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बिलकिस मामलाः तीन विधायकों ने राष्ट्रपति से दोषियों को रिहा करने का फैसला रद्द करने का किया अनुरोध

मुस्लिम नाउ ब्यूरो नई दिल्ली
अब जब कि यह स्पष्ट हो गया है कि बिलकिस बानो मामले में दोषी 11 लोगों को जेल से जिस सिफारिश कमेटी की पैरवी पर रिहा किया गया उसमें पांच सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के दस्य हैं. अब इसके जवाब में गुजरात कांग्रेस के तीन विधायकों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर राज्य सरकार को 2002 के बिलकिस बानो मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को रिहा करने के अपने शर्मनाक फैसले को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की है.

शनिवार को बताया गया कि तीन विधायकों-ग्यासुद्दीन शेख, इमरान खेड़ावाला और जावेद पीरजादा ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है.

पत्र की एक प्रति के साथ शेख के ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट में कहा गया है, गुजरात कांग्रेस के विधायक जावेद पीरजादा ने भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को बिलकिस बानो मामले के बारे में एक पत्र लिखा है.

पत्र में कहा गया है कि बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात भाजपा सरकार के शर्मनाक निर्णय ने उस दिन को कलंकित कर दिया है (जिस दिन ऐसा निर्णय लिया गया था.

भले ही केंद्र सरकार के पास एक स्पष्ट दिशानिर्देश है कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे बलात्कारियों को क्षमा की नीति के तहत रिहा नहीं किया जाना चाहिए, गुजरात की भाजपा सरकार ने बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों को क्षमा करके अपनी संवेदनहीनता दिखाई है. न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के लिए यह निराशाजनक फैसला है.

इसने कहा कि बिलकिस बानो मामले के दोषियों को 2002 के गुजरात सांप्रदायिक दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार और उसकी तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के अपराध के लिए कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए.

इसके विपरीत, गुजरात की भाजपा सरकार ने इस तरह के जघन्य अपराधों के अपराधियों को माफ कर दिया है.

15 अगस्त को, सभी 11 दोषियों को 2002 में बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और सांप्रदायिक दंगों के दौरान उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जब गुजरात में भाजपा सरकार द्वारा उनकी रिहाई की अनुमति दी गई.इसकी छूट नीति, विपक्षी दलों से तीखी आलोचना कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य की 1992 की छूट नीति के तहत राहत के लिए दोषियों की याचिका पर विचार करने के लिए सरकार को निर्देश देने के बाद उन्हें रिहा किया गया.

21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या और उसके सामूहिक बलात्कार के मामले में सभी 11 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा.

इन दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काट ली है जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को उसकी सजा की छूट के मुद्दे को उसकी सजा की तारीख के आधार पर 1992 की नीति के अनुसार देखने का निर्देश दिया है. उसके बाद, सरकार ने एक समिति बनाई जिसने सभी दोषियों को रिहा करने की अनुमति देने का फैसला किया.

3 मार्च 2002 को दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था. बिलकिस, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उसके परिवार के सात सदस्यों की गोधरा ट्रेन जलने की घटना से भड़के दंगों के दौरान मौत हो गई थी. इस मामले का एक और दुखद पहलू यह है कि इन 11 आरोपियों को तब जेल से रिहा किया गया जब केंद्र की सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार के नेता नरेंद्र मोदी बहैसियत प्रधानमंत्री के लालकिला के प्राचीर से देश में महिलाओं पर हो रही ज्यादतियों पर अपनी चिंता और नाराजगी जाहिर कर रहे थे.