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ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेः  मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की बंदरघुड़की, मुसलमान इसे कदाचित बर्दाश्त नहीं करेगा !

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

मुसलमानों के पर्सनल ला की सुरक्षा के नाम पर ड्रामेबाजी करने वाली संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद पर बंदरघुड़की दी है. सर्वे के बाद इसके वजू खाने को सील करने के बाद बोर्ड की ओर से बयान आया है कि इसे ‘मुसलमान बर्दाश्त नहीं करेगा’.

मुसलमानों की आंख में धूल झोंकने वाले ऐसे बयान देकर बोर्ड अब तक अयोध्या, तलाक, अनुच्छेद 370, नकाब आदि जैसे मुद्दों पर नौटंकी करता रहा है. अब ज्ञानवापी मस्जिद मसले पर भी उसने पुराना रूख दिखाया है. इसकी नियत पर इसलिए भी शक होता रहा है कि जब ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे हो रहा था मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ने मस्जिद के इंतजामिया कमेटी को अकेले छोड़ दिया, जबकि उसे अच्छी तरह पता है कि कौम का इस वक्त कैसे ‘शातिर’ लोगों से पाला पड़ा है. ज्ञानवापी मस्जिद के मुंतज़िम का बयान टीवी पर चल रहा है कि उन्हें अंधेरे में रखा गया. झटपट वजूखाने के एक खराब फव्वारे को शिवलिंग बताकर कोर्ट में पहुंच गए और वजू खाने को सील करने का आर्डर ले आए.

बोर्ड को क्या इसका अंदेशा नहीं था ? जिस तरह सर्वे शुरू कराया गया. एक अधिकारी की नियत पर सवाल उठाए गए, उसके बावजूद यदि खुद को मुस्लिम पर्सनल लाॅ की हिफाजत करने वाली संस्था के पास इतना विवेक नहीं है कि कभी भी कुछ भी हो सकता है, जवाबी इंतजाम क्यों नहीं किया ? क्या विवाद शुरू होने से पहले बोर्ड ने ज्ञानवापी मस्जिद की अपने प्रयास से वीडियोग्राफी कराई गई थी ? यदि हां तो सार्वजनिक करे. और अगर नहीं तो बोर्ड के सारे पदाधिकारियों को तुरंत इस्तीफा देकर युवा हाथों को संस्था सौंप देनी चाहिए. कौम के नअहल नेताओं की अब जरूरत नहीं !

बहरहाल, बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने प्रेस नोट जारी कर कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद बनारस, मस्जिद है और मस्जिद रहेगी. उसको मंदिर बनाने का कुप्रयास साम्प्रदायिक घृणा पैदा करने की एक साजिश से ज्यादा कुछ नहीं.
 
यह ऐतिहासिक तथ्यों एवं कानून के विरुद्ध है. 1937 में दीन मुहम्मद बनाम राज्य सचिव मामले में अदालत ने मौखिक गवाही और दस्तावेजों के आलोक में यह निर्धारित किया कि पूरा परिसर मुस्लिम वक्फ की मिल्कियत है और मुसलमानों को इसमें नमाज अदा करने का अधिकार है. अदालत ने यह भी तय किया कि विवादित भूमि में से कितना भाग मस्जिद है और कितना भाग मंदिर है. उसी समय वजू खाना को मस्जिद की मिल्कियत स्वीकार किया गया. फिर 1991 ई0 में  संसद से कानून पारित हुआ, जिसका सारांश यह है 1947  में जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में थे उन्हें उसी स्थिति में बनाए रखा जाएगा. 2019 में बाबरी मस्जिद मुकदमे के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब सभी इबादतगाहें इस कानून के अधीन होंगी.

यह कानून संविधान की मूल भावना के अनुसार है. इस निर्णय में और कानून का तकाजा यह था कि मस्जिद के संदेह में मंदिर होने के दावे को  अदालत तत्काल बहिष्कृत (खारिज) कर देती, लेकिन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कि बनारस के दीवानी अदालत ने उस स्थान के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश जारी कर दिया, ताकि तथ्यों का पता लगाया जा सके. वक्फ बोर्ड ने इस संबंध में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और उच्च न्यायालय में यह मामला लंबित है. इसी प्रकार ज्ञानवापी मस्जिद प्रशासन ने भी दीवानी अदालत के इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला विचाराधीन है, लेकिन इन सभी बातों को अनदेखा करते हुए दीवानी अदालत ने पहले सर्वे का आदेश दिया. फिर अफवाहों के आधार वजू खाना को बंद करने का आदेश दिया. यह कानून का खुला उल्लंघन है जिसकी एक अदालत से उम्मीद नहीं की जा सकती. अदालत की इस कार्रवाई ने न्याय की आवश्यकताओं का उल्लंघन किया है,

इसलिए सरकार इस निर्णय के कार्यान्वयन को तुरंत रोके. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करे और 1991 के कानून के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों की रक्षा करे. यदि इस प्रकार के काल्पनिक तर्कों के आधार पर धार्मिक स्थलों की स्थिति परिवर्तित की जाएगी जाती है तो पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी, क्योंकि कितने बड़े-बड़े मंदिर बौद्ध और जैन धर्म के धार्मिक स्थलों को परिवर्तित करके बनाए गए हैं और उनकी स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं. मुसलमान इस उत्पीड़न को कदाचित बर्दाश्त नहीं कर सकते. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस अन्याय से हर स्तर पर लड़ेगा.
बोर्ड किस स्तर पर लड़ेगा, इसका बयान में खुलासा नहीं किया गया. ऐसा इस लिए भी किया गया कि बोर्ड को पता ही नहीं मुसलमानों को भविष्य में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिसके लिए हर दम चुस्त-दुरूस्त रहना होगा.