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kangana Ranaut पत्रकार ऐसे बिलबिला रहे, मानों उनके अपने घर तोड़ दिए गए

मीडिया कर्मियों के मौजूदा रवैए से निष्पक्षता की उम्मीद बेमानी

भारतीय मीडिया से फिलहाल निष्पक्षता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। मुंबई महानगर पालिका द्वारा बॉलीवुड अदाकारा कंगना रनौत के ऑफिस के एक हिस्से के विरूद्ध कार्रवाई के बाद देश के तमाम वरिष्ठ पत्रकार तिल मिलाए से हैं। लगता है उनका झुकाव एवं निष्ठा किसी विशेष पक्ष के प्रति है। बीएमसी की तोड़-फोड़ की कार्रवाई पर वरिष्ठ पत्रकारों की प्रतिक्रिया ने उनकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

  पत्रकारों के रवैये से लगता है, उन्हें कंगना रनौत के कार्यालय की एक-एक बात का इल्म है। कंगना अपने कार्यालय परिसर के कागज़ात इन पत्रकारों के पास रखती हैं। पत्रकार अच्छी तरह जानते हैं कि कंगना के  भवन निर्माण में कोई झोल नहीं। यह संभव है कि बीएमसी की मौजूदा कार्रवाई का समय गलत है। इसको लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं। मगर पत्रकारों को भवन निर्माण की गड़बड़ियों पर भी चर्चा करनी चाहिए। कुछ वरिष्ठ पत्रकार तो इस मुददे पर व्यक्तिगत हैसियत से महाराष्ट्र सरकार को चुनौती दे रहे हैं। न्यूज़ चैनल आज तक की वरिष्ठ पत्रकार अंजना ओम कश्यप के ट्वीट देखिए,क्या लिखती हैं-‘‘बीएमसी एंड कंपनी ने बड़ी शिद्दत से आज अपने पैर पर बुल्डोज़र दे मारा। अब अभिव्यक्ति की आजादी मुंबई की सड़कों पर किसी गड्ढे में मिलेगी आपको।’’

अंजना की नजरों में मुंबई को पीओके बताना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ! कंगना ने अपने ऑफिस पर बीएमसी की तोड़-फोड़ की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करते हुए लिखा है #‘पाकिस्तान’। क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी ? अंजना ओम कश्यप ने अपने ट्वीट में इसका जिक्र करना जरूरी नहीं समझा। जाहिर है अभिव्यक्ति की आजादी नहीं मीडिया की निष्पक्षता गड्ढे में है।

पत्रकार ने महाराष्ट्र सरकार को दिया फासिस्ट का तमगा

अंजना ओम कश्यप तो बानगी मात्र हैं। उनके ही चैनल के एक अन्य साथी रोहित सरदाना बड़ी चालाकी से कंगना के मुंह में अपनी बात डालकर लिखते हैं-‘‘आज मेरा घर टूटा है, कल तेरा घमंड टूटेगा।’’

इस बात को देश के दो अन्य न्यूज़ चैनल के चर्चित चेहरे दीप चौरसिया एवं अमीष देवगन ने यूूं कहा-‘‘मेरा घर टूटा है, उद्धव ठाकरे तुम्हारा घमंड टूटेगा।’’

एक खास विचार धारा को सपोर्ट करने वाले  चैनल के एंकर सुशांत सिन्हा ने बीएमसी की कार्रवाई पर महाराष्ट्र सरकार को ‘फासिस्ट’ करार दिया। उद्धव ठाकरे सरकार चाहे तो उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। वह लिखते हैं-‘‘बीएमसी के बुल्डोज़र को गौर से देखिए और समझिए कि इंटॉलरेंस क्या होता है। छह साल से नरेंद्र मोदी को लेकर इसी बॉलीवुड के महानुभवों ने क्या-क्या नहीं कहा, क्या-क्या नहीं लिखा, लेकिन किसी पर एक कार्रवाई नहीं हुई आज तक, जबकि कंगना की टीम के एक बयान पर बुल्डोज़र चल गए। समझ आया फासिस्ट कौन है।’’

हालांकि सुशांत सिन्हा भूल गए या जान-बूझकर जिक्र नहीं किया कि जब महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी तो कॉमेडी किंग कपिल शर्मा के साथ क्या हुआ था ? तब उन्होंने ऐसी प्रखर पत्रकारिता नहीं दिखाई। ऐसी सोंच रखने वाले पत्रकारों की श्रेणी में देश के एक और न्यूज़ चैनल की एंकर रूबीका लियाकत भी हैं। कंगना के समर्थन में उनके खुल कर आने पर जब लोगों ने उनकी आलोचना की तो अपनी गलती सुधारने की बजाए कहती हैं-‘‘बीएमसी की बुजदिली पर चार लाइनें लिखते ही, जंग लगे बुलट्रोलर की कतार लग गई। ऐसे एजेंडे के तहत मुंह पर लगा ताला बंद-खोल करने वालों की न कल परवाह की थी न आज करूंगी।’’

मान लिया, आप अपने आलोचकों की परवाह नहीं करतीं, पर लिखतेे समय वरिष्ठ पत्रकार होने के नाते इतनी समझदारी की उम्मीद की  जा सकती है कि शब्दों का चयन ठीक से करेंगी। क्या सरकारी कार्रवाई बुजदिली है ?

पत्रकारों को अब याद आ रही मुंबई की बदहाली

यह रिपोर्टर पिछले ढाई दशकों से पत्रकारिता के पेशे में है। कई बड़े मीडिया घराने में काम करते वरिष्ठों ने सिखया कि अपने ज्जबात सार्वजनिक मंचों पर न व्यक्त करें। इससे आपकी निष्पक्षता पर सवाल उठेगा। आज के वरिष्ठ पत्रकारों को या तो इसकी समझ नहीं या परवाह नहीं करते। जब उनकी समझ एक पक्षीय है तो उनके नीचे काम करने वाले उनसे क्या सीख कर आगे बढ़ेंग? प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल पत्रकारिता का लंबा अनुभव रखने वाले अजित अंजुम मीडिया के मौजूदा आचरण पर टिप्पणी करते हैं-‘‘दो महीने तक रिया चक्रवती्र के साथ जो हुआ, वो गलत था। कायदे-कानून और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ था। आज कंगना रनौत के साथ बदले की कार्रवाई की गई, वो भी गलत है। दिलचस्प है कि दो महीने से रिया के पीछे पड़े लोग/पत्रकार आज संविधान एवं लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं।’’

पत्रकार स्वाती गोयल शर्मा कहती हैं-‘‘शक्ति का अवैध इस्तेमाल झटका देने वाला है।’’ मगर कंगना-शिवसेना नेता संजय राउत की जुबानदराजी कर उन्होंने टिप्पणी नहीं की। रिचता अनुरूद्ध कहती हैं-‘‘अब समझ आया कि चाहे मुंबई बारिश से कितनी भी बर्बाद हो जाए, सड़क पर गड्ढों की भरमार हो जाए,शहर बरसात के पानी में डूब जाए, घंटों ट्रैफिक जाम लग जाए, कोई फिल्म सितारा बीएमसी के खिलाफ एक शब्द क्यों नहीं लिखता ? भाई अपने घर दफ्तर किसे प्यारा नहीं है।’’

मगर टिप्पणी करते समय भूल गईं कि कंगना व बीएमसी में कोई विवाद नहीं। शिवसेना नेता से उनकी तनातनी है। उन्हें फिल्मी सिरों से इतना ही लगाव है तब रिचा कहां थीं जब अरशद वारसी या किसी अन्य सिने कलाकार के निर्माण के खिलाफ बीएमसी कार्रवाई कर रही थी ? बीएमसी की सारी ग़लतियाँ उन्हें अब नजर आ रही हैं। शहर की बदहाली पर उन्होंने पिछले एक साल में कितनी खबरें या ट्वीट लिखे हैं ? इस मामले में विक्रम चंद्रा जैसे पत्रकार भी अप्रत्यक्ष रूप से कंगना के साथ खड़े नजर आ रहे, पर उन्होंने भी मुंबई को पीओके और पाकिस्तान बताने पर कुछ नहीं लिखा।

कंगना बदतमीजी पर उतर आई हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को बाबर और न जाने क्या-क्या कह रहीं, पर कोई पत्रकार मुंह नहीं खोल रहा है।

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संपादक