तेलंगाना में बीजेपी को रोकने में असमर्थ ओवैसी अब दिल्ली के मुसलमानों को पिलाएंगे घुट्टी
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर पर्दे के पीछे से भाजपा को मजबूत करने के गंभीर आरोप लगते रहे हैं. उनकी पार्टी जिस प्रदेश में उतरती है, वहां ऐसा संप्रदायिक ध्रुवीकरण होता है कि बीजेपी मजबूत बनकर उभरती है. यहां तक कि ओवैसी की नीतियों के चलते ही बीजेपी ने तेलंगाना और एआईएमआईएम के गढ़ हैदराबाद में अपना मजबूत जनाधार तैयार कर लिया है. अब वही ओवैसी दिल्ली के मुसलमानों को घुट्टी पिलाने की योजना बना रहे हैं. यहां उल्लेखनीय है कि तमाम प्रयासों के बावजूद बीजेपी पिछले दो टर्म से दिल्ली विधानसभा में कुछ खास नहीं कर पा रही है. ऐसे में ओवैसी के बयान के साथ ही चर्चा होने लगी है कि अब क्या वह दिल्ली में बीजेपी को मजबूत करने निकले हैं ?
बहरहाल, न्यूज एजेंसी आईएनएस की एक रिपोर्ट के अनुसार,असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम राष्ट्रीय राजधानी में अपने आधार का विस्तार करने की कोशिश कर रही है, और यहां उसने अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करना शुरू कर दिया है.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष कलीमुल हाफीज ने कहा कि पार्टी दिल्ली के मुसलमानों के लिए एक व्यावहारिक विकल्प बनेगी, क्योंकि आप ऐसा करने में विफल रही और कांग्रेस अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दों पर प्रतिबद्ध नहीं है.
दिल्ली में एमआईएम अनुसूचित जाति समुदाय के साथ गठबंधन करने और राष्ट्रीय राजधानी में दलित-मुस्लिम गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है. हाफीज ने कहा कि दिल्ली मेट्रो है और हैदराबाद भी है और हैदराबाद में मजलिस के बिना कोई भी नगर पालिका नहीं चल सकती.
यह पूछे जाने पर कि पार्टी क्यों सोचती है कि दलित उनके साथ आएंगे, उन्होंने कहा कि पार्टी नेता ओवैसी की राजनीति अंबेडकर पर आधारित है. उन्होंने कहा, ‘‘वह अपने भाषणों में केवल बाबासाहेब को उद्धृत करते हैं और उनके अलावा किसी नेता को नहीं. वह बाबा साहब के विचारों पर भरोसा करते हैं.‘‘
पार्टी ने महाराष्ट्र में अम्बेडकरवादियों के साथ गठबंधन किया है और चुनावी रूप से सफल रही है.पार्टी दिल्ली में एमसीडी के 272 वाडरें में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का इरादा रखती है और पार्टी के अनुसूचित जाति के सदस्यों को 30 सीटें देगी. यह उन वाडरें में चुनाव लड़ने की योजना बना रहा है जहां मुस्लिम मतदाता 5,000 से अधिक हैं.
पार्टी ने कहा कि वह पूर्वी दिल्ली नगर निगम के लिए एक दलित मेयर उम्मीदवार की घोषणा करेगी क्योंकि ईडीएमसी में मुसलमानों और दलितों की संख्या सबसे अधिक है.
पार्टी ने अनुसूचित जाति के वोटों को लुभाने के लिए दो दलित नेताओं को शामिल किया है, जो एक बड़ी आबादी है. हफीज ने कहा कि अगर दलित और मुसलमान एकजुट हो जाते हैं, तो यह हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा, और फिर कांग्रेस और आप दोनों मुस्लिमों के मुद्दों को उठाने के लिए मजबूर हो जाएंगे.
यह जवाब देते हुए कि वे ‘वोट कटवा‘ हैं या भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए मुस्लिम वोटों को विभाजित कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कोई एमआईएम नहीं था, लेकिन आप और कांग्रेस के कुल वोट भाजपा से कम थे। तो इसका मतलब है कि वे सिर्फ एमआईएम को निशाना बना रहे हैं क्योंकि यह देश में मुस्लिम मुद्दों को उठा रहा है.
हाफीज ने कहा कि कांग्रेस और आप हिंदुओं के दूर जाने के डर से मुसलमानों से दूर भाग रहे हैं क्योंकि उन्होंने राबिया सैफी के मामले का हवाला दिया, जो सिविल डिफेंस में थीं और उनके परिवार में कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा, लेकिन वही राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल इसी तरह के मामले में पश्चिमी दिल्ली में एक पीड़ित से मिलने के लिए गए.
कलीमुल हफीज पहले आप में थे. उन्होंने कहा कि वह एक पदाधिकारी नहीं थे, लेकिन मुसलमानों के लिए स्कूल स्थापित करने के लिए समिति का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘जब हम एक स्कूल खोलने वाले थे और शिक्षकों, प्रिंसिपल और डिप्टी डायरेक्टर को शॉर्टलिस्ट किया गया, तो केजरीवाल ने बहुमत के वोट खोने के डर से उन्हें रोक दिया, इसलिए मैंने पार्टी छोड़ने और एमआईएम में शामिल होने का फैसला किया.‘‘
एमआईएम उत्तर प्रदेश में लगभग 100 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, और मुस्लिम बेल्ट में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है.बिहार में पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली पार्टी बिहार में महागठबंधन की हार का एक प्रमुख कारण थी, हालांकि पार्टी पश्चिम बंगाल में ज्यादा कुछ नहीं कर सकी जहां अल्पसंख्यकों ने तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया. हाफीज ने हालांकि इसका काउंटर करते हुए कहा कि इसका कारण यह था कि पार्टी बहुत कम सीटों पर लड़ी थी और राज्य प्रमुख ने चुनाव से ठीक पहले पार्टी छोड़ दी थी.
इनपुटः आईएएनएस