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योगी आदित्यनाथ का उर्दू पर बयान: सोशल मीडिया पर मचा बवाल

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक हालिया बयान ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हंगामा खड़ा कर दिया है। उन्होंने यूपी विधानसभा में उर्दू को “कठमुल्लों की भाषा” कहा, जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी कड़ी आलोचना शुरू हो गई है।

उर्दू पर मुख्यमंत्री के बयान की आलोचना

उर्दू भाषा की गहरी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जड़ें हैं। इसे हिंदी की बहन भाषा कहा जाता है और यह भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति का अहम हिस्सा रही है। भारत सहित दुनियाभर के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में उर्दू की पढ़ाई करवाई जाती है। प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेमचंद, कृष्णचंद्र, फिराक गोरखपुरी, और बेदी जैसे कई लेखक उर्दू के महान रचनाकार रहे हैं। ऐसे में यूपी के मुख्यमंत्री का यह बयान स्वाभाविक रूप से विवाद का कारण बना।

सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया

योगी आदित्यनाथ के इस बयान पर सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कई उर्दू प्रेमी और साहित्यकारों ने इस बयान की आलोचना करते हुए इसे गलत और भ्रामक बताया।

डॉ. राकेश पाठक نے ट्विटर पर लिखा:

“सुनिए ‘जोगी’ जी, उर्दू इसी देश की भाषा है, यहीं पैदा हुई है। उसे ‘कठमुल्ला’ बनाने वाली भाषा बता कर अनादर न कीजिए। अमीर खुसरो, मीर, ग़ालिब, इक़बाल से लेकर प्रेमचंद तक उर्दू की शान हैं।”

उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पाण्डेय ने भी इस पर सवाल उठाया:

“मैं मुख्यमंत्री जी से पूछना चाहूंगा कि क्या मुंशी प्रेमचंद, जिन्होंने उर्दू में उपन्यास लिखे, कठमुल्ला थे? क्या यूनिवर्सिटीज़ में जो उर्दू के विभाग खोले गए, उनमें पढ़ने वाले छात्र कठमुल्ला हैं? मैं इस शब्द पर आपत्ति दर्ज करता हूं।”

इतिहास और साहित्य के नजरिए से उर्दू का महत्व

उर्दू भाषा ने भारत को बेहतरीन साहित्य और कवि दिए हैं। फिराक गोरखपुरी, मिर्ज़ा ग़ालिब, फैज़ अहमद फैज़, साहिर लुधियानवी और जावेद अख्तर जैसे लेखकों ने उर्दू साहित्य को समृद्ध किया है। गुलज़ार देहलवी उर्फ़ आनंद मोहन ज़ुत्शी जैसे हिंदू उर्दू विद्वानों ने भी इस भाषा की सेवा की है।

यूपी के मुख्यमंत्री के बयान के बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर गुलज़ार देहलवी और सागर ख़य्यामी के भाषणों को साझा किया, जिससे उर्दू की नफासत और ताकत को समझाने की कोशिश की गई।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

इस विवाद ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है। कई विपक्षी दलों ने इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश बताया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं ने इस बयान की कड़ी निंदा की है।

युवा पत्रकार प्रियंशु कुशवाहा ने ट्वीट किया:

“गांव के स्कूलों में संसाधन क्यों नहीं हैं? आप धर्म बेचकर बाबा बन सकते हैं, लेकिन मुसलमान मौलवी नहीं बन सकता? मौलवी को कठमुल्ला बोलते हो, अगर आपको कोई पोंगा-पाखंडी बोले तो रोते हुए थाने पहुंच जाओगे!”

निष्कर्ष

योगी आदित्यनाथ का यह बयान न केवल उर्दू भाषा के गौरव को ठेस पहुंचाने वाला है, बल्कि इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा मिल सकता है। उर्दू भारत की साझा विरासत है, और इसे कठमुल्लों की भाषा कहना न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को नकारने जैसा है, बल्कि यह भाषा प्रेमियों के लिए भी एक अपमानजनक टिप्पणी है।

समाज को इस तरह के बयानों से ऊपर उठकर भाषा और संस्कृति की सुंदरता को सराहना चाहिए, न कि उसे किसी खास धर्म से जोड़कर विवाद खड़ा करना चाहिए।