अयोध्याः राम जन्मभूमि का मुद्दा खत्म, अब चाहिए विकास और रोजगार, मुसलमान कर रहे हैं मीटिंग
मुस्लिम नाउ ब्यूरो ,अयोध्या
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भले ही अध्योध्या में राम मंदिर बनने और इससे रोजगार तथा विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हों, पर इसमें वहां के मुसलमानों की कितनी हिस्सेदारी होगी ? यह मूल प्रश्न है. अभी जब उत्तर प्रदेश पर विधानसभा चुनाव का बुखार चढ़ा हुआ है, अध्योध्या का मुसलमान अपनी बुनियादी सुविधाओं को लेकर बैठकें कर रहा है. इन बैठकों में उम्मीदवारों एवं पार्टियों का ध्यान मुसलमानों के रोजगार, कारोबार और विकास पर दिलाने की कोशिश चल रही है.
अयोध्या के मुसलमानों को लगता है कि राम मंदिर मुद्दे की हवा निकल चुकी है. अब राजनीतिक दलों को आगे बढ़ कर जनहित के मसले पर ध्यान देना चाहिए.
अयोध्या में हिंदू और मुसलमान एक साथ रहते हैं. इकबाल अंसारी, जो राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सबसे पुराने स्वतंत्र वादी थे, उनके बेटे मोहम्मद हाशिम अंसारी का कहना है कि जिले में बेहतर सड़कें, पार्किंग सुविधाएं और कारखाने की आवश्यकता है, ताकि लोगों को बुनियादी सुविधाओं के साथ रोजी-रोजगार मिल सके.
उन्होंने कहा, ‘‘यहां हजारों मंदिर हैं. राम मंदिर भी बन रहा है. उन्होंने कहा , ‘‘अब, हमारे युवाओं को रोजगार की जरूरत है. विकास होना चाहिए. अयोध्या अब एक जिला बन चुका है.‘‘उन्होंने कहा, ‘मंदिर-मस्जिद का मुद्दा अब यहां नहीं रहा. मुसलमानों ने अदालत के फैसले को आत्मसात कर लिया. अब समय है रोजगार और विकास की बात करने का.”
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करते हुए, अंसारी ने कहा, “उन्होंने राज्य को दंगा मुक्त बनाकर वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा है. पिछले पांच साल में कोई दंगा नहीं हुआ.”
76 वर्षीय हाजी महबूब, जो राम जन्मभूमि पुलिस स्टेशन के पास रहते हैं और अयोध्या टाइटल सूट मामले में एक अन्य प्रमुख वादी थे, ने कहा कि सरकार इस बार जो कुछ भी कहेगी, उसमें ‘बदलाव‘ होगा. उनकी मानें तो इस बार यूपी में सरकार बदलने वाली है.
अयोध्या में राजनीतिक माहौल के बारे में उन्होंने कहा कि इस बार समाजवादी पार्टी के पास एक अच्छा मौका है. उसके नेता ने आम लोगों से जुड़े सभी मुद्दों को उठाया है, जो अपने बच्चों के लिए बेहतर रहने की स्थिति और नौकरी चाहते हैं.रथ हवेली रोड निवासी हामिद जफर मीसाम ने कहा कि कोविड-19 के कारण मध्यम वर्ग को बहुत नुकसान हुआ है. सरकार ने उनके लिए कुछ खास नहीं किया.
कहते हैं,“ वह बिजली बिलों, ऋण किस्तों का भुगतान करने में उलझे हुए हैं. उन्हें कोई खास राहत नहीं दी गई. बड़ी डिग्री वाले डॉक्टरों ने कोविड के समय झोला छाप डाॅक्टरों के दम पर हमें छोड़ दिया. किसी ने इसकी खोज-खबर नहीं ली.’’उन्होंने कहा,“लोगों की मृत्यु न केवल कोविड के कारण हुई, बल्कि दिल के दौरे और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी हुइ. ओपीडी बंद थे. यहां रोजगार और चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता है. ”
शुरूआत में यहां चुनाव लड़ने में योगी आदित्यनाथ के दिलचस्पी दिखाने, बाद यहां से चुनाव नहीं लड़ने के बारे में, मिसाम ने कहा, ‘‘वो भाग खड़े हुए यहां से. आतंरिक सर्वेक्षण में उन्हें पता चल गया था कि लोग बहुत नाराज हैं.‘‘
राम मंदिर मुद्दे के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘ भाजपा सरकार के कारण नहीं अदालत के फैसले कारण यहां राम मंदिर का निर्माण हो रहा है. मुसलमानों ने अदालत के फैसले को सर-आंखों पर लिया है..‘‘
कांगी गली मस्जिद के पास रहने वाले खालिक अहमद खान ने कहा कि मुसलमान हमेशा धर्मनिरपेक्ष ताकतों को वोट देंग. सांप्रदायिक ताकतों के साथ कभी नहीं जाएंगे.अगर किसी मुसलमान ने सांप्रदायिक आधार पर किसी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा है, तो वह खुद मुसलमानों से हार गया है. हम किसी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में हैं.‘‘
उन्होंने कहा कि राम मंदिर का मामला अब कोई मुद्दा नहीं रहा. राजनीतिक दलों को आगे बढ़ना चाहिए . जन-केंद्रित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.बता दें कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2018 में फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या जिला कर दिया था, पर बुनियादी सुविधाएं यहां आज भी बदहाल ही हैं
2011 की जनगणना के अनुसार अयोध्या में हिंदू बहुसंख्यक हैं. जिले में कुल आबादी में 84.75 फीसदी हिंदू, 14.80 फीसदी मुस्लिम और अन्य हैं.पांचवें चरण में 27 फरवरी को अयोध्या में मतदान होना है.जिले में पांच विधानसभा सीटें हैं, जो वर्तमान में भाजपा के पास हैं.विभिन्न राजनीतिक दलों ने अभी तक यहां से अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है.