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मुसलमानों को ‘बेचने’ की नई दुकान खुली !

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

भारत के मुसलमान बिकाउ हैं ? यह हम नहीं कह रहे. देश की आजादी से लेकर अब तक मुस्लिम बैंक के ठेकेदार कौम की भलाई के नाम पर इसका सौदा करते रहे हैं. उनका ‘कल्याण’ तो हो गया, पर मुसलमान आज भी तकरीबन वहीं खड़े हंै, जहां वे आजादी से पहले कमोबेश थे. यकीन नहीं है तो सच्चा कमेटी की रिपोर्ट पढ़लें. इन सबके बीच मुसलमानों का सौदा करने के लिए एक नई दुकान खुल गई है.

यकीन न हो तो यह खबर पढ़ें. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं ने दिल्ली में पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग के आवास पर पहुंच कर कुछ मुस्लिम बड़ी जमातों और बड़े और अहम नेताओं के साथ बंद कमरे में मुलाकात की.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मीटिंग में हेट स्पीच, दंगे, मॉब लींचिंग, सरकार द्वारा आबादी पर बुलडोजर चलाने और काशी मथुरा के मंदिर जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई.

14 जनवरी को आरएसएस नेताओं के प्रतिनिधिमंडल जिसमें राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार, वरिष्ठ आरएसएस प्रचारक राम लाल और कृष्ण गोपाल शामिल थे. जबकि मुस्लिम पक्ष की ओर से दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग, पूर्व चुनाव आयुक्त शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी, पत्रकार एवं पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी, होटल मालिक सईद शेरवानी शामिल रहे. जबकि एएमयू के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत्त जमीरुद्दीन शाह बैठक में नहीं पहुंच सके.

ये बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इस बैठक में जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और दारुल उलूम देवबंद के धार्मिक नेता भी उपस्थित थे. इससे पहले 13 जनवरी को मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं के नेताओं और बुद्धिजीवियों ने आरएसएस प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक पूर्व पॉइंट्स तैयार करने के लिए पत्रकार शहीद सिद्दीकी के निवास पर नजीब जंग से मिले थे.

आरएसएस प्रतिनिधमंडल के साथ बातचीत के बाद पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने कहा कि हमारी एक और सुखद बैठक हुई है. जिसमें मुसलमानों को एक किनारे डाल दिए जाने पर समाज की चिंताओं से अवगत कराया गया है. उन्होंने कहा कि वह अन्य शहरों में फिर से मिलने के लिए काफी पुर-उम्मीद हैं.

जमात-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय सचिव मलिक मोतसिम खान ने बताया कि आरएसएस नेताओं के सामने अभद्र भाषा का मुद्दा उठाया गया, जिस पर आरएसएस के नेता इस बात पर सहमत हुए कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की बदनामी हुई है. तीन घंटे तक चली मैराथन मीटिंग में यह भी प्रतिबद्धता दोहराई गई कि इस तरह की बैठकें अन्य शहरों में भी रखी जाएंगी.

बता दें कि इससे पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पहली बार पिछले साल 22 अगस्त को पांच बड़े मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मिले थे.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह सरगर्मी तब शुरू हुई है जब अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं. जिन लोगों ने नई दुकान खोली है, ये वही लोग हैं जब तीन तलाक, राम मंदिर, अनुच्छेद 370, सीएए जैसे विवाद चरम पर थे, ये गधे के सिर के सिंग की तरह गायब थे. आम मुसलमानों को इनपर नजर रखने की जरूरत है कि नए दुकानदार ’मुसमलानों का सौदा’ किन शर्तों पर करते हैं.