कोर्ट का वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण का आदेश
अयोध्या की बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जो लोग यह समझ रहे थे कि मथुरा और काशी के मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर लंबे समय से चला आ रहा विवाद अब ठंडे बस्ते में चला जाएगा. उन्हें यह खबर मायूस कर सकती है कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के पक्ष में फैसला देते हुए अदालत ने ज्ञानवापी परिसर का रडार तकनीक से पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मंजूरी दे दी है. सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत ने गुरुवार को विजय शंकर रस्तोगी के आवेदन को स्वीकार कर लिया. हालांकि यह फैसला कोर्ट का है, पर निश्चित ही उन लोगों को शोर-शराबे का मौका मिलेगा जो ऐसे ही मुद्दों को उछाल कर देश की शांति मंे आग लगाते रहे हैं. ऐसे लोगों की जमात ने मथुरा-काशी की यथास्थिति को कोर्ट में चुनौती दे रखी है.
बहरहाल, अदालत में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ के वाद मित्र विजयशंकर रस्तोगी की तरफ से वर्ष 1991 से लंबित इस प्राचीन मुकदमे में आवेदन दिया था. जिसमें कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के आराजी नंबर 9130, 9131, 9132 रकबा एक बीघे नौ बिस्वा जमीन का पुरातात्विक सर्वेक्षण रडार तकनीक से करके यह बताया जाए कि जो जमीन है, वह मंदिर का अवशेष है या नहीं.
साथ ही विवादित ढांचे का फर्श तोड़कर देखा जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं. दीवारें प्राचीन मंदिर की हैं या नहीं.
यदि दावे के अनुरूप मस्जिद की जमीन से ऐसा कुछ नहीं निकला तो, इसका खामयाजा कौन भुगतेगा या उनके खिलाफ किस तरह की कानूनी कार्रवाई की जाएगी ? इसपर किसी ने अब तक कुछ नहीं कहा है.
दूसरी तरफ, याचिकाकर्ता का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ है. साल 1991 से चल रहे इस विवाद में 2 अप्रैल को सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के सिविल जज आशुतोष तिवारी ने दोनों पक्षों के सर्वेक्षण के मुद्दे पर बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. केंद्र के पुरातत्व विभाग के 5 लोगों की टीम बनाकर पूरे परिसर का अध्यन करने निर्देश दिया है. यह भी कहा है कि सर्वेक्षण का खर्च राज्य सरकार उठाएगी. रस्तोगी ने कहा कि 1669 में मंदिर को तोड़ा गया था और फिर विवादित ढांचा खड़ा कर दिया गया था. बाकी सारे अवशेष वहां मौजूद हैं. इस ढांचे के नीचे शिवलिंग मौजूद है.
कोर्ट से मांग की है कि पुरातात्विक विभाग उसका सर्वे करके खुदाई करे. कोर्ट ने हमारे पक्ष को स्वीकार कर लिया है. साथ ही आदेश दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार और आक्योलाॅजिकल सर्वे ऑफ इंडिया अपने खर्चे पर सर्वे कर रिपोर्ट पेश करे.
अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने साल 2019 में सिविल जज की अदालत में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर काशी विश्वनाथ की ओर से श्वाद मित्र के रूप में एक आवेदन दिया था, जिसमें उन्होंने मांग की थी कि मस्जिद, ज्योतिसिर्लिग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है. जहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ, दर्शन और मरम्मत का अधिकार है.
कोर्ट से ये मांग स्वयंभू ज्योतिर्लिग विश्वेश्वर के पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास ने किया था. पुरातात्विक सर्वेक्षण कराकर मुद्दे को हल किया जाए. याचिकाकर्ता का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले महाराज विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने साल 1664 में मंदिर को नष्ट करा दिया था.
पूरे मामले में वादी के तौर पर स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर काशी विश्वनाथ और दूसरा पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड हैं. अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से अधिवक्ता मुमताज अहमद, रईस अहमद सेंट्रल वक्फ बोर्ड यूपी तौफीक खान और अभय यादव ने कोर्ट में बहस की थी.