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क्या कश्मीरियों पर बढ़ते हमले भारत की एकता को कमजोर कर रहे हैं? एक ज़रूरी रिपोर्ट

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,,श्रीनगर/नई दिल्ली

दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में हालिया हिंसक घटना के बाद घाटी के भीतर और बाहर रह रहे कश्मीरियों पर व्यापक दमनात्मक कार्रवाई की खबरें सामने आ रही हैं। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता मीरवाइज उमर फारूक ने भारत सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि “एक घटना की सामूहिक सजा” कश्मीरी जनता को दी जा रही है।

🔴 “हम निंदा भी करें, फिर भी हम ही निशाने पर क्यों?” — मीरवाइज

मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि पहलगाम की घटना की सर्वसम्मत निंदा कश्मीरी जनता द्वारा की गई है, बावजूद इसके हजारों कश्मीरियों को हिरासत में लिया गया, सैकड़ों घरों को ध्वस्त किया गया, और कई परिवार विस्थापित हुए हैं

उन्होंने विशेष रूप से अल्ताफ लाली और गुलाम रसूल मर्गी की मौतों को लेकर सवाल उठाए, जिनके परिवारों का दावा है कि यह न्यायेतर हत्याएं (extra-judicial killings) हैं। मीरवाइज ने इन हत्याओं की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की।

🔻 मानवीय संकट: “लोग बंट गए, मौतें बसों में हो रहीं”

मीरवाइज ने आगे कहा कि घाटी में उत्पन्न हालात केवल सुरक्षा नहीं, गंभीर मानवीय संकट को दर्शाते हैं। उन्होंने 80 वर्षीय लकवाग्रस्त अब्दुल वहीद भट की मौत का ज़िक्र किया, जो निर्वासन के दौरान बस में ही दम तोड़ बैठे

“माताएं अपने बच्चों से, पत्नियाँ अपने पतियों से, भाई अपने बहनों से अलग हो रहे हैं। यह कैसा न्याय है?” — मीरवाइज उमर फारूक

उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि जम्मू-कश्मीर में शांति और स्थायित्व चाहने का दावा तब तक खोखला रहेगा, जब तक इन दमनात्मक कार्रवाइयों को रोका नहीं जाता।


📍 भारत के विभिन्न राज्यों में कश्मीरी छात्रों पर हमले

इस बीच, पहलगाम कांड के बाद देशभर में कश्मीरी छात्रों पर हमलों, उत्पीड़न और खदेड़े जाने की घटनाएं तेज़ी से सामने आई हैं।

  • पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से अब तक 700 से अधिक कश्मीरी छात्र वापस घाटी लौट चुके हैं
  • छात्रों ने बताया कि हॉस्टलों से निकाले जाने, जातिवादी और कश्मीरी विरोधी गालियों, शारीरिक हमलों, और जान से मारने की धमकियों का सामना उन्हें करना पड़ा।

🔸 दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में एक कश्मीरी छात्रा पर मेस कर्मचारी ने हमला किया, जिसकी पुष्टि छात्र संगठन AISA ने की है। यह घटना 27 अप्रैल की रात की है।

🔸 पंजाब के खरड़ क्षेत्र में एक छात्र पर पत्थर और डंडों से हमला किया गया। हमलावरों ने चिल्लाया, “हम तुम सबको खत्म कर देंगे।”

🔸 मोहाली के सरस्वती ग्रुप ऑफ कॉलेज में छात्र ज़ाकिर वार ने कहा —

“पहले हम सब मिलजुल कर रहते थे, लेकिन अब हमें आतंकवादी कहा जा रहा है। हमारा जीवन खतरे में है।”


🧣 कश्मीरी व्यापारियों को भी नहीं बख्शा गया

छात्रों के साथ-साथ उत्तराखंड और अन्य राज्यों में कार्यरत कश्मीरी शॉल विक्रेताओं को भी निशाना बनाया गया। करीब एक दर्जन विक्रेताओं को पीटा गया और क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर किया गया।


🔍 क्या अपराधियों को पकड़ने के नाम पर सामूहिक सज़ा दी जा रही?

मीरवाइज ने कड़े शब्दों में सवाल उठाया कि

“अगर इन हमलों और गिरफ्तारी का मक़सद अपराधियों को सज़ा देना है, तो कश्मीरी जनता को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? क्या यह नीति भारत सरकार को वास्तविक शांति दिला पाएगी?”

उन्होंने JKAAC (जम्मू-कश्मीर अल्टरनेटिव अवेयरनेस काउंसिल) पर राजनीतिक रूप से प्रेरित प्रतिबंध और पुलिस द्वारा धमकियों का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि

“ऐसे संगठन जो हमेशा शांति और संवाद के पक्षधर रहे हैं, उन्हें डराने की नीति का हिस्सा बनाया जा रहा है।”


🤝 भारत-पाक संबंधों में तनाव और कश्मीर की जनता की उम्मीद

अपने बयान के अंत में मीरवाइज उमर फारूक ने भारत और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते हालात पर चिंता जताते हुए कहा —

“हम दुआ करते हैं कि दोनों देश युद्ध से पहले ही समझदारी दिखाएं और इस क्षेत्र को तबाही से बचाएं।”


🧭 निष्कर्ष:

भारत में हाल की आतंकी घटनाओं के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता वाजिब है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या उसकी आड़ में निर्दोष नागरिकों और छात्रों को प्रताड़ित किया जाना उचित है?
घाटी से लौटे छात्र और कारोबारी कभी भारत की मुख्यधारा का हिस्सा बन पाएंगे या नहीं, यह सवाल अब पूरे देश के सामने खड़ा है।