सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को अधिकार दिलाया नहीं, चले मस्जिदों और ईदगाहों में औरतों को नमाज पढ़ने की अनुमति दिलाने
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो , नई दिल्ली
पिछले सात-आठ वर्षों से कुछ गैर इस्लामिक और गैर मुस्लिम संगठन कुछ इस तरह खुद को पेश कर रहे हैं मानों वह मुसलमानों के और विशेषकर मुस्लिम महिलाओं के सबसे बड़े हमदर्द हैं. इस क्रम में चंद घटनओं को ढाल बनाकर तीन तलाक का कानून बनाया गया, शादी की उम्र 21 वर्ष कर दी गई, स्कूल-काॅलेज में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की साजिशें चल रही हैं और अब यह कहा जा रहा है कि मुस्लिम औरतें मस्जिदों एवं दरगाहों में नमाज नहीं पढ़ सकतीं. उन्हें उनका हक दिलाने के लिए मुहिम चलाया जाएगा. जब कि वास्तविकता यह है कि मस्जिदांे में औरतों के नमाज पढ़ने पर कोई रोक टोक नहीं हैं. वह अलग कतार बनाकर किसी भी मस्जिद के किसी भी हिस्से में नमाज अदा कर सकती हैं. दिल्ली की जामा मस्जिद इसका बेहतर उदाहरण हैं. मुसमलानों के पवित्र स्थल मक्का-मदीना से तो बड़ी तो कोई मिसाल ही नहीं हो सकती. इसके उलट दक्षिण भारत के सबरी माला मंदिर में तमाम विवाद, सुप्रीम कोर्ट के हस्ताक्षेप के बावजूद अब तक वहां महिलाओं को प्रवेश करने का हक नहीं दिया गया है. इसपर आंदोलन चलाने की बजाए अब मस्जिदों एवं दरगाहों में महिलाओं को प्रवेश दिलाने के लिए मुहिम छेड़ने का नाटक किया जा रहा है.
पहले इस नए नाटक के बारे में बात करते हैं, उसके बाद सबरी माला मंदिर विवाद की बातें.
आरएसएस मस्जिद और दरगाहों को लेकर चलाएगा मुहिम
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज पढ़ने की अनुमति दिलाने के लिए मुहिम चलाने जा रहा है. इसके साथ ही मंच ने शादी की न्यूनतम उम्र तय करवाने के लिए भी राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने का फैसला किया है. मजे की बात यह है कि मंच को पता नहीं कि दरगाहों पर मर्द-औरत के लिए नमाज पढ़ने की कोई व्यव्यस्था नहीं होती.
दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता , मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संस्थापक एवं मुख्य सरंक्षक इंद्रेश कुमार के नेतृत्व में मंच के कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं को भाजपा के साथ जोड़ने के लिए अभियान चलाया हुआ है. इस दौरान इंद्रेश कुमार के अलावा मंच से जुड़े नेताओं ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लगभग 40 जिलों का दौरा कर मुस्लिम वर्ग के लोगों से मुलाकात की और उनकी आकांक्षाओं को समझने की कोशिश भी की।.
गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, रामपुर, सहारनपुर, बरेली, बिजनौर, शाहजहांपुर, संभल, बहराइच, कैराना, अलीगढ़, आगरा, कानपुर, लखनऊ, फैजाबाद, सहारनपुर, गोरखपुर, आजमगढ़, गोंडा, बस्ती, सिद्धार्थनगर, वाराणसी, मऊ, देवरिया, देहरादून, हरिद्वार सहित विभिन्न जिलों के दौरे , मुस्लिम समाज के लोगों से मुलाकात खासकर मुस्लिम महिलाओं से मुलाकात के आधार पर मंच को यह अहसास हुआ कि भारत का मुस्लिम समाज जबरदस्ती थोपी गई कुरीतियों से छुटकारा पाना चाहता है और तीन तलाक से मुक्ति के कानून ने उन्हें एक रास्ता दिखा दिया है. इसलिए मंच ने मुस्लिम महिलाओं को नमाज पढ़ने के लिए समान अधिकार दिलवाने और शादी की न्यूनतम उम्र तय करवाने के लिए मुहिम चलाने का फैसला किया है.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच यह दावा कर रहा है कि वो मुस्लिम समाज के उत्थान और बदलाव को लेकर देश भर में जागरूकता अभियान और जन आंदोलन के जरिए मुहिम चलाएगा. इसके अंतर्गत मंच के विभिन्न प्रकोष्ठ समाज के विभिन्न तबकों को साथ लेकर सुधार की योजना तैयार करेंगे और इन योजनाओं को क्रमबद्ध रूप से पूरे देश में अभियान के तौर पर चलाया जाएगा. इस मुहिम के दौरान मुफ्तियों, मौलानाओं, इमामों और छात्र-छात्राओं के साथ समाज के अन्य प्रभावशाली लोगों के साथ विचार मंथन भी किया जाएगा. हालाकि इस अभियान का विधानसभा चुनाव पर उलटा ही असर देखने को मिल रहा है. बहरहाल, अब सबरी माला मंदिर विवाद पर.
क्या है सबरी माला मंदिर विवाद ?
केरल एक भगवान को लेकर चर्चा में है. यहां के पठनामथिट्टा जिले की पहाड़ियों के बीच वृद्धि के भगवान अयप्पा का मंदिर है, जिसे आप सबरीमाला मंदिर के नाम से जानते हैं. इसी जिले में पेरियार टाइगर रिज़र्व भी है, जिसकी 56.40 हेक्टेयर ज़मीन सबरीमाला को मिली हुई है-
कौन हैं भगवान अयप्पा
हिंदू माइथॉलजी में भगवान अयप्पा को लेकर कई कथाएं हैं, जिनमें सबसे चर्चित कथानक है कि अयप्पा भगवान विष्णु के इकलौते स्त्री अवतार मोहिनी और भगवान शिव के बेटे हैं. भारत में इनके सबसे ज़्यादा भक्त केरल में हैं, जहां कुछ इन्हें बुद्ध का अवतार भी मानते हैं, वहीं कई मुस्लिम भी इनकी पूजा करते हैं.कुछ कथाओं के मुताबिक इनका जन्म महिषासुर की बहन महिषासुरी का वध करने के लिए हुआ था. इनका बचपन राजकुमार की तरह बीता और बड़े होकर यह एक योद्धा योगी बने.
मंदिर में महिलाओं को न जाने देने के पीछे क्या वजह है
सबरीमाला मंदिर करीब 800 साल से अस्तित्व में है और इसमें महिलाओं के प्रवेश पर विवाद भी दशकों पुराना है. वजह यह है कि भगवान अयप्पा नित्य ब्रह्मचारी माने जाते हैं, जिसकी वजह से उनके मंदिर में ऐसी महिलाओं का आना मना है, जो मां बन सकती हैं. ऐसी महिलाओं की उम्र 10 से 50 साल निर्धारित की है. माना गया कि इस उम्र की महिलाएं पीरियड्स होने की वजह से शुद्ध नहीं रह सकतीं और भगवान के पास बिना शुद्ध हुए नहीं आया जा सकता.
मंदिर जाने के लिए शुद्ध कैसे होते हैं
भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए 41 दिन पहले से तैयारी करनी होती है. 41 दिनों की इस प्रक्रिया को मंडल व्रतम कहा जाता है. इसमें श्रद्धालुओं को रोज़ाना दो बार नहाना होता है, सेक्स नहीं करना होता है, मांस नहीं खाना होता है, अपशब्द नहीं बोलने होते हैं, काले-नीले कपड़े पहनने होते हैं, दाढ़ी-बाल-नाखून नहीं कटा सकते और शादी-जन्मदिन जैसे आयोजनों में शरीक नहीं हो सकते.मंदिर जाते समय सिर पर पल्लिकेट्टू होना अनिवार्य है. पल्लिकेट्टू एक छोटा झोलेनुमा कपड़ा होता है, जिसमें गुड़, नारियल और चावल जैसा प्रसाद का सामान होता है.
यहां से शुरू हुआ महिलाओं पर रोक-टोक का सिलसिला
सबरीमाला मंदिर के 800 साल के इतिहास में महिलाओं से जुड़ा पहला विवाद 1950 में पता चलता है. इस साल सबरीमाला मंदिर में आग लग गई थी. आग बुझाने के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया और कुछ नियम भी लागू किए गए। सबसे बड़ा नियम था कि अब से महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकेंगी.
हालांकि, 1950 से पहले 19वीं सदी में मद्रास सरकार ने जो दस्तावेज छापे थे, उनके मुताबिक दो सदियों से महिलाओं को इस मंदिर में जाने की इजाज़त नहीं थी. वहीं 1891 और 1901 में छपे ब्रिटिश लेखकों के रिसर्च बताते हैं कि बच्चियों और बुजुर्ग महिलाओं को मंदिर जाने की इजाज़त थी.
1990 में एक जनहित याचिका दाखिल की गई
इस साल एस. महेंद्रन नाम के एक शख्स ने कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। यह याचिका मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर थी. साल 1991 में कोर्ट ने याचिका पर फैसला सुनाया कि महिलाओं को सबरीमाला मंदिर नहीं जाने दिया जाएगा.
2006 में ऐक्ट्रेस के दावे ने मचाया शोर
इस साल मंदिर के प्रमुख ज्योतिषी परप्पन गड़ी उन्नीकृष्णन ने दावा किया कि भगवान अयप्पा अपनी शक्तियां खो रहे हैं. उन्नीकृष्णन के मुताबिक इसकी वजह यही हो सकती है कि कोई महिला मंदिर में घुसी होगी. तभी कन्नड़ ऐक्ट्रेस जयमाला ने दावा किया कि 1986 में वह अपने ऐक्टर पति प्रभाकर के साथ सबरीमाला मंदिर के अंदर गई थीं और वहां धक्का लगने की वजह से गर्भगृह तक भी पहुंची थीं. जयमाला ने दावा किया कि उन्होंने भगवान की मूर्ति के पैर छुए थे और पुजारी ने उन्हें प्रसाद में फूल दिए थे.
इस दावे के बाद जयमाला पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगा. केरल के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने जयमाला के खिलाफ केस भी दर्ज कराया, लेकिन मामला कोर्ट में जाने के बाद शांत हो गया. अभी जयमाला कर्नाटक में महिला-बाल विकास मंत्री हैं। हालांकि, जयमाला ने दावा करने के साथ-साथ प्रायश्चित करने की इच्छा भी जताई थी.
फिर सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया फैसला
28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने कोर्ट के पिछले फैसले को खत्म करते हुए महिलाओं के हक में फैसला सुनाया. इस बेंच में चार जज महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में थे, जबकि बेंच की इकलौती महिला जज इंदु मल्होत्रा महिलाओं को न जाने देने के पक्ष में थीं. उनका तर्क था कि धार्मिक मामलों में अदालत को दखल नहीं देना चाहिए.। वहीं महिलाओं को इजाज़त देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया, ‘हमारी संस्कृति में माता का आदरणीय स्थान है. यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है. उन्हें मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है, जो स्वीकार्य नहीं है.’
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का गुस्सा महिलाओं ने झेला
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब 18 अक्टूबर 2018 को मंदिर के कपाट खुले, तो तमाम महिलाएं भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए पहुंचीं. उस समय माहौल बेहद तनावभरा था, क्योंकि मंदिर का बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजदू महिलाओं को प्रवेश देने के हक में नहीं था. ऐसे में मंदिर के पास भारी पुलिसबल भी तैनात था. 18 अक्टूबर को मंदिर के रास्ते में हिंसा हुई, महिला पत्रकारों पर हमले किए गए, मीडिया की गाड़ियां तोड़ी गईं, पथराव-लाठीचार्ज हुआ और लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. महिलाओं को मंदिर से 20 किमी पहले से रोक लिया गया था और कई महिलाओं को आधे रास्ते से लौटा दिया गया था.
नया विवाद
2 जनवरी 2019 यानी बुधवार को दो महिलाओं बिंदु और कनकदुर्गा ने दावा किया कि उन्होंने तड़के मंदिर में भगवान के दर्शन किए. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से कई महिला श्रद्धालु और महिला सामाजिक कार्यकर्ता मंदिर जाने की कोशिश कर चुकी थीं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इन दोनों महिलाओं के मंदिर में जाने के बाद ‘मंदिर की शुद्धि’ का हवाला देते हुए दरवाज़े बंद कर दिए गए, जिन्हें दोपहर 12 बजे के आसपास दोबारा खोल दिया गया.
केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने भी मंदिर में महिलाओं के जाने की पुष्टि की और कहा कि जो भी महिला मंदिर जाना चाहती हैं, उन्हें सुरक्षा दी जाए. इन दोनों महिलाओं ने पिछले महीने भी मंदिर के दर्शनों की कोशिश की थी, लेकिन असफल रही थीं. 2 जनवरी को इनके दर्शन करने के बाद कथित तौर पर बीजेपी-RSS कार्यकर्ताओं ने मंदिर के पास महिलाओं, पुलिस और मीडिया पर पथराव किया, जिसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा.