मोदी 3.0 मंत्रिमंडल में मुस्लिम प्रतिनिधित्व नहीं !
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
नरेंद्र मोदी भले ही अपने मंत्रिमंडल के साथ रविवार को तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ जा रहे हों, पर इसमें मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है. अब तक जो संकेत मिले हैं, उससे पता चलता है कि मोदी के नए मंत्रिमंडल मंे कोई मुस्लिम नाम नहीं है.
बीजेपी की नीति है मुसलमानों को अलग रखना. यही वजह है कि चुनाव में अधिकांश मुसलमान भी बीजेपी से दूर ही रहे. हालांकि, इस बार भी 8 प्रतिशत मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया और राजनाथ सिंह, राव इंद्रजीत सिंह और नितिन गडकरी जैसे नेता एक बार फिर चुनाव जीतने में सफल रहे. बावजूद इसके बीजेपी और मुस्लिम वेटर्स के बीच की तलख्यां कम नहीं हो रही हैं.
चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी-संघ का मुसलमानों के प्रति नरम रूख रहा था. तब लगने लगा था कि 20 करोड़ की मुस्लिम आबादी का एक हिस्सा चुनाव में बहुत हद तक बीजेपी के साथ खड़ा होगा. मगर चुनाव आते ही जिस तरह से भाजपा नेताआंे ने मुसलमानों पर ताबड़ तोड़ हमले किए, अपमानित करने की हद तक बुरा-भला कहा, उससे उसका ही बेड़ा गर्क हो गया. यहां तक पीएम मोदी जिस पसमांदा मुसलमानों की वकालत करते रहे हैं, मुसलमानों को आरक्षण देने के विरूद्ध अभियान चलाने से यह तबका भी बीजेपी से छिटक गया.
पसमांदा नेताओं को लग रहा था कि बीजेपी ही उनका कल्याण करेगी. इसलिए वे खुलकर इसके पक्ष मंे बोलते भी थे. मगर आरक्षण की मुखालफत के बाद उन्हांेने बीजेपी से कन्नी काट ली. मुस्लिम आरक्षण का लाभ पसमांदा को ही मिलेगा.इसके विरोध में बीजेपी नेताओं के उठ खड़े होने से उनकी उम्मीद बुरी तरह टूट गई.
मंत्रिमंडल के संभावित नामों को देखकर लगता है कि बीजेपी इस भूल को सुधार के फिलहाल मुड में नहीं है. इसलिए बीस करोड़ की मुस्लिम आबादी से किसी को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई.खबरों के अनुसार, नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण समारोह से पहले अपने संभावित मंत्रियों को पीएम आवास पर बुलाकर कामकाज के बारे में जरूरी दिशा-निर्देश दिए.
पीएम आवास पर हुई बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, निर्मला सीतारमण, एस. जयशंकर, हरदीप सिंह पुरी, अश्विनी वैष्णव, किरेन रिजिजू, गिरिराज सिंह, रक्षा खडसे, भगीरथ चैधरी, मनोहर लाल खट्टर, शिवराज सिंह चैहान, जितिन प्रसाद, अजय टम्टा, चिराग पासवान, जी. किशन रेड्डी, बी. संजय कुमार, मनसुख मंडाविया, जयंत चैधरी, अर्जुन राम मेघवाल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, पंकज चैधरी, राव इंद्रजीत सिंह, बीएल वर्मा, अन्नपूर्णा देवी, गजेंद्र सिंह शेखावत, एचडी कुमारस्वामी, रामदास आठवले, सर्बानंद सोनोवाल, जीतन राम मांझी, हर्ष मल्होत्रा, नित्यानंद राय, राजीव रंजन (ललन) सिंह, प्रतापराव जाधव और सीआर पाटिल आदि नेता तो मौजूद थे, पर उनमें कोई मुसलमान नहीं था.बताया जा रहा है कि बैठक में संभावित मंत्रियों को ही न्योता दिया गया था, जिनमें से एक भी मुसलमान नहीं था.
चुनाव में बहुमत नहीं मिलने का मुसलमानांे पर फोड़ा जा रहा ठिकरा
हिंदू-मुस्लिम कर समाज में नफरत फैलाने वाले सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार कर रहे हैं कि मुसलमानों ने एक मुश्त कांग्रेस या दूसरे सेक्युलर पार्टियों को वोट दिया है. मसलन, यूपी में सपा को और पश्चिम बंगाल में त्रिणमूल कांग्रेस को. इन दोनों प्रदेशों में बीजेपी को उम्मीद से बहद कम सीटें मिली हंै.
हालांकि बीजेपी को नुकसान तो राजस्थान, हरियाणा और दक्षिण भारत के भी कई सीटों पर हुआ है और इसकी वजह भी व्यापक है. मगर एक वर्ग साजिश के तहत हार का ठिकरा मुसलमनांे पर फोड़ना चाहता है. अब ऐसे लोगों को कोई समझाए कि राजस्थान हो या हरियाणा, चाहे और कोई प्रदेश, जहां बीजेपी को पराजय मिली है, वहां मुसलमान न के बराबर हैं. फिर वे कैसे हारे ?
मुख्य बिंदु:
मंत्रिमंडल में मुसलमानों की गैरमौजूदगी:
- नरेंद्र मोदी के तीसरे मंत्रिमंडल में कोई मुस्लिम प्रतिनिधि शामिल नहीं है.
- संभावित मंत्रियों की सूची में कोई मुस्लिम नाम नहीं.
बीजेपी की मुस्लिम नीति:
बीजेपी की नीति है मुसलमानों को अलग रखना.
चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं द्वारा मुसलमानों पर हमले और अपमानजनक बयानबाजी.
मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रियाएं:
- 8 प्रतिशत मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया, फिर भी मुसलमानों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली।
- पसमांदा मुसलमानों ने बीजेपी से उम्मीद की थी, लेकिन आरक्षण के विरोध के बाद वे भी निराश हुए।
मंत्रिमंडल बैठक:
पीएम मोदी ने संभावित मंत्रियों को पीएम आवास पर बुलाकर दिशा-निर्देश दिए.
बैठक में कोई मुस्लिम नेता शामिल नहीं था.
बीजेपी की हार का ठिकरा:
- सोशल मीडिया पर प्रचार कि मुसलमानों ने कांग्रेस या सेक्युलर पार्टियों को एकमुश्त वोट दिया.
- यूपी और पश्चिम बंगाल में बीजेपी को कम सीटें मिलीं, लेकिन राजस्थान, हरियाणा और दक्षिण भारत में हार की वजहें अलग हैं.
- कुछ वर्गों द्वारा मुसलमानों पर हार का ठिकरा फोड़ने की कोशिश.
पसमांदा मुसलमानों की उम्मीदें:
पसमांदा मुसलमानों ने बीजेपी से कल्याण की उम्मीद की थी.
आरक्षण के विरोध के बाद उन्होंने बीजेपी से दूरी बना ली.