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विजयादशमी पर्व पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने क्यों कहा, ‘शेख अपना-अपना देख’ ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नागपुर

अब तक सरकार सभी को नौकरी देने में असमर्थता जताती रही है. अब इसके मूल संगठन राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ ने भी कहा है-‘शेख अपना-अपना देख.’यानी लोगों को सरकारी और गैर सरकारी नौकरी पर निर्भर रहने की बजाए अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए.

मोहन भागवत ने कहा, सरकारी नौकरियों की उपलब्धता सीमित है. ऐसे में ज्यादातर लोगों को अपना काम खुद करना चाहिए.उन्हांेने कहा, रोजगार का मतलब नौकरी है और क्या सभी को सरकारी नौकरी के पीछे भागना चाहिए ? अगर सभी लोग इसके पीछे दौड़ेंगे तो उनमें से कितने को नौकरी दी जा सकती है? अधिकतम 10 या 20.

उन्हांेने कहा, सरकारी और निजी क्षेत्र मिलाकर कुल 30 प्रतिशत नौकरियां हैं. बाकी सभी को अपना काम खुद करना है.मोहन भागवत का यह बयान ऐसे समय आया है जब कुछ दिन पूर्व प्रधानमंत्री ने देश की 80 करोड़ आबादी को दिसंबर तक मुफ्त राशन देने का ऐलान किया था.मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में बुधवार को विजयादशमी पर्व के मौके पर आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे.

अपनी परंपरा में बदलाव करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने इतिहास में पहली बार पर्वतारोही संतोष यादव के रूप में एक महिला को आरएसएस के वार्षिक महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया. इस उत्सव का उद्घाटन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने किया. इस अवसर पर शास्त्र पूजा भी की गई.

संतोष यादव पर्वतारोही रह चुकी हैं. उन्होंने दो बार माउंट एवरेस्ट फतह कर दुनिया की पहली महिला बनने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है.कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, भागवत ने जनसंख्या पर व्यापक नीति बनाने का आह्वान किया. कहा कि इसे सभी पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए.

संघ प्रमुख ने कहा,यह सच है कि जितनी अधिक जनसंख्या, उतना अधिक बोझ. यदि जनसंख्या का सही उपयोग किया जाता है, तो यह एक संसाधन बन जाता है. हमें यह भी विचार करना होगा कि हमारा देश 50 वर्षों के बाद कितने लोगों को खिला सकता है और उनका समर्थन कर सकता है.

जनसंख्या असंतुलन से परिवर्तन होता है. भौगोलिक सीमाओं मे.जनसंख्या नियंत्रण और धर्म आधारित जनसंख्या संतुलन एक महत्वपूर्ण विषय है जिसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इसलिए व्यापक जनसंख्या नीति लाई जानी चाहिए. यह सभी पर समान रूप से लागू होनी चाहिए. तभी जनसंख्या से संबंधित नियम नियंत्रण परिणाम देगा.भागवत ने सभी जगहों पर महिलाओं को समान अधिकार देने की भी वकालत की. उन्हांेने कहा,एक महिला को मां मानना ​​अच्छा है, लेकिन उन्हें बंद दरवाजों तक सीमित रखना अच्छा नहीं है. हर जगह निर्णय लेने के लिए महिलाओं को समान अधिकार देने की जरूरत है. वह सभी काम जो मां शक्ति कर सकती है वह पुरुष नहीं कर सकता. इसलिए उन्हें प्रबुद्ध करना, और उन्हें सशक्त बनाना और उन्हें काम करने की स्वतंत्रता और भागीदारी देना महत्वपूर्ण है.

आरएसएस प्रमुख ने कहा, शक्ति शांति की नींव है. एक महिला मुख्य अतिथि की उपस्थिति पर लंबे समय से चर्चा की गई है.भागवत ने कहा कि सरकार की नीतियां देश को आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रही हैं.

सरकार आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाली नीतियों का अनुसरण कर रही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का महत्व और कद बढ़ा है. सुरक्षा के क्षेत्र में, हम अधिक से अधिक आत्मनिर्भर होते जा रहे हैं. हमारी अर्थव्यवस्था पूर्व की ओर लौट रही है. खिलाड़ी भी देश को गौरवान्वित कर रहे है.

शिक्षा में मातृभाषा के महत्व के बारे में बात करते हुए भागवत ने कहा कि एक भाषा के रूप में अंग्रेजी करियर के लिए जरूरी नहीं है. अलग-अलग चीजों से करियर बनता है. सरकार नई शिक्षा नीति (एनईपी) के जरिए इस पर ध्यान दे रही है, लेकिन क्या माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाए? या वे चाहते हैं कि उनके बच्चे अंधे चूहे की दौड़ का हिस्सा बनें? सरकार से मातृभाषा को बढ़ावा देने की उम्मीद करते समय, हमें यह भी विचार करना चाहिए कि क्या हम अपनी मातृभाषा में अपने नाम पर हस्ताक्षर करते हैं या नहीं.

यह देखते हुए कि सरकारी नौकरियों की उपलब्धता सीमित है, भागवत ने कहा कि ज्यादातर लोगों को अपना काम खुद करना पड़ता है.रोजगार का मतलब नौकरी के पीछे भागना नहीं है.