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दिग्विजय सिंह का आरएसएस प्रमुख भागवत पर तीखा हमला,कहा- अखलाक, बिलकिस बानो के घर जाएं !

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, ग्वालियर

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने शनिवार को कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत अगर मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतना चाहते हैं तो उन्हें बिलकिस बानो और मोहम्मद अखलाक के घर का दौरा करना चाहिए. भागवत ने इस सप्ताह की शुरुआत में दिल्ली में एक मस्जिद और मदरसे का दौरा किया था. इससे पहले उन्होंने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, पत्रकार शाहिद सिद्दीकी,एएमयू के पूर्व चांसलर जमीरूद्दीन शाह सहित पांच मुस्मिल बुद्धिजीवियों से मुलाकात की थी.

अल्पसंख्यक समुदाय के लिए आरएसएस प्रमुख के प्रस्तावों के बारे में पूछे जाने पर, सिंह ने कहा कि अगर वह उनका विश्वास अर्जित करना चाहते हैं, तो उन्हें 2015 में लिंचिंग की घटना के शिकार मोहम्मद अखलाक और सामूहिक बलात्कार पीड़ित बिलकिस बानो के परिवार से मिलना चाहिए. उन्होंने दावा किया कि भागवत के मस्जिद जाने से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ी यात्रा का असर दिखा.पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर कथित रूप से आतंकी गतिविधियों का समर्थन करने के लिए जांच एजेंसियों द्वारा कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर, कांग्रेस नेता ने कहा कि न केवल पीएफआई बल्कि धार्मिक घृणा और कट्टरता फैलाने वाले किसी भी संगठन के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.

बता दें कि 15 अगस्त को बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार करने और उनके परिवार के सदस्यांे के हत्यारों को ‘अच्छे आरचरण’ का हवाला देते हुए सजा माफ कर गुजरात की जेल से रिहा कर दिया गया था. गुजरात सरकार के इस फैसले के विरोध में एक याचिका सुनवाई के लिए सुप्रीम में पड़ी है.

एक दोषी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा-बिलकिस बानो मामला राजनीति से प्रेरित

बिलकिस बानो मामले के एक दोषी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि गुजरात सरकार के माफी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका अटकलबाजी और राजनीति से प्रेरित है.राधेशम भगवानदास शाह द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि राजनीति से प्रेरित याचिका को खारिज कर देना चाहिए.”

याचिका में शीर्ष अदालत के कई फैसलों का हवाला दिया गया, जिनमें जनता दल बनाम एच.एस. चौधरी (1992), सिमरनजीत सिंह मान बनाम यूओआई (1992) और सुब्रमण्यम स्वामी बनाम राजू (2013), जिसमें यह लगातार स्पष्ट शब्दों में कहा गया कि एक तीसरे पक्ष जो अभियोजन पक्ष के लिए पूरी तरह से अजनबी है, उसके पास कोई स्टैंडी नहीं है.
शाह 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और कई हत्याओं के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की रिहाई के खिलाफ माकपा की पूर्व सांसद सुभासिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा द्वारा दायर याचिका को चुनौती दे रहे थे.तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने भी इसको लेकर याचिका दायर की है.

शीर्ष अदालत ने 9 सितंबर को गुजरात सरकार को सभी रिकॉर्ड दाखिल करने का निर्देश दिया था, जो मामले के सभी आरोपियों को छूट देने का आधार बना. इसने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और कुछ आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ​​को भी जवाब दाखिल करने को कहा था.

शाह की याचिका में कहा गया है कि अगर शीर्ष अदालत इस तरह की तीसरे पक्ष की याचिकाओं पर विचार करती है तो यह न केवल कानून की तय स्थिति को अस्थिर करेगी, बल्कि जनता के किसी भी सदस्य को पहले किसी भी आपराधिक मामले में कूदने के लिए एक खुला निमंत्रण होगा.

शाह ने तर्क दिया कि याचिका अनुच्छेद 32 के घोर दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है, क्योंकि एक तरफ, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि उनके पास दोषियों को छोड़ने के आदेश की प्रति नहीं है और फिर छूट देने के कारणों का पता लगाए बिना, याचिकाकर्ताओं ने इसे रद्द करने की मांग की है.

इसने आगे तर्क दिया कि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एक आपराधिक मामले में कुल अजनबी को किसी निर्णय की शुद्धता पर सवाल उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.