल, एक्स एक दिलीप मंडल इनदिनों इतने आत्ममुग्ध नजर आते हैं कि उन्हें अपने सिवा किसी की बात अच्छी ही नहीं लगती. किसी यूट्यूबर ने अंबेडकर जयंती पर कोई सामग्री नहीं बनाई तो, उन्हें ही कोसने लगे कि ऐसे लोगों को पता चल गया है कि उनके वीडियो केवल ईद मनाने वाले ही देखते हैं.

इसी तरह एक साहब ने जब कुरान को लेकर एक्स पर यह लिख दिया कि यह मेरा संविधान है तो दिलीप मंडल उसपर भी पिल पड़े. दूसरी तरफ अब तक उन्होंने एक भी ऐसा कोई वीडियो नहीं बनाया है जिसमें बताया गया हो कि संविधान को बनाने के लिए बनाई गई समिति में अध्यक्ष बाबा साहब के अलावा और कितने लोगों का योगदान रहा है. यहां तक कि दिलीप मंडल ने संविधान सभा में शामिल किसी मुस्लिम लीडर पर करम-ए-अनायत नहीं की है.

1947 में संविधान सभा का गठन किया गया था उसमें 389 सदस्य थे. उसमें सैयद मोहम्मद जैसे लोग भी शामिल थे. दिलीप मंडल को सभा के सारे नाम याद हैं, उनकी सोशल मीडिया संदेश देखकर तो ऐसा नहीं लगता.हद यह है कि ध्रुव राठी से खुन्नस खाए बैठे दिलीप मंडल अब हरियाणा के जाटों को लेकर भी उल्टी-सीधी बातें करने लगे हैं.कई बार तो दिलीप मंडल की सोशल मीडिया पर भाषा ऐसी होती है, जिसे पढ़कर नहीं लगता कि यह शख्स कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादक रहा होगा.

दिलीप मंडल के कई ट्विट् मुसलमानों में फूट डालने वाले होते हैं. बीजेपी इनदिनों पसमांदा की राजनीति कर इस प्रयास में है ताकि कुछ प्रतिशत मुस्लिम वोट उसके पक्ष में पड़ जाए. इसके लिए उसकी ओर से कई ‘भाड़े के पसमांदा’ नेता भी खड़े किए गए हैं. बावजूद इसके मुसलमानों में एकता बरकरार है. ईद के मौके पर मस्जिदों में उमड़ने वाली भीड़ ने इसे एक बार फिर साबित किया है. मगर दिलीप मंडल अपने ट्विट में जुलाहा, धुनिया, कसाई जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर उन्हें ललकार कर फूट डालना चाहते हैं.

आरएसएस की तरह दिलीप मंडल इनदिनों धर्मपरिवर्तन के खिलाफ भी अभियान चलाए हुए हैं. वह सोशल मीडिया पर संदेश देकर बताने का प्रयास करतेहैं कि धर्मपरिवर्तन से कुछ नहीं मिलने वाला उन्हें जो अधिकार मिले हुए हैं वे भी छिन जाएंगे. धर्म परिवर्तन को लेकर आजकल सख्त कानून हैं. जबरन ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई का प्रवधान है. इसके बारे में सजग करने की जगह दिलीप मंडल उन्हें अधिकार छीनने की धमकी दे रहे हैं.