कर्नाटक में ध्रुवीकरण की राजनीति के शिकार मुसलमान भाजपा को जवाब देने को तैयार
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, बेंगलुरु
कर्नाटक में 13 प्रतिशत आबादी के साथ मुसलमान सबसे बड़े समुदायों में से एक है. कई रिपोर्टों में दावा किया गया कि सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुई जनगणना ने उन्हें संख्या के मामले में लिंगायत और वोक्कालिगा से आगे रखा गया.
कर्नाटक विधानमंडल में मुस्लिम समुदाय के सात विधायक हैं और सभी कांग्रेस पार्टी से हैं. यह पिछले एक दशक में सबसे कम मुस्लिम प्रतिनिधित्व है. 2008 में, राज्य में 9 मुस्लिम विधायक चुने गए थे.2013 में 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते. 9 कांग्रेस से और तीन जद (एस) से. उच्चतम मुस्लिम प्रतिनिधित्व (16 विधायक) 1978 में थे और सबसे कम (2) 1983 में.
इतनी संख्या रहने के बावजूद कांग्रेस मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने पर विचार नहीं कर रही है.विश्लेषकों का कहना है कि इसका मुख्य कारण सत्तारूढ़ भाजपा और हिंदुत्ववादी ताकतों का ध्रुवीकरण है. हिजाब संकट से शुरू होकर, मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार से लेकर अजान तक, मुस्लिम समुदाय भाजपा के निशाने पर रहा है.
कर्नाटक के विभिन्न हिस्सों में हिंदू कार्यकर्ताओं की हत्याओं और कुकर बम विस्फोट मामले में मुस्लिम समुदाय के व्यक्तियों और कट्टरपंथी संगठनों की भागीदारी ने समुदाय के लिए स्थिति को और भी बदतर बना दिया है.राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मुस्लिम 21 विधानसभा क्षेत्रों में जीत सकते हैं और राज्य भर में बड़ी संख्या में सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.
सेवानिवृत्त प्रोफेसर और अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव डॉ चमन फरजाना ने बताया कि राज्य में एससी-एसटी समुदायों के बाद मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है. लिंगायत, वोक्कालिगा और कुरुबा समुदायों की तुलना में उनकी संख्या अधिक है.
लिंगायत कांग्रेस से 71 सीटों पर टिकट मांग रहे हैं. बीजेपी किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देने पर विचार नहीं कर रही है. कोई भी अन्य पार्टी सामान्य तौर पर मुस्लिम उम्मीदवारों पर विचार नहीं कर रही है. पार्टियां मुसलमानों को टिकट देने से इस लिए हिचक रही हैं कि सूबे में भाजपा ने समाज का ध्रुवीकरण कर दिया है.
उन्हांेने बताया, पहले मेरे दादा चित्रदुर्ग एमपी सीट जीते थे. तब कोई ध्रुवीकरण नहीं था. लोग जाति को वोट डालने का पैमाना नहीं मानते थे. मुस्लिम समुदाय की चिंता अब कांग्रेस पार्टी की जीत सुनिश्चित करके सांप्रदायिक भाजपा और आरएसएस को चुनाव में हराना है.
समुदाय इस बात से नाखुश है कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है. फरजाना ने कहा, लेकिन कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिए हमें कुर्बानी देनी होगी.कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री यू.टी. खादर ने बताया कि समुदाय की चिंता यह है कि सरकार को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए. सरकारी भेदभाव के बिना हर समुदाय और व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए.
वर्तमान सरकार प्रदेश में नफरत फैला रही है. एक बार सरकार बनने के बाद उसे धर्म के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए. सत्ता पक्ष के नेताओं के केवल नफरत भरे भाषण सुनने को मिलते हैं. सरकार खुद भड़काऊ भाषण दे रही है. सरकार को सांप्रदायिक मुद्दे का ध्यान रखना होगा. जब सरकार ही साम्प्रदायिक हो जाएगी तो कौन परवाह करेगा? खादर ने पूछा.
खादर ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में अलगाव की भावना है, लेकिन वे संविधान में विश्वास जता रहे हैं. महसूस करते हैं कि कांग्रेस ही उनकी एकमात्र उम्मीद है. उम्मीद की जा रही है कि बीजेपी और आरएसएस सहित हिंदू संगठन पिछले दो वर्षों से जिस तरह से मुसलमानों के पीछे पड़े हुए हैं, निश्चित ही तमाम मतभेद भुलाकर यह समुदाय कांग्रेस के पक्ष में एकजुट होकर वोट करेगा. राहुल गांधी की भारत जोड़ा यात्रा से यहां के मुसलमानों की राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने की उम्मीद और बढ़ गई है. बीजेपी के हाल के फैसले और नेताआंे की हरकतें बताती हैं कि सत्तारूढ़ दल इस बार भारी मुश्किल में है.