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Muhammad: The Messenger of God: सीएए-एनआरसी की तरह एक और बड़े आंदोलन की आहट

स्टॉफ रिपोर्टर।
भारत में ‘सीएए/एन आरसी विरोधी आंदोलन’ जैसा एक और बड़ा बखेड़ा खड़ा हो सकता है। इसकी वजह बनेगी देश के ओटीटी प्लेटफॉम यानी ऑन लाइन थिएटर ‘डॉन सिनेमा‘ पर मुसलमानों के अंतिम पैगंबर hazrat muhammad sallallahu alaihi wasallam पर बनी विवादास्पद फिल्म ‘मुहम्मद द मैसेंजर ऑफ गॉड’। इसके प्रदर्शन को लेकर देश का मुसलमान
भीतर-भीतर सुलग रहा है। आईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने फिल्म के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ने की चेतावनी दी है। फिल्म 25 जुलाई को रिलीज हो सकती है। सोशल मीडिया पर इसका ट्रेलर जारी कर दिया गया है।

 ‘डॉन सिनेमा’ भारत का नया ऑन लाइन थिएटर है। इसका संचालन करने वाली कंपनी ‘डॉन इनफोटेक’ के तीन पार्टनर्स में एक बॉलीवुड के दस बड़े फिल्म वितरकों में शुमार मुहम्मद अली हैं। ‘मुंबई मिरर’ की एक खबर के अनुसार,  कंपनी में दिल्ली में जमीन तथा वित्त कारोबार से जुड़े सतीश कुमार व भारतीय क्रिकेट टीम एवं फिल्म स्टार शाहरूख खान के फिजियोथेरापिस्ट डॉक्टर अली ईरानी भी पार्टनर हैं। मुहम्मद अली की कंपनी ‘पेन एन कैमरा इंटरनेशनल’ 2004 से फिल्मों के वितरण का काम कर रही है। उनकी कंपनी देश ही नहीं मलेशिया, लंदन आदि अन्य देशों में भी फिल्में वितरण करती है। मोहम्मद अली की ‘फेसबुक’ वाल पर दी गई जानकारियों में कहा है कि वह अब तक 200 से अधिक फिल्मों का विदेशों में
डिस्ट्रीब्यूशन कर चुके हैं। इसके अलावा उनकी कंपनी ने 29 फिल्मों का निर्माण भी किया है। मुहम्मद अली खुद  कई फिल्मों का पटकथा लेखन कर चुके हैं। ओटीटी फिल्मों के कारोबार में वह इस वर्ष की शुरूआत में उतरे हैं। मुहम्मद अली की मानें तो नेट नेटफ्लिक्स और दूसरे ओटीटी प्लेटफॉर्म के सख्त नियम-कायदे से परेशान होकर उन्होंने ‘डॉन सिनेमा’ के नाम से
अपना ऑन लाइन थिएटर शुरू किया है। इनके ओटीटी ऐप पर ‘टिकटॉक‘ की तर्ज पर ‘टॉकर्स हाउस’ और क्रिकेट से संबंधित कार्यक्रम भी देखे जा सकेंगें। उनका दावा है कि अब तक पांच लाख लोग ‘डॉन सिनेमा’ की सदस्यता ले चुके हैं। कारोबार जमाने के लिए ‘डॉन इनफोटेक’ ने दो हजार फिल्मों की लाइब्रेरी तैयार की है, जिसमें केवल ईरान की 800 से अधिक फिल्में हैं। इसके अलावा फिल्म लाइब्रेरी में बॉलीवुड, हॉलीवुड, रशियन, ब्राजिलियन, कोरियन,ब्रिटिश फिल्मों का भी जखीरा है। इन फिल्मों की लाइब्रेरी से ही ईरान के चर्चित निर्माता-निर्देश माजिद मजिदी की विवादास्पद फिल्म ‘मुहम्मद द मैसेंजर ऑफ गॉड’ की रिलीजिंग की तैयारी है। इसका ट्रेलर सोशल मीडिया पर आ चुका है। मुंबई के एक उर्दू अखबर का दावा है कि फिल्म 25 जुलाई को रीलिज की जाएगी।

विवाद का कारण

‘मुहम्मद द मैंसेजर ऑफ गॉड’ कई मायने में विवादास्पद है। सबसे कड़ा कारण  है कि कुरान तथा हदीस के अनुसार मुसलमानों के पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब का किसी भी तरह चित्रण निषेध है। यह फिल्म उनके बचपन के इर्दगिर्द घूमती है। मुसलमानों का सुन्नी समुदाय मुहम्मद साहब की तस्वीर दिखाने और बनाने के बिल्कुल खिलाफ है, जब कि शिया समुदाय में इसको लेकर एक मत नहीं। ‘विक्कीपीडिया’ के अनुसर, इराक के शिया आलिम शियाजा अल-सिस्तानी का फतवा है कि सम्मान के साथ मुहम्मद साहब को फिल्म और टेलिवीजन पर दिखया जा सकता है। यह फतवा 2015 में फिल्म के रिलीज से पहले आया था। इसके अलावा फिल्म के कई दृश्य को लेकर भी मुसलमानों को आपत्ति है। ईरानी  फिल्म निर्माता-निर्देशक माजिद मजिदी ने हामिद अमजद और कमबुजिया पार्टोवी के साथ फिल्म की पटकथा लिखी है। इसमें अभिनय करने वाले अधिकतर ईरानी कलाकार हैं, जबकि फिल्म में संगीत दिया है भारतीय संगीतकार एआर रहमान ने। इसके निर्माण पर तीन सौ करोड़ रूपये खर्च किए गए थे तथा समय लगभग दस वर्ष लगा था। फिल्मांकन ईरान की राजधानी तेहरान के करीब कोयम शहर और दक्षिण अफ्रीका के कुछ इलाकों में हुआ है। ‘मुहम्मद द मैसेंजर ऑफ गॉड’ 88 वीं अकेडी अवार्ड में विदेशी भाषा के वर्ग में सम्मानित हो चुकी है।

गरमाने लगा माहौल
2015 में फिल्म के रिलीज होने पर भी जबर्दस्त विवाद हुआ था। बात इतनी बढ़ गई कि सिनेमा हाल में दिखाने से पहले पत्रकारों और प्रमुख लोगों के बीच इसका प्रदर्शन किया गया। मिश्र सहित  कई देशों में आज भी फिल्म के प्रदर्शन पर पाबंदी है। तमाम विवादों के बावजूद ‘डॉन सिनेमा’ ने इसे भारत में रिलीज करने का निर्णय क्यों लिया ? यह बड़ा सवाल है। जिस तरह विरोध में माहौल बन रहा है, संभवतः कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है। फिल्म के विरोध के प्रति जनमत तैयार करने के लिए सोशल मीडिया पर#BoycottMovieOfProphet अभियान चलाया जा रहा है। सैयद जाबिर ट्वीट करते हैं कि दुनिया में जब तक नबी के दीवाने हैं, कोई जालिम उन्हें झुका नहीं सकता। इसी तरह रिफत जैदी देश में विरोध का माहौल गरमाने की नियत से लिखते हैं कि यदि हज़रत आदम, हज़रत ईसा पर बनी फिल्मों का विरोध किया होता तो आज यह नौबत नहीं आती। वे भी तो पैगंबर थे। नईम जफर और सलीम अशरफ ने फिल्म निर्माण के लिए ईरान को दोषी ठहराया है। असदुद्दीन ओवैसी की इसपर तीखी प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने सोशल मीडिया और सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने की चेतावनी देने के  साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भारत में फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की अपील की है।


मय पर उठाएं कदम

मुंबई के इस्लामिक एवं सामाजिक संगठन रजा अकैडमी के अध्यक्ष अलहाज मुहम्मद सईद नूरी ने भी फिल्म का विरोध किया है। सरकार से फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। हालांकि इस मामले में अभी अधिकांश मुस्लिम संगठनों ने पत्ते नहीं खोले हैं। उनकी तरफ से खामोशी है। ऐसे में फिल्म के प्रदर्शन के बाद उनका उत्पात मचाना अनुचित होगा। बेहतर है कि मुस्लिम और इस्लामिक संगठन  उचित प्लेटफॉर्म पर समय रहते अपनी बात रखें। वैसे ऐसे मामलों में मुसलमानों का रवैया हमेशा  उदासीन रहा है। पानी जब सिर के उपर आ जाता है तब हरकत में आते हैं। फिल्म को लेकर किसी तरह की आपत्ति है तो इसके डिब्बाबंद होने तक अपनी बातें जोरदार ढंग से रखनी चाहिए। यूट्यूब पर ‘मुहम्मद द मैसेंजर ऑफ गॉड’ का एक बड़ा हिस्सा आज भी मौजूद है। वहां से हटाने की मांग भी मुसलमानों को उठानी चाहिए। इसके लिए यूट्यूब से पैरवी करने से लेकर कानूनी कार्रवाई  की जा सकती है। रजा अकैडमी के रहनुमाओं ने अखबार में बयान जारी करना तो जरूरी समझा, पर अपने ही शहर में मौजूद मुहम्मद अली से इस बारे में बातचीत करना जरूरी नहीं समझा।

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संपादक