कर्नल सोफिया और एयर वाइस मार्शल राठेर की कामयाबी पर चुप क्यों हैं मुस्लिम संगठन?
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मुस्लिम नाउ विशेष
जब देश एकजुट होकर भारतीय मुसलमानों की गौरवपूर्ण उपलब्धियों पर तालियां बजा रहा हो, तब खुद मुसलमानों की चुप्पी असहज कर देने वाली लगती है।
कर्नल सोफिया कुरैशी और एयर वाइस मार्शल हिलाल अहमद राठेर — दो ऐसे नाम, जिन्होंने भारत की सैन्य ताकत, रणनीतिक क्षमता और महिला नेतृत्व की गरिमा को एक नए शिखर पर पहुंचाया, लेकिन क्या देश के मुस्लिम संगठनों ने इनकी सराहना की?
हैरानी होती है जब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, जमात-ए-इस्लामी, रज़ा अकादमी या सूफी दरगाहों के नेता इन शख्सियतों पर एक शब्द भी कहने से परहेज़ करते हैं। ये वही संस्थान हैं जो अक्सर मुसलमानों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं, लेकिन जब समुदाय के भीतर से कोई शख्स राष्ट्रीय मंच पर चमकता है, तो इनकी जुबान सिल जाती है।

क्या अपने नायकों से परहेज़ है मुसलमानों को?
भारत के मुसलमान क्या तारीफ करना भूल गए हैं? या फिर जब कोई अपने समाज से निकलकर ऊंचाई छूता है, तो उसे देखकर जलन होने लगती है?
ऐसा पहली बार नहीं हुआ। एपीजे अब्दुल कलाम — जिन्हें पूरा देश मिसाइल मैन और राष्ट्रपिता की तरह मानता है — क्या किसी बड़े मुस्लिम संगठन ने उन्हें अपने मंच पर बुलाया? क्या किसी बड़े मदरसे में उनकी जीवनी पढ़ाई जाती है? क्या किसी मुस्लिम संस्थान की दीवार पर उनकी तस्वीर टंगी है?
उनसे बस इतनी शिकायत की गई कि वे साधुओं के साथ बैठे, वीणा बजाई और भारतीय संस्कृति के प्रतीक बने। लेकिन इस बात की कोई कद्र नहीं की गई कि उन्होंने भारत को अंतरिक्ष और परमाणु शक्ति के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया।

ये चुप्पी अपनों के लिए क्यों?
शाह फ़ैसल, सानिया मिर्ज़ा, निखत ज़रीन, जहीर ख़ान, नवाब पटौदी, मुहम्मद समीजैसे नाम — जब खेल, शिक्षा या प्रशासन में ऊंचा मुकाम हासिल करते हैं, तो दुनिया उन्हें सलाम करती है। लेकिन मुस्लिम संस्थाएं? उन्हें अपने मंच पर बुलाने में सांस फूलने लगती है।
अब कर्नल सोफिया कुरैशी को ही देखिए — भारतीय सेना के इतिहास में पहली बार किसी महिला अफसर ने एक अंतरराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास की अगुवाई की। अभी हाल ही में उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग का नेतृत्व किया, जो पाकिस्तान को सबक सिखाने वाला एक अहम एयरस्ट्राइक था।
जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा देश और सेना के साथ पूर्ण एकजुटता की घोषणा
— Jamiat Ulama-i-Hind (@JamiatUlama_in) May 7, 2025
नई दिल्ली, 7 मई: जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में भारत द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद देश की…
दूसरी तरफ, एयर वाइस मार्शल हिलाल अहमद राठेर — एक कश्मीरी मुस्लिम, जिन्होंने राफेल जेट को पाकिस्तान की आतंकी धरती तक पहुंचाने की रणनीति बनाई। वे फ्रांस में भारत के एयर अटैची रहे और आज वायुसेना की रीढ़ माने जाते हैं।
इन दोनों की तारीफ में पूरा देश एकजुट है — यहां तक कि वे लोग भी जो आमतौर पर मुसलमानों की आलोचना करने से पीछे नहीं हटते। लेकिन मुस्लिम संस्थाएं? सोशल मीडिया पर आतंकवाद के खिलाफ कड़े बयान देने के बावजूद, इन दोनों नामों पर चुप हैं। क्या ये मौन संकोच है या ईर्ष्या?
मुस्लिम नेतृत्व को आत्ममंथन की ज़रूरत
आज भारत में जब कोई मुसलमान देश का नाम रोशन करता है, तो उसकी सबसे बड़ी परीक्षा अपने ही समाज में होती है।
उसे सिर्फ कामयाबी नहीं, बल्कि ‘मुस्लिम पहचान के अनुरूप व्यवहार’ भी साबित करना पड़ता है।
Delhi: On #OperationSindoor, #RazaAcademy President Saeed Noori says, "We congratulate our armed forces for launching this campaign against terrorists and enemies of the nation. It is also clear that we are not fighting any country, but targeting terrorism. We have always stood… pic.twitter.com/9GV0FftqSA
— Raza Academy (@razaacademyho) May 7, 2025
क्या हमारे संगठनों को यह डर है कि तारीफ कर दी तो कहीं उन्हें ‘सरकारी मुसलमान’ या ‘गैर-इस्लामी’ न मान लिया जाए?
यह मानसिकता सिर्फ नाइंसाफी ही नहीं, आत्मविनाश की राह है।
अब चुप्पी नहीं, नेतृत्व की ज़रूरत है
भारत के मुसलमानों को अब यह तय करना होगा कि वे किन चेहरों को अपना आदर्श मानते हैं। क्या वे सिर्फ शोषण, पीड़ितता और सियासी नारों के जरिए अपनी पहचान गढ़ेंगे, या फिर कर्नल सोफिया और एयर वाइस मार्शल राठेर जैसे रोल मॉडल को गले लगाएंगे?
آپریشن سندور پر امیر جماعت اسلامی ہند ، سید سعادت اللہ حسینی کا بیان
— Jamaat-e-Islami Hind (@JIHMarkaz) May 7, 2025
جماعت اسلامی ہند دہشت گردی کو ایک سنگین مسئلہ اور انسانیت کے خلاف بھیانک جرم سمجھتی ہے، اور ملک اور اس کے عوام کی سلامتی اور امن کے لیے اس کے مکمل خاتمے کو ضروری قرار دیتی ہے۔
ملک کی مسلح افواج اور سیکیورٹی… pic.twitter.com/3GnvlzgF9Z
मुस्लिम संस्थाओं को चाहिए कि वे ऐसी शख्सियतों को अपने मंच पर बुलाएं, सम्मान दें, और नई पीढ़ी को दिखाएं कि मुसलमान सिर्फ राजनीति या पीड़ितता का प्रतीक नहीं, बल्कि साहस, नेतृत्व और देशभक्ति की मिसाल भी हैं।
क्योंकि अगर आज भी हम अपने असली नायकों पर चुप रहेंगे, तो कल इतिहास हमारे खिलाफ गवाही देगा।