सूफीवाद, शिक्षा और समाज के विकास पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में स्मारक व्याख्यान
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो | नई दिल्ली
भारत में सूफीवाद और शिक्षा के आपसी संबंध को उजागर करने के उद्देश्य से जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में शुक्रवार को डॉ. सलामतुल्लाह स्मारक व्याख्यान का आयोजन किया गया. इस व्याख्यान का विषय था “सूफीवाद और शिक्षा के माध्यम से समाज का विकास – दक्कन का एक केस स्टडी”.
यह आयोजन शिक्षा संकाय के शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनौपचारिक शिक्षा विभाग द्वारा किया गया, जिसमें देश के प्रख्यात शिक्षाविदों, शोधार्थियों, संकाय सदस्यों और छात्रों ने भाग लिया.
सूफीवाद और शिक्षा का गहरा रिश्ता
इस प्रतिष्ठित व्याख्यान में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के भारतीय भाषा समिति के सलाहकार प्रो. एस.एम. अजीजुद्दीन हुसैन ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने मध्यकालीन भारत, खासकर दक्कन में सूफीवाद और शिक्षा के प्रभाव पर विस्तार से चर्चा की.
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि इस्लाम के सिद्धांतों में महिलाओं के सशक्तिकरण की गहरी जड़ें हैं. उन्होंने राजशाही काल में महिलाओं की शिक्षा की अनदेखी पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जब सूफीवाद दक्कन में फैला, तब महिलाओं की शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाने लगा.

महिला शिक्षा के लिए सूफी परंपरा का योगदान
प्रो. अजीजुद्दीन हुसैन ने ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर बताया कि दक्कन में सूफीवाद के प्रभाव से महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा मिला.
🔹 उन्होंने कहा कि उस दौर में महिलाओं की शिक्षा के लिए 88 पुस्तकें लिखी गईं, जो बताती हैं कि किस तरह इस्लामी विद्वानों और सूफियों ने महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया.
🔹 उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों की महिला विद्वानों का उल्लेख किया, जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
🔹 उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दक्कन में विश्वविद्यालयों की स्थापना के समय से ही महिलाओं को प्रवेश दिया गया, जो भारत में महिला शिक्षा के लिए एक क्रांतिकारी कदम था.
कुलपति प्रो. मजहर आसिफ का अध्यक्षीय भाषण
स्मारक व्याख्यान के अंत में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के माननीय कुलपति प्रो. मजहर आसिफ ने अपने अध्यक्षीय भाषण में सूफीवाद की गहराई और उसके आध्यात्मिक पहलुओं पर प्रकाश डाला.
उन्होंने कहा कि,
“जैसे छात्र शिक्षक की भूमिका को अर्थ देते हैं, वैसे ही हमारा विश्वास ईश्वर के अस्तित्व को अर्थ देता है.”
उन्होंने सूफीवाद को “स्व की खोज” और “ईश्वर से जुड़ाव” का माध्यम बताया. उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सूफी संतों ने समाज को प्रेम, सहिष्णुता और शिक्षा का संदेश दिया.
स्मारक व्याख्यान का ऐतिहासिक महत्व
इस आयोजन के महत्व को समझाते हुए शिक्षा संकाय की डीन प्रो. सारा बेगम ने बताया कि डॉ. सलामतुल्लाह स्मारक व्याख्यान 2003 से आयोजित किया जा रहा है।. यह व्याख्यान भारतीय शिक्षा प्रणाली में महिला शिक्षा और सूफीवाद जैसे विषयों को उजागर करने का काम करता है.
🔹 डॉ. सलामतुल्लाह के योगदान का सम्मान
- प्रो. जसीम अहमद, जो इस कार्यक्रम के आयोजन सचिव थे, उन्होंने डॉ. सलामतुल्लाह के शिक्षा जगत में योगदान पर चर्चा की.
- उन्होंने बताया कि डॉ. सलामतुल्लाह ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शिक्षक, शिक्षक महाविद्यालय के प्राचार्य और कार्यवाहक कुलपति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
- उन्होंने शिक्षा में नवाचार और प्रयोगों को बढ़ावा दिया, जिससे जामिया का शिक्षक प्रशिक्षण और अनौपचारिक शिक्षा विभाग नई ऊंचाइयों तक पहुंचा.
कार्यक्रम का भव्य आयोजन
कार्यक्रम की शुरुआत बी.एड. के छात्र मोहम्मद मतलूब रजा द्वारा क़िरात से हुई. इसके बाद श्री जीशान अहमद ज़मीर और उनकी टीम द्वारा “तराना-ए-जामिया” प्रस्तुत किया गया।.डॉ. सलामतुल्लाह के परिवार के सदस्यों और मुख्य अतिथि प्रो. एस.एम. अजीजुद्दीन हुसैन का विश्वविद्यालय की ओर से अंगवस्त्रम, पौधे और मिरर पेंटिंग्स देकर सम्मान किया गया.
प्रो. वीरा गुप्ता ने औपचारिक रूप से मुख्य अतिथि का परिचय दिया और उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों, शोध कार्यों और जामिया में उनकी प्रशासनिक भूमिकाओं पर चर्चा क.।
समापन और भविष्य की संभावनाएँ
इस व्याख्यान में शोधार्थियों, स्नातकोत्तर और स्नातक छात्रों, तथा संकाय सदस्यों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया.
कार्यक्रम का समापन प्रो. रूही फातिमा के औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ और अंत में राष्ट्रगान गाया गया.
🔹 महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
1️⃣ सूफीवाद केवल आध्यात्मिकता नहीं, बल्कि समाज सुधार का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी रहा है.
2️⃣ महिला शिक्षा को बढ़ावा देने में सूफियों की भूमिका ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रही है.
3️⃣ जामिया मिल्लिया इस्लामिया, शिक्षा और आध्यात्मिकता के मेल से सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए इस तरह के आयोजन करता रहेगा.
क्या सीखने को मिला?
यह व्याख्यान इस बात को दोहराता है कि शिक्षा और आध्यात्मिकता एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं. समाज को विकसित करने के लिए सूफीवाद के सिद्धांत और शिक्षा को अपनाने की आवश्यकता है.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने इस ऐतिहासिक आयोजन के माध्यम से शिक्षा और सूफीवाद के परस्पर संबंध को नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है, जिससे युवा पीढ़ी प्रेरित होगी और आगे इस विषय पर और अधिक शोध होगा।
🔹 क्या इस तरह के व्याख्यान समाज में बदलाव ला सकते हैं?
🔹 क्या सूफीवाद आज भी समाज सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है?
इन सवालों के जवाब हमें भविष्य में मिलेंगे, लेकिन इतना तय है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया का यह प्रयास शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है।.🚀📖
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