उर्दू और हिंदी का जन्म हज़रत अमीर खुसरो की खानकाह में हुआ: प्रो अख्तरुल वासे
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो नई दिल्ली
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मीर तकी मीर की 300वीं सालगिरह के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में प्रो अख्तरुल वासे ने कहा कि भाषाओं का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन हर धर्म को भाषाओं की जरूरत होती है. उन्होंने कहा कि भाषा संवाद के लिए है, न कि विवाद के लिए.
प्रो वासे ने कहा कि उर्दू और हिंदी दोनों का जन्म हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के खानकाह में हुआ था. इसके जनक हज़रत अमीर खुसरो थे. उन्होंने कहा कि एक ज़बान जिसने देवनागरी लिपि ली, वह हिन्दी कहलाई और दूसरे ने अरबी और फारसी लिपि ली, वह उर्दू कहलाई.
मीर तकी मीर ने गूंगे व्यक्ति के रूप में दिल्ली से लखनऊ का सफर किया
मीर तकी मीर के बारे में उन्होंने कहा कि मीर तकी मीर अपनी भाषा को लेकर कितने संवेदनशील थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब वह दिल्ली से लखनऊ जा रहे थे तो रास्ते में उन्होंने किसी से बात करना पसंद नहीं किया कि कहीं उनका लहजा खराब न हो जाए. इसलिए उन्होंने उच्चारण की शुद्धता और सटीकता और उसकी ऊर्जा को बनाए रखने के लिए एक गूंगे व्यक्ति के रूप में दिल्ली से लखनऊ तक की यात्रा की.
फ़ारसी भाषा का राज़ 600 वर्षों तक चला
प्रो वासे ने कहा कि भारत में मुस्लिम शासन 800 वर्षों तक रहा. इस में फ़ारसी भाषा का राज़ 600 वर्षों तक चला। उन्होंने कहा कि राजाओं की भाषा, चाहे वह तुर्की हो या कोई और, लेकिन जो उनकी आम बोलचाल की भाषा थी, वह ऐतिहासिक, धार्मिक और आधिकारिक तौर पर मूल रूप से फारसी भाषा के अलावा कुछ भी नहीं थी.
सरकार को फारसी की तरह उर्दू भाषा के लिए भी उदारता दिखानी चाहिए
हिन्दुस्तान की आजादी और उर्दू व हिन्दी पर बात करते हुए प्रो वासे ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को आजादी का सूरज उगते ही हिंदी देश की राजभाषा बन गई. उन्होंने कहा कि उर्दू के साथ कई विडम्बनाएं रही हैं, बंटवारे को लेकर कई विडम्बनाएं रही हैं, उनमें से एक ये है कि हमने उर्दू को पाकिस्तानियों के हवाले कर दिया.
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हिंदी भाषा सिखाने के लिए भारत से शिक्षक जाते हैं, उसी प्रकार उर्दू भाषा सिखाने के लिए भारत से शिक्षकों को विदेशों में जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हाल ही में विदेश मंत्रालय ने घोषणा की कि फ़ारसी भाषा को भारत की नौ शास्त्रीय भाषाओं में शामिल किया गया है, यह बहुत अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि यही उदारता उर्दू भाषा के लिए भी दिखानी चाहिए.