उमर खालिद के जेल में 1000 दिन, क्या ‘हिंदू राष्ट्र’ का बड़ा मुस्लिम विरोधी चेहरा बन गए थे ?
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
क्या उमार खालिद तेजी से उभरते ‘हिंदू राष्ट्र’ का बड़ा मुस्लिम विरोधी चेहरा बन बन गए थे ? उमर के खिलाफ कोई ठोस मुकदमा नहीं होने के बावजूद के जेल में 1000 दिन पूरे होने पर अब यह महत्वपूर्ण सवाल पूछा जाने लगा है. पिछले 9 वर्षों में दीनी, सामाजी और सियासी मुस्लिम चेहरों का जैसा ढुलमुल रवैया तथा उनमें से अधिकांश की सरकार,बीजेपी और संघ के प्रति आस्था बढ़ी है, ऐसे हालात में यह महत्वपूर्ण सवाल और बड़ा बन जाता है.
गिरफ्तारी से पहले तक उमर खालिद युवा, शिक्षित, सामाजिक रूप से जागरूक भारतीय मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करने लगा था. यहां तक कि आज भी उनके फैन फाॅलोउंग की संख्या कम नहीं हुई है. खालिद की रिहाई के लिए गाहे-बगाहे सोशल मीडिया पर हैशटैग भी चलते रहते हैं. यहां तक कि विभिन्न मौकों पर जब वो पेरोल पर जेले से बाहर निकलते हैं, उनके चाहने वाले उनकी एक झलक पाने के लिए मचल उठते हैं. ऐसी सूरत में इस्लमा और मुसलमान के नाम पर दुकान चलाने वालों के लिए भी खालिद खतरा बनने लगे थे.
Do we remember the injustice being done to Umar Khalid?#1000DaysOfInjustice pic.twitter.com/BXmmuqBtWS
— Free Umar Khalid (@FreeUmarKhalid1) June 9, 2023
बहरहाल, राजनीतिक कार्यकर्ता उमर खालिद अब 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों में केंद्र सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में दिल्ली तिहाड़ जेल में 1000 दिन पूरे कर लिए हैं. मजे की बात है कि इस दंगे में 53 लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकांश गरीब मुसलमान थे. कोर्ट भी दंगे के आरोपियों के तौर पर सबसे ज्यादा मुसलमानों के खिलाफ सजा सुना चुकी है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से पीएचडी करने वाले 35 वर्षीय उमर खालिद पर दिल्ली पुलिस ने कठोर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए हैं.
खालिद उन कई छात्रों और कार्यकर्ताओं में शामिल थे, जिन्हें नागरिक संशोधन अधिनियम सीएए, 2019 और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में जेल भेजा गया था.
सीएए और एनआरसी
9 दिसंबर, 2019 को, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन पेश किया, जिसने धार्मिक उत्पीड़न के कारण पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भागे हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता की अनुमति दी.
हालांकि, बिल में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं किया गया, जिसके कारण व्यापक राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए. प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि बिल ने भारतीय संविधान में वर्णित समानता के अधिकार का उल्लंघन किया है.
खालिद को 18 अन्य लोगों के साथ 13 सितंबर, 2020 को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. तब से, खालिद अदालत के दौरे का एक हिस्सा रहा है. आरोप है कि यह झूठे आख्यानों और विसंगतियों के साथ एक केस का बड़ा हिस्सा है.
उमर खालिद क्यों
द वायर द्वारा 2020 में लिखे एक लेख में कहा गया है, “खालिद और अन्य को चुनना सीएए विरोधी प्रदर्शनों को विशुद्ध रूप से मुसलमानों के नेतृत्व में प्रदर्शित करने का काम करता है, न कि उन्हें व्यापक, विविध भारत-व्यापी घटना के रूप में स्वीकार करने के बजाय, जिसमें वे लोग शामिल थे. एक बार जब आप एक आंदोलन को ज्यादातर मुस्लिम-नेतृत्व (और कट्टरपंथी वामपंथियों को शामिल करते हुए) के रूप में चित्रित करते हैं, तो इसे दबाना आसान हो जाता है और दूसरों को इसमें शामिल होने से रोकता है.
खालिद का दिया गया बयान ऑनलाइन उपलब्ध है, जिसे दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ इस्तेमाल किया. वो इस भाषण में कहते हैं, हम हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देंगे, गुस्से का गुस्से से, अगर वे नफरत फैलाते हैं तो हम प्यार से जवाब देंगे, अगर वे डंडों का इस्तेमाल करेंगे, तो हम उन्हें उड़ाएंगे. गोली चलाएंगे तो हम संविधान को ऊंचा उठाएंगे, जेल में डालेंगे तो सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा गाएंगे और खुशी-खुशी जेल जाएंगे, लेकिन हम आपको इस देश को बर्बाद नहीं होने देंगे.
क्या यह देशविरोधी बयान है ? बावजूद इसके मोदी सरकार ने इसे अपने हिंदू राष्ट्र की राह का रोड़ा माना. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने खालिद को तेजी से उभरते हिंदू राष्ट्र में मुसलमानों के लिए प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में देखना शुरू किया. उन्होंने एक युवा, निडर, शिक्षित, सामाजिक रूप से जागरूक भारतीय मुस्लिम का प्रतिनिधित्व किया, जिसके खिलाफ भगवा पार्टी ने लगातार काम किया है.
Difficult To Assume 'Mob' From Muslim Community Would Chant ‘Jai Shree Ram’: Court Raps Delhi Police For Clubbing Complaints Without Probe, Acquits 3
— Live Law (@LiveLawIndia) June 8, 2023
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दिल्ली हाई कोर्ट का खालिद को जमानत से इनकार
18 अक्टूबर, 2022 को खालिद को दिल्ली उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित कारणों से जमानत देने से इनकार कर दिया.
-दिल्ली उच्च न्यायालय ने खालिद को इस तथ्य के आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया कि उन्होंने व्हाट्सएप समूह के माध्यम से संदेश भेजे जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संभावित खतरा हो सकते थे. हालांकि, अनुच्छेद 14 इस दलील के साथ इसे खारिज करेता है कि व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा बनना कोई अपराध नहीं है. पुलिस खालिद द्वारा अदालत में भेजे गए किसी भी संदेश को दिखाने या प्रस्तुत करने में असमर्थ रहे.
-दिल्ली दंगे के दौरान खालिद ने जंतर मंतर, जंगपुरा कार्यालय, शाहीन बाग, सीलमपुर, जाफराबाद और भारतीय सामाजिक संस्थान में विभिन्न बैठकों में भाग लिया.
-जनसभाओं में भाग लेने में कोई बुराई नहीं है. खालिद के खिलाफ गवाही देने वाले गवाहों को कथित बैठकों के कई महीने बाद लाया गया. अदालत इस बात का ठोस कारण नहीं बता पाई कि सिर्फ एक बैठक में शामिल होने के लिए जमानत क्यों नहीं दी गई ?
-खालिद ने अमरावती भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा का जिक्र किया था.
-अदालत एक भाषण का जिक्र करती है (जो अभी भी ऑनलाइन उपलब्ध है) जिसमें खालिद पर 24 फरवरी, 2020 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था.
-हालांकि 20 मिनट के भाषण में खालिद ने ट्रंप के खिलाफ किसी हिंसक या भड़काऊ वाक्य या शब्द का जिक्र नहीं किया.
-उन्होंने कहा, मैं वादा करता हूं कि जब डोनाल्ड ट्रम्प 24 फरवरी को भारत आएंगे, तो हम दिखाएंगे कि कैसे पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार देश को विभाजित करने और महात्मा गांधी के सिद्धांतों को कलंकित करने की कोशिश कर रही है … हम भारी संख्या में सड़कों पर उतरेंगे. बता दें (अमेरिकी राष्ट्रपति) भारत के सभी लोगों को एक साथ लाने के लिए लड़ रहे हैं, ”
सीडीआर विश्लेषण दर्शाता है कि दंगों के बाद अपीलकर्ता और अन्य सह-अभियुक्तों के बीच कॉलों की झड़ी लग गई थी.खालिद के वकील ने कोर्ट में कहा कि साम्प्रदायिक दंगे में फंसे लोगों का एक-दूसरे को फोन करना सामान्य बात है. बावजूद इसके खालिद को इस साल 8 जून को फिर से जमानत से वंचित कर दिया गया.
उमर खालिद के साथ एकजुटता
उमर खालिद के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए शुक्रवार को प्रेस क्लब में बड़ी संख्या में छात्र, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और मीडिया हस्तियां एकत्रित हुईं.उन्होंने डेमोक्रेसी, डिसेंट एंड सेंसरशिप के बारे में बात करते हुए खालिद के 1,000 दिनों के कारावास को प्रतिरोध के 1,000 दिनों के बराबर बताया गया.
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा, “यह 1,000 दिनों की कैद के साथ 1,000 दिनों के प्रतिरोध का है. उमर खालिद को यह जानकर बहुत खुशी होगी कि इस चिलचिलाती गर्मी में लोकतंत्र की रक्षा के लिए सैकड़ों लोग जमा हुए हैं.
यह एकजुटता सिर्फ उमर के लिए नहीं, बल्कि हर राजनीतिक कैदी के लिए है. यह स्मृति की लड़ाई है. एक प्रमुख स्मृति आज मुख्यधारा है, जबकि हाशिये पर रहने वाले समुदायों की यादों को नजरअंदाज किया जाता है.
Ravish Kumar spoke about incarceration of Umar Khalid. #1000DaysOfInjusticepic.twitter.com/w8BHXwPoL1
— Md Asif Khan (@imMAK02) June 9, 2023
प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार जेल में बंद छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद के 1000 दिनों के बारे में बोलते हुए कहा कि उनके जैसे लोगों के लिए न्याय के दरवाजे तक का रास्ता बहुत लंबा खिंच गया है.उन्हांेने कहा,“1,000 दिन याद रखें जो बीत चुके हैं. याद रखें कि ये केवल खालिद की कैद के 1,000 दिन नहीं, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए शर्म के 1,000 दिन भी है.
जेएनयू के प्रोफेसर एमेरिटस प्रभात पटनायक ने कहा कि खालिद को लगातार हिरासत में रखना सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि एक प्रतिभा का सामाजिक अपशिष्ट है.औपनिवेशिक दिनों में भी गांधी कभी भी दो साल से ज्यादा जेल में नहीं रहे. नेहरू एक बार में सबसे लंबे समय तक 1,041 दिनों तक जेल में रहे.उमर अब 1,000 दिनों से जेल में हैं.उन्होंने कहा, यह लोकतंत्र के खिलाफ है. किसी को भी मामूली बहाने से जेल में डाला जा सकता है.
इस कार्यक्रम में खालिद के पिता एसक्यूआर इलियास भी मौजूद थे, जिन्होंने कहा कि जेल की चारदीवारी ने उनके बेटे के जज्बे को कम नहीं किया है.क्या 1,000 दिनों की जेल ने उमर के आत्मविश्वास को डगमगाया है, क्या इसने उसके दोस्तों के उत्साह को कम किया है? कदापि नहीं. जब मैं उन सभी लोगों को देखता हूं जो अदालती सुनवाई के दौरान जेल गए हैं, तो मुझे उनके चेहरों पर आत्मविश्वास दिखता है. वे जानते हैं कि वे किसी कारण से जेल में हैं.
उन्होंने कहा कि उनका बेटा देश और लोकतंत्र के लिए लड़ रहा है. खालिद को हाल ही में अपनी बहन की शादी में शामिल होने के लिए आठ दिन की जमानत मिली थी.
( सियासत डाॅट काम, समाचार एजेंसियों से इनपुट्स के साथ)