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जामिया और एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर उठे सवालों को अब्दुर रहमान ने दिया मुंहतोड़ जवाब

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव 2024 में वे चेहरे भी बेनकाब हुए, जो खुद को सेक्युलर बता कर सार्वजनिक जीवन में सम्मान, पद और पैसा पाते रहे हैं. ऐसे लोगों ने चुनाव में तमाम हदें पार कर दीं थीं. यहां तक कि जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी मुसलमानों के खिलाफ अनर्गल बयान बाजी कर रहे थे, तब कुछ सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर ने एक खास एजेंडा के तहत सत्तारूढ़ दल को लाभ पहुंचाने के लिए मुसलमानों के प्रति दलितांे को भड़काने का प्रयास किया. ऐसे लोगों ने बीजेपी के सुर से सुर मिलाकर मुसलमानों को आरक्षण देने के मसले पर दुष्प्रचार फैलाया.

हद यह कि ऐसे सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर और बीजेपी नेता चुनाव से पहले तक ‘पसमांदा मुसलमानों’ की ‘दुर्दशा’ पर खूब घड़ियाली आंसू बहाते रहे हैं. मगर जब उन्हें आरक्षण देने का आश्वासन कांग्रेस और चंद्रबाबू नायडू सरीखे नेताओं की ओर से आया तो उन्होंने उनके खिलाफ विरोध का बिगुल बजा दिया. ऐसे ही लोगों में खुद को अंबेडकर वाद का नया पुरोधा बताने वाले एक पत्रकार भी थे. हद यह कि चुनाव के बाद भी यह पत्रकार शांत नहीं हुआ है. अपने पुराने एजेंडे पर चल रहा है. यदि कोई मुसलमानों को आरक्षण देने की बात करता है तो उक्त पत्रकार धमकी भरे लहजे में कहता है, ‘चिंता मत करो जब एएमयू और जामिया में दलितों को आरक्षण मिलने लगेगा तब तुम्हारे होश ठिकाने आएंगे.’’

इस बीच बिहार के मूल निवासी और महाराष्ट्र के सीनियर आईपीएस अब्दुर रहमान ने जामिया और एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जे पर सवाल उठाने वालों को करारा जवाब दिया है. उन्हांेने सोशल मीडिया पर अपने एक्स हैंडल से जवाब दिया है कि कैसे एएमयू और जामिया को अल्पसंख्यक दर्जा मिला हुआ है और इसके साथ छेड़ छाड़ करने का मतलब है संविधान और यूएन चार्टर का उल्लंघन करना. अब्दुर रहमान के इस जवाब से निश्चित ही वे लोग सिर धुनते नजर आएंगे जो एक हाथ में संविधान लेने का ढोंग कर मुसलमानों के खिलाफ अभियान चला रहे हैं.

अब्दुर रहमान ने अपने हैंडल पर जो लिखा है, उसे यहां हू-ब-हू प्रकाशित किया जा रहा है.वह एक्स पर लिखते हैं-संयुक्त राष्ट्र संघ के ऑब्लिगेशन के अनुसार किसी राष्ट्र में सभी अल्पसंख्यक, चाहे धार्मिक, भाषाई, या जातीय आदि हों, उन्हें अपनी धार्मिक , भाषा, संस्कृत आदि पहचान बचाने और उसके संरक्षण और संवर्धन की पूरी आजादी होनी चाहिए. इसी को ध्यान में रखकर संविधान में अनुच्छेद 29 और 30 को जोड़ा गया है.

अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यक समुदाय को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उसे चलाने की पूरी आजादी है. भारत में यह आजादी सिर्फ मुसलमानों को नहीं बल्कि सभी अल्पसंख्यक को है. इसी के तहत माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन एक्ट बनाया गया है. इसके अनुसार यदि AMU या जामिया को अल्पसंख्यक दर्जा है तो ऐतराज किस बात का. इन संस्थानों में 50% सीटें मुसलमानों के लिए है और बाकि पचास फीसदी सभी के लिए जहाँ SC, ST, OBC और EWS आरक्षण दिया जाता है. सुधार की गुंजाइश है. मुसलमानो के कोटे में भी उचित आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए.

कुछ तथाकथित obc विचारक इसे बंद करके इन सीटों को लेने के लिए आस लगाए बैठे हैं जो गलत हैँ, संविधान और UN के mandate के अनुसार. ये विचारक IIT, IIM, और बाकी संस्थान जहाँ ओबीसी की हक़मारी की गई है वहां आवाज क्यों नहीं उठाते. 52% ओबीसी को राजनीति में 25% ही प्रतिनिधित्व हैँ इसके लिए कब बोलेंगे? मंडल पूरी तरह लागू नहीं है. ओबीसी की योजना सही तरीके से लागू नहीं हो रही है. इन सभी विषयों पर कब बोलेंगे?

अब्दुर रहमान का यह ट्वीट वायरल हो रहा है. रिपोर्ट लिखने तक इसे लगभग पांच हजार लोग देख चुके हैं और बड़ी तादाद में रि-ट्वीट किया गया है. उनके इस ट्वीट पर कई लोगों ने कमेंट किए हैं.

बता दूं कि अब्दुर रहमान वही आईपीएस अधिकारी हैं जिन्होंने सीएए के सवाल पर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था. तब से वह मुसलमानों के हक में निरंतर आवाज उठा रहे हैं. मुसलमानों के पिछड़ापन पर उन्हांेने पुस्तक भी लिखी है. वह खुद भी अंबेडकर वादी हैं और पिछड़े वर्ग की आवाज बुलंद करने वालों में आगे हैं.

लोकसभा चुनाव 2024 में अनर्गल बयानबाजी:

  • बीजेपी नेताओं और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने मुसलमानों के खिलाफ दलितों को भड़काने की कोशिश की.
  • पसमांदा मुसलमानों की ‘दुर्दशा’ पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले कुछ लोग अब आरक्षण के विरोध में.

आईपीएस अब्दुर रहमान का जवाब:

जामिया और एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सवाल उठाने वालों को संविधान और यूएन चार्टर के उल्लंघन के खिलाफ चेतावनी.
अनुच्छेद 29 और 30 का हवाला देते हुए अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन की आजादी की पुष्टि.

आरक्षण और अल्पसंख्यक संस्थान

  • एएमयू और जामिया में 50% सीटें मुसलमानों के लिए और बाकी 50% सीटों पर एससी, एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के आरक्षण का प्रावधान.
  • मुसलमानों के कोटे में भी उचित आरक्षण का समर्थन.

अन्य मुद्दे

  • तथाकथित ओबीसी विचारकों पर सवाल उठाया कि वे IIT, IIM और अन्य संस्थानों में ओबीसी के हक के लिए आवाज क्यों नहीं उठाते.
  • राजनीति में ओबीसी के प्रतिनिधित्व की कमी और मंडल आयोग की पूरी तरह से लागू न होने की समस्या.

अब्दुर रहमान की भूमिका:

सीएए के सवाल पर नौकरी से त्यागपत्र देने वाले आईपीएस अधिकारी.
मुसलमानों और पिछड़े वर्ग के हक में निरंतर आवाज उठाने वाले अंबेडकरवादी.