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शाह इमरान हसन कैसे कर रहे हैं पुस्तक सेवा

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डा. रख्शंदा रूही मेहंदी, नई दिल्ली

शाह इमरान हसन उर्दू भाषा के एक प्रसिद्ध लेखक हैं. इसके साथ ही वे पत्रकार और कहानीकार भी हैं. उर्दू जीवनी साहित्य की दुनिया में उनका नाम महत्वपूर्ण होता जा रहा है. वे आजकल नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाली त्रिमासिक पत्रिका ‘आपबीती’ का संपादन कर रहे हैं.

ये पत्रिका ‘उर्दू जीविनी साहित्य’ पर आधारित है ,अर्थात इसमें सत्य साहित्य जैसे आत्मकथा,यात्रा विर्त्तांत , व्यक्ति विशेष पर लेख , पुस्तक समीक्षा इत्यादि प्रकशित कि जाती है. अब तक इसके चार अंक प्रकशित हो चुके हैं. इस पत्रिका की महत्वपूर्ण बात ये है की ये पत्रिका उतनी ही प्रकशित की जाती है जितने इसके खरीदार हैं.

इसके अतिरिक्त शाह इमरान हसन की अन्य रचनाएँ भी महत्वपूर्ण हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है:

  • हयात-ए रहमानी (2012): 240 पेज की यह पुस्तक स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक मौलाना मिनततुल्लाह रहमानी के जीवन और सेवाओं पर प्रकाश डालती है.इस पुस्तक पर शाह इमरान हसन को बिहार उर्दू अकादमी की तरफ से पुरस्कार भी मिल चूका है.
  • औराक-ए हयात (2015):983 पेज की ये पुस्तक पद्म विभूषण पुरस्कृत मौलाना वहीदुद्दीन खान की आत्मकथा है. इसका शाह इमरान हसन ने सम्पादन किया है.
  • हयात-ए-वली (2016): यह एक विस्तृत जीवनी पुस्तक है जिसमें भारत के प्रसिद्ध शिकाविद मौलाना मुहम्मद वली रहमानी के जीवन और सेवाओं के बारे में 224 पृष्ठ हैं। इसका हिंदी अनुवाद ‘वली की जिवीनी’ के नाम से 2018 में इंदौर (मध्य प्रदेश) से प्रकाशित हुआ.
    *हयात-ए-गामदी (2017): 160 पेज की इस पुस्तक में विश्व परसिद्ध विचारक जावेद अहमद ग़ामदी का जीवन परिचय है.
    *अधूरे खाब (2018): यह शाह इमरान हसन की लघु कहानियों का पहला संग्रह है, जिसमें 25 लघु कहानियाँ शामिल हैं। इसकी पांडुलिपि के लिए शाह इमरान हसन को बिहार-उर्दू अकादमी से पुरस्कार मिला है।
    *मौलाना वहीदुद्दीन खान: अहल-ए-क़लम की तहरीरो के आईने में .(2022) 496 पेज की इस किताब में मौलाना वहीदुद्दीन खान के विचार और जीवन के बारे में विविन्न लेखको एवं विचारको के लेख शामिल है.

शाह इमरान हसन ने बारहवीं कक्षा (2002 ई.) से ही अखबार के लिए लिखना शुरू कर दिया था। वे उर्दू जीवनी साहित्य के साथ-साथ अन्य विषयों जैसे विविध लेख, कथा और यात्रा वृतांत लिखते हैं. शाह इमरान हसन को पर्यटन में भी रुचि है, उन्होंने भारत की विभिन शहरों की यात्रा के अलावा विदेस जैसे शारजाह, अबू धाबी, अजमान, दुबई, ईरान और कतर आदि स्थानों की यात्रा की है.

शाह इमरान हसन शुरू से ही पुस्तक प्रेमी रहे हैं. अब अपने पुस्तक प्रेम को उन्होंने समाज सेवा में बदल दिया है. वे दिल्ली के अंदर उनलोगों से सम्पर्क करते हैं जिनके लिए घरों में किताब रखना मुश्किल हो गया है,उन से वे किताबें लेते हैं तथा इन किताबों को उनलोगों तक मुफ्त में वितरित करते हैं जो किताब खरीद नहीं सकते परंतु किताब पढना चाहते हैं.

दिल्ली के अंदर उनके निवास पर आकर कोई भी व्यक्ति उन से किताब या उर्दू पत्रिका रविवार या छुट्टी के दिन मुफ्त ले सकता है. दिल्ली के बाहर वे मुफ्त में किताब भेजते हैं , केवल डाक खर्च पुस्तक प्रेमी से वसूल करते हैं.

शाह इमरान हसन का जन्म 5 फरवरी 1986 को उत्तरी बिहार के गांव सादपुर (जिला बेगूसराय) में हुआ था, जबकि उन्होंने मुंगेर से अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पूरी तथा जामिया मिलिया इस्लामिया से एम ए किया.

शाह इमरान हसन ने 2018 से 2021 तक मशहूर न्यूज पोर्टल ‘ईटीवी भारत’ से में कंटेंट एडीटर के तौर पर काम किया. लेखन उनका शोक है तथा पुस्तक प्रकाशन उनका पेशा. 2012 से वे इस पेशे से जुरे हुए हैं.

आइये उन से पुस्तक बाँटने और इकट्ठा करने के सन्धर्व में बात करते हैं.

1-आपको ये किताबों के इकट्ठा करने और ज़रूरत मंदों में बाँटने का ख़्याल कैसे आया ?

जहां तक किताबों को जमा करने इकट्ठा करने और उन्हें जरूरतमंदों में बाँटने का ख्याल किताबों की दुर्दशा देख कर आया.मैंने कई बार देखा की उर्दू की किताबें रद्दी में पड़ी हुई हैं और कुछ लोग उसे कबाड़ी की दुकान में 5 -10 रुपे किलो बेच रहे हैं.
वहीँ दूसरी ओर पुस्तक प्रेमीयो को ये किताब पढने के लिए नहीं मिल रही है. उर्दू किताबें की यह दुर्दशा देखकर मुझे अत्यंत दुख हुआ .फिर मैंने सोचा कि इन किताबों का कुछ करना चाहिए. बहुत दिनों तक मैं इस विषय में सोचता रहा फिर मुझे ख्याल आया की उन पुरानी किताबों को एकत्रित करके ज़रूत्मंदो में वितरित किआ जाये.

2-किताबों को जमा करने का आप का क्या तरीक़ा है ?

सोशल मिडिया का सदउपयोग अर्थात फेसबुक और व्हाट्सएप के मध्यम से मैं किताबें जमा करता हूँ. जो भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार पुस्तक डोनेट(donate) या दान करना चाहते हैं उन्हें अपना पता और फ़ोन न. देता हूं वह हमें किताब भेज देते हैं। इसलिए आप इस इंटरव्यू में मेरा नंबर भी ज़रूर प्रकशित करें ताकि किसी को भला हो जाये.

3-अभी आपके पास इतनी जगह है के आप और कियाबें स्टोर कर सकें ?

मैं जिस फ्लैट में रहता हूं उसी में एक हिस्सा में मैंने किताबें भी जमा कर रखी है. बहुत अधिक किताबें स्टोर करना मेरे लिए सम्भव नहीं है. वहीँ दूसरी ओर मेरे पास जो किताबें आती हैं वे दूसरों के पास चली जाती हैं . किताबें या तो डाक से जाती हैं या फिर कोई मुझसे संपर्क करके रविवार या छुट्टी वाले दिन ले जाता है .

4-केवल फिक्शन की किताबें लेते हैं आप या हर विषय पर ?

मैं उर्दू भाषा में लिखी हुई अलग-अलग विषयों की किताबें स्वीकार करता हूं.

5-उर्दू हिन्दी की किताबें हैं आपके स्टोर में ये इंग्लिश की भी ?

मैं केवल उर्दू भाषा में लिखी हुई किताबें ही स्वीकार करता हूं और उर्दू जानने वाले लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता हूं

6-किताबें मँगवाने और भेजने में जो खर्च आता है वो आप अपने पास से खर्च करते हैं?

मैं ये काम फ़िलहाल दिल्ली के अंदर कर रहा हूँ .लोग खुद से किताबें मेरे घर पहुंचा जाते हैं.और मेरे पास इतना समय नहीं है के मैं किसी के पास जाकर किताब लाऊं.रहा सवाल किताबों को भेजने का तो यदि कोई पुस्तक प्रेमी मुझ से किताब चाहते हैं तो मैं उनसे केवल ट्रांसपोर्ट और डाक खर्च वसूल करता हूं.

मैं व्यक्तिगत रूप से भी किताब भेजता हूँ और यदि कोई संस्था या लाइब्रेरी को किताबें चाहिय तो उन्हें ट्रांसपोर्ट से भेज देता हूँ.यहाँ ये बात भी मैं स्पषट रूप से बता दूँ की यदि आप को किसी किताब की ज़रुरत है और वह किताब मेरे पास है तभी आप को दी जाएगी. उर्दू भाषा की कोई भी नई पुरानी पुस्तक मेरे लिए देना संभव नहीं है. ये काम मैं केवल उर्दू और उर्दू की किताबों की हिफाजत के लिए कर रहा हूँ.

7-जब रहने के लिए जगह कम पड़ती है तो किताबों को रखने के लिए जगह कैसे निकालते हैं? इन किताबों के लिए भविष्य में आपका क्या प्लान है ?

एक कहावत है जहां चाह वहां राह. यदि आप कुछ कर गुजरने की क्षमता रखते हैं तो फिर कोई भी वाधा आपके लिए रुकावट नहीं बनेगी. एक अखबार बेचने वाला राष्ट्रपति बन जाता है और एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन जाता है। इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि मेरे पास जो जगह है .उसी जगह मैं ,मैं सब कुछ कर रहा हूं . मैं अपने परिवार और बच्चों के साथ रहता हूं और किताबें भी रखता हूं. भविष्य में एक पुस्तकलय कायम करने का प्लान है.

8-आपकी बेसिक शिक्षा से ये योजना आपके दिमाग़ में आई ?

मेरी पूरी शिक्षा उर्दू में हुई है ,मैं उर्दू में ही काम करता हूं .उर्दू भाषा से मुझे बेहद लगाव है .मैं हमेशा उर्दू भाषा की उन्नति के लिए काम करने का प्रयास करता रहता हूं. मैं अलग-अलग अफसर पर अपने सहपाठियों और जानने वालों को पुस्तक शुरू से भेंट करता रहा हूं यदि मैं किसी की बर्थडे पार्टी या जन्मदिन समारोह अथवा विवाह समारोह में जाता हूं तो कोई ना कोई पुस्तक अवश्य उन्हें भेंट स्वरूप देता हूं. मैं समझता हूं कि सबसे बड़ा गिफ्ट या उपहार किताब है, इसलिए मैं किताब देता हूं।

9-ये कोई और घटना इसके लिए आधार बनी?

आप रीडिंग रूम या किताब पढ़ने के लिए कोई जगह का प्रबंध करेंगे ?
पहले प्रश्न का उत्तर ऊपर दिया जा चूका है दुसरे प्रश्न पर मैं कहना चाहूँगा की भविष्य में रीडिंग रूम या लाइब्रेरी खोलना चाहता हूं परंतु जगह की कमी है यदि जगह का प्रावधान हो जाये तो ये भी काम शुरू हो जायेगा . इस से उन विद्यार्थियों को मदद मिल जाएगी जो जगह के अभाव में पढ़ नहीं पाते हैं. भविष्य में मैं उर्दू की एक पुस्तकालय कायम करना चाहता हूं जहां हर विषय की केवल उर्दू भाषा की किताबें रखी जाएगी.

10- जैसे कि आशा है आपकी ये लाइब्रेरी बहुत कामयाब होगी आप उतना ख़र्च कैसे उठ सकेंगे ?

मैं ये मानता हूँ की पर्त्येक व्यक्ति को समाज के लिए कुछ न कुछ करना चाहिए. कम से कम रस्ते से पत्थर हटा देना चाहिए ताकि किसी को ठोकर न लगे. इसलिए जो मेरे लिए सम्भव है और जो मैं कर सकता हूँ कर रहा हूँ .
फिर मैं यही कहूंग की जहाँ चाह वहां राह …मैं ने नील आर्म स्ट्रांग की तरह चाँद पे पहला क़दम रखा है यदि समाज के समप्प्न लोगों का सहयोग रहेगा तो मेरे अकेले का यह पर्यास एक काफ्ला बन जायेगा . जैसा के मजरूह सुल्तान पूरी ने कहा था:

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया