लोकसभा चुनाव 2024: अंतिम चरण में सतर्क रहें, हिंदू और मुसलमान
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मुस्लिम नाउ विशेष
लोकसभा चुनाव 2024 के छह चरणों के मतदान के दौरान आम हिन्दुस्तानी देख चुका है कि सियासी पार्टियों को उनके मुद्दों और परेशानियों से कोई लेना- देना नहीं है. भारत दोबारा सोने की चिड़िया कैसे बने ? यह बताने के लिए उनके पास विजन का अभाव है. देश से बेरोजगारी, बेकारी, भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं कैसे खत्म होगी, इसके बारे में उनके पास कोई ठोस नजरिया नहीं है. सरकारी अनाज पर पलने वाले 80 करोड़ भारतवासी कैसे अपने पैरों पर खड़े होंगे ? राजनीतिक दलों ने इसको लेकर कोई ठोस खाका तैयार नहीं किया है. पड़ोसी देशों से रिश्ते कैसे सुधरेंगे कि सैनिकों की जान न जाए, सियासी पार्टियां मतदाताओं को यह नहीं बता पाईं. युवा, किसान,मजदूर के मसले भी उनके लिए अहम नहीं रहे.
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इस आधुनिक दौर में भी भारत को धर्म-मजहब के अंधे कुएं में धकेलने की कोशिश हो रही है. आज भी जाति और धर्म पर चुनाव जीतकर सत्ता हथियाने का प्रयास चल रहा है. पार्टियों के घोषणा पत्र दिखावा मात्र हैं. यह पार्टियों के नेताओं के चुनावी भाषणों से साफ पता चल गया.
हिंदू-मुसलमान के मुद्दे से मतदाता मायूस
पूरा चुनाव एक धर्म और हिंदुओं की एक खास जाति के लोगों को कटघरे में खड़ा करने या पुचकारने के लिए लड़ा गया. घोषणा-पत्र में जो वादे किए गए उसे जनता तक पहुंचाने के लिए चुनाव नहीं लड़ा गया. यानी घोषणा-पत्र में जो दिखाया गया, दरअसल वह मात्र छलावा है. असल उद्देश्य तो कुछ और है इन पार्टियों का. सत्ता में आईं तो वह घोषणा पत्र को जमीन पर उतारने से ज्यादा बदलने की राजनीति पर ज्यादा ध्यान देंगी.
पता नहीं क्यों सियासी दल यह समझ नहीं पा रहे हैं कि असल हिंदुस्तान सोशल मीडिया पर नहीं बसता. देश की आधी आबादी युवा है. उन्हें जाति-धर्म के मुद्दे प्रभावित नहीं करते. नई सरकार उन्हें नया क्या देने वाली है, नई पीढ़ी यह सुनना चाहती है. मगर पार्टियों ने मायूस किया. देश के बड़े वर्ग को समझाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है. शायद इस वजह से इस बार की वोटिंग में मौसम की गर्मी से कहीं अधिक वोटरों की खामोशी की आवाज सुनाई पड़ी. वोटिंग प्रतिशत बेहद खराब रहा.
नामचीन चेहरों पर नहीं पड़ रहे वोट
इन पंक्तियों का लेखक भी चुनाव के छठे चरण में वोट डालने गया. वोटरों की पंक्ति में खड़े होकर लोगों की फुसफुसाहट से जो आभास हुआ, उससे साफ पता चला कि इस बार किसी भी सियासी दल के ‘पोस्टर ब्वाॅय’ पर वोट नहीं पड़े. भीषण गर्मी में जो लोग बूथों तक गए, दरअसल उन्हें लोकतंत्र जिंदा रखना है. वोटर की पंक्ति में मेरे पीछे खड़े व्यक्ति ने पूछने पर -‘‘झुंझलाते हुए कहा, कोई भी पार्टी हमें रोटी दे रही है क्या ? मेरी मेरा दिल जिसे चाहेगा उसे ही वोट दूंगा.’’
इस वोटर की बातों से उस सियासी पार्टी के लोगांे को होशियार हो जाना चाहिए जो यह समझते हैं कि पिछले 10 वर्षों से उनके बड़े नेता के नाम पर जनता वोट कर रही है. दरअसल, उनका जादू खत्म हो चुका है. वे शायद सत्ता में नहीं लौट पाए. यदि जनता उन्हें फिर सत्ता सौंपे भी तो इस उम्मीद से कि वे अब परंपरागत सियासत छोड़कर देश को समस्या मुक्त बनाने और सशक्त करने पर ठोस काम करेंगे.
अंतिम चरण के मतदान तक रहें सजग
चूंकि पिछले छह चरण के वोट बेहद कम पड़े. वोटर ने जमकर मायूसी दिखाई. ऐसे में सातवें और अंतिम चरण का चुनाव बेहद टक्कर का होने वाला है. अंतिम चरण में ही सत्ता को लेकर फैसला होगा.
ऐसे में तिकड़मबाज पार्टियां सत्ता पाने के लिए कोई भी हत्थकंडा अपना सकती हैं. अब तक चुनाव में हिंदू-मुसलमान मौखिक हुआ है. सियासी दलों का कोई भरोसा नहीं कि लोगों में उत्तेजना भरने के लिए अंतिम चरण में क्या कुछ कर दें. इसलिए चुनाव परिणाम आने तक हमें सजग रहने की जरूरत है. विशेषकर हिंदू-मुसलमान के वे लोग जो हमेशा दूसरों की लगाई आग को बुझाने में आगे रहते हैं.
इसके अलावा हमें धार्मिक लीडरों का भी धन्यवाद करना चाहिए कि सियासी पार्टियों द्वारा समाज में भड़काने वाले बयान देने के बावजूद उन्होंने अपना मुंह बंद रखा. ऐसा ही प्रयास अंतिम चरण के मतदान तक जारी रखना होगा, ताकि देश में आग लगाने वाले अपने मकसद में कामयाब न हो सके.
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
- सियासी पार्टियों का असली चेहरा: चुनावी घोषणापत्रों के पीछे के असल उद्देश्यों को पहचानें.
- वोटरों की मायूसी: वोटिंग प्रतिशत कम रहना सियासी दलों के प्रति लोगों की निराशा को दर्शाता है.
- धर्म और जाति की राजनीति: जाति और धर्म के मुद्दों पर चुनाव जीतने की कोशिशों से सावधान रहें.
- युवाओं की अपेक्षाएं: नई पीढ़ी की समस्याओं और उम्मीदों पर सियासी दलों का ध्यान नहीं.
- आखिरी चरण की अहमियत: अंतिम चरण में सत्ता के लिए कड़ी टक्कर, सतर्क रहने की जरूरत.
- समाज में शांति बनाए रखें: धार्मिक नेताओं की भूमिका और उनका संयम महत्वपूर्ण.
- फुसफुसाहट में सच्चाई: वोटरों की बातचीत से पता चलता है कि नामचीन चेहरों का जादू खत्म.
- वोटरों का असली मुद्दा: जनता रोटी, रोजगार और सुरक्षा चाहती है, न कि खोखले वादे.
- सियासी पार्टियों की चालें: अंतिम चरण में उत्तेजना बढ़ाने की कोशिशों से बचें.
- लोकतंत्र को जिंदा रखना: बूथों तक जाने वाले मतदाताओं की जिम्मेदारी और सियासी दलों की जवाबदेही.