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मिलिए, अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने वाले कश्मीरी युवक मोहम्मद रफी से

फैयाज वानी, श्रीनगर

‘फेशियल हेमांजिओमा’ (facial hemangioma) के साथ पैदा हुए फैयाज वानी की रीढ़ की हड्डी में 2010 में चोट लग गई थी. इसके कारण वह बिस्तर पर पड़े जिंदगी गुजार रहे थे. मगर बाद में उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव आया कि वह अब दूसरों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं.

रिहैबिलिटेशन के बाद के बाद मोहम्मद रफी वानी मे आए बदलाव के बाद वह अपने स्टेट के व्हीलचेयर बास्केटबॉल के अच्छे खिलाड़ियों में गिने जाते हैं. उन्होंने राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में जम्मू-कश्मीर का भी प्रतिनिधित्व किया है.श्रीनगर के बाहरी इलाके लावेपोरा में रहने वाले 35 वर्षीय रफी को स्वास्थ्य लाभ देने के लिए सर्जरी, विकिरण चिकित्सा और अन्य चिकित्सा उपचार कराए जाने के बावजूद कुछ लाभ नहीं मिला.

मोहम्मद रफी बताते हैं कि 2006 में जब मैं पढ़ रहा था, तब फेशियल हेमांजिओमा को हटाने को लेकर दिल्ली के एक अस्पताल के डॉक्टर ने बताया था कि अगर इसे हटा भी दिया जाए, तो संभावना है कि यह दोबारा हो जाएगा.फेशियल हेमांजिओमा हटाने की सर्जरी भी बहुत जटिल  है. उन्होंने सलाह दी कि चूंकि यह मेरे सामान्य जीवन को प्रभावित नहीं कर रहा है, मुझे शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए और इसे अनदेखा करना चाहिए.”

रफी ने तब इसे (फेशियल हेमांजिओमा) को बहुत अधिक महत्व नहीं देने का फैसला किया और अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर दिया.

फिर, जबकि जीवन सामान्य रूप से चल रहा था, एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना उनके साथ हुई. रफी बताते हैं, “मैं 12 मई, 2010 को अपने घर की छत से गिर गया. मुझे रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी. मुझे श्रीनगर के एक सरकारी अस्पताल में ले जाया गया, जहां मुझे टी-11 कम्प्रेशन फ्रैक्चर हुआ. दुर्भाग्य से अस्पतालों के डॉक्टरों ने ठीक से मेरा इलाज नहीं किया. सर्जरी करने के बजाय, उन्होंने इंतजार करने और देखने का फैसला किया, जिससे मेरे ठीक होने की संभावना बिलकुल खत्म हो गई.

उन्होंने कहा कि बाद में कुछ डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि अगर सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने तत्परता दिखाई  होती और उनके गिरने के 24 घंटे के भीतर सर्जरी की होती तो उनके ठीक होने की बहुत संभावना थी. गिरने के बाद, वह लगभग एक साल तक पूरी तरह से बिस्तर पर पड़े रहे. तब वह अपने शरीर की गति और जीवित रहने के लिए पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर थे.

उन्होंने बताया, मेरा परिवार और मेरे रिश्तेदार मेरे कठिन दिनों में मेरे साथ खड़े रहे. मैं हिल-डुल नहीं सकता था और हर चीज के लिए दूसरों पर निर्भर था.

मगर 2011 के मध्य से उसके लिए चीजें बदलने लगीं. उन्हें शफाकत पुनर्वास केंद्र, श्रीनगर में दाखिल कराया गया. यह गैर सरकारी संस्था स्वैच्छिक चिकित्सा देखभाल, व्यापक शारीरिक और संज्ञानात्मक पुनर्वास सेवाएं प्रदान करने ,विशेष चिकित्सा पुनर्वास केंद्र के तौर पर इलाके में जाना जाता है.

रफी ने बताया कि  मुझे केंद्र में फिजियोथेरेपी प्रदान की गई. इसके बाद पोस्चर बैलेंस करने में मुझे एक साल लगा. केंद्र में मुझे व्हीलचेयर का उपयोग करना सिखाया गया. केंद्र में लगातार फिजियोथेरेपी, मनोचिकित्सा, परामर्श और डॉक्टरों की सलाह और परामर्श मिलने से उन्हें बिस्तर से उठ खड़ा होने मंे बहुत मदद मिली. वह व्हीलचेयर के उपयोग के कारण गतिशील हुए. मनोबल भी बढ़ाया. गिरने के बाद वह डिप्रेशन में चले गए थे. काउंसलिंग और नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के बाद वह इससे बाहर आ गए.

व्हीलचेयर कौशल सीखने के बाद, रफी को पुनर्वास केंद्र में मजेदार खेलों और व्हीलचेयर बास्केटबॉल से परिचित कराया गया.स्पोर्ट्स स्पेशल व्हीलचेयर के साथ उन्होंने व्हीलचेयर बास्केटबॉल कौशल सीखा.  2015 में व्हीलचेयर बास्केटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा चेन्नई में आयोजित इसके प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुए.

उसके बाद से  उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2015 में दिल्ली में आयोजित दूसरी राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल चैंपियनशिप में जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व किया. हालांकि यह पहली बार था जब जम्मू-कश्मीर की इस तरह की टीम ने इस कार्यक्रम में भाग लिया. टीम क्वार्टर फाइनल में पहुंच कर हार गई थी.

रफी ने 2017, 2018 और 2019 में राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल चैंपियनशिप में जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व किया. पिछले संस्करण में जम्मू-कश्मीर सेमीफाइनल में पहुंचा था.अब वह न केवल जम्मू-कश्मीर व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम के नियमित सदस्य हैं, अन्य शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को भी खेल में प्रशिक्षित करते हैं.

रफी ने बताया कि मैं शफाकत पुनर्वास केंद्र में शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए नियमित परामर्श सत्र और सहकर्मी प्रशिक्षण आयोजित कर रहा हूं. मैं व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ियों को भी प्रशिक्षित करता हूं.

वह 22 मई से गंगा फाउंडेशन नामक एक गैर सरकारी संगठन में एक सहकर्मी प्रशिक्षक के रूप में भी काम कर रहे हैं, जहां वे ऑनलाइन परामर्श सत्र आयोजित करते हैं. एक बार बिस्तर तक सीमित रहने के बाद, रफी अब एक संशोधित कार चलाते हैं. दूसरों पर निर्भर भी नहीं हैं. वह कहते हैं, आज मैं किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह एक स्वतंत्र व्यक्ति हूं. मैं भी एक उद्यमी हूं और अपना अस्थायी स्टोर चलाता हूं.उन्होंने कहा, कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. हालात से लड़ते रहना चाहिए.