नौकरानी की बेटी हिनाबेन खलीफा के बड़े सपने, नेशनल गेम्स में जीता कांस्य पदक
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,गांधीनगर
किशोरावस्था में हिनाबेन खलीफा अपनी मां सुगराबेन और बड़ी बहनों, अफसाना और मदीना के साथ गुजरात के अरावली जिले के वडगाम में घरों में काम करने जाती थीं. उनकी मां घरों में नौकरानी का काम करती थीं.तीनों बहनें मां के काम में हाथ बंटाती थी. इनके हाथ बंटाने से मां अत्याधिक घरों में काम करती और इससे मिलने वाले पैसे से परिवार का गुजारा हो जाता था.
सुगराबेन के पति सलीम खलीफा को लकवा मार गया है, इसलिए घर की महिलाओं को साफ-सफाई का काम करना पड़ता था. इसके अलावा कमाई का और जरिया भी नहीं था.यह सिलसिला तकरीबन तीन साल तक चला. इसी बीच हिना और उसकी बहन मदीना को पहलवान बनने की इच्छा हुआ.रोजाना का शेड्यूल बेहद टाइट था. फिर भी दोनों बहनों ने हार नहीं मानी. दिन में मां की मदद करतीं और शाम को स्कूल जातीं और प्रशिक्षण में हिस्सा लेतीं. इस दौरान दोनों बहनों को खास तरह का संघर्ष करना पड़ा.
फिर उन्हंे कुश्ती की मैट पर सफलता मिलने लगी. हिनाबेन खलीफा ने नेशनल गेम्स में कांस्य पदक जीता है. हिनाबेन रविवार को राष्ट्रीय खेलों में पदक जीतने वाली गुजरात की दूसरी महिला पहलवान बन गईं हैं. उन्होंने 53 किग्रा भार वर्ग में तीसरा स्थान प्राप्त किया है.
उन्होंने गांधीनगर के महात्मा मंदिर में अपने अभियान की शुरुआत हिमाचल प्रदेश की रितिका पर आसान जीत के साथ की. फिर उत्तराखंड की प्रियंका सिकरवार के खिलाफ तकनीकी श्रेष्ठता से जीत हासिल की. हालांकि, वह हरियाणा की चौंपियन अंतिल पंघाल से मुकाबला नहीं कर सकीं. इस बीच हिनाबेन ने शिवानी के खिलाफ कांस्य पदक के मुकाबले के समय पर खुद को संगठित किया और 7-1 से मुकाबला जीत लिया.
बहन मदीना ने बताया, हमारे बड़े भाई-बहन अमजद और अफसाना हमारे गांव में एक अस्थायी कुश्ती केंद्र में प्रशिक्षण लेते थे. उन्होंने हमें खेल में दीक्षित किया. उनके खेल छोड़ने के बाद भी हमने प्रशिक्षण जारी रखा.
गांव के एक वरिष्ठ पहलवान विनोद कुंजावत ने 2015 में उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू किया. 2018 तक वहां प्रशिक्षण जारी रखा. इसके बाद हिनाबेन को नडियाद में गुजरात के सरकारी उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) में शामिल होने का प्रस्ताव मिला. कुंजवत ने कहा, वह पहली बार मेरे केंद्र में आई तब उसका वजन लगभग 22 किलो था, लेकिन वह मेहनती थी. दोनों बहनें शाम को केंद्र पर आती थीं. सुबह उन्हें अपनी मां के साथ उनकी मदद के लिए जाना पड़ता था. मैं उन्हें घर छोड़ देता था. उन्हें अक्सर प्रशिक्षण में देर हो जाती थी.
हिनाबेन जब बच्चा थी तब उसके पिता को ओडिशा में लकवा का दौरा पड़ा था. त्रासदी ने उनके जीवन को उल्टा कर दिया. हालांकि, स्थिति ने सभी भाई-बहनों को खेल में एकांत बना दिया. आखिरकार कुश्ती गरीबी और दुर्भाग्य से बाहर निकलने का रास्ता बनी. हिनाबेने बताया,भाई को गुजरात का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था, लेकिन मां ने चिंता के कारण उन्हें नहीं भेजा. फिर मुझे 2017 में अंडर -14 राष्ट्रीय टूर्नामेंट में प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिला.
कहने को तो सभी भाई-बहन कुश्ती में हैं, लेकिन हिनाबेन ने ही अब तक सफलता का स्वाद चखा है. एक बार जब वह नाडियाड में सीओई के लिए चुनी गई, तो उसने छलांग और सीमा में सुधार किया. उसने 2020 में जूनियर नेशनल में भी कांस्य पदक जीता है. मगर कोविड -19 के कारण लॉकडाउन की वजह से वह शिविर में जगह नहीं बना सकी. हिना ने हाल ही में एक अंडर -20 टूर्नामेंट में 53 किग्रा में रजत जीता है. वह राष्ट्रीय खेलों से पहले बहुत परेशान थी. डरी हुई थी कि वांछित परिणाम मिलेगा या नहीं.
हिनाबेन ने कहा, उम्मीद है कि यह पदक उन्हें और बेहतर करने के लिए प्रेरित करेगा.हिना और मदीना दोनों बीपीएड (बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन) कर रही हैं. मदीना को हाल में गुजरात स्पोर्ट्स अथॉरिटी में ट्रेनर की नौकरी मिली है. आर्थिक स्थिति में कुछ हद तक सुधार हुआ है. अब उन्होंने अपनी मां को नौकरानी के रूप में काम करने से रोक दिया है. अब हिना को राष्ट्रीय शिविर में जगह प्राप्त करते हुए देखना चाहती ताकि आने वाले दिनों में वह देश का प्रतिनिधित्व कर सके.
हिनाबेन जिस भार वर्ग में भाग लेती हैं, वह एक ओलंपिक श्रेणी है. प्रसिद्ध विनेश फोगट और युवा सनसनी अंतिल जैसे पहलवान के रहते यदि यह राष्ट्रीय टीम में जगह पाना चाहते हैं तो इसके लिए कड़ा संघर्ष करना होगा. प्रतिस्पर्धा के बावजूद, मदीना को भरोसा है कि अगर वह कड़ी मेहनत करती रही तो उसकी बहन अपनी जगह बना लेगी.