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अशोक स्तंभ के शेर पर विवादः इतिहासकारों ने कहा भारत को आक्रामक दिखाने की कोशिश

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

इतिहासकारों के एक वर्ग ने नए संसद भवन में अशोक स्तंभ के शेर को लगत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया है. जबकि अन्य कहते हैं कि मतभेद मामूली हैं. दो कलाएं कभी एक जैसी नहीं हो सकतीं.

पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में नए संसद भवन की छत पर अशोक स्तंभ के शेर की मूर्ति का अनावरण किया था. मगर इसके विवाद में आने के बाद भारत के प्रतीक शेर को जांच के घेरे में ले लिया है.

हरबंस मुखिया, राजमोहन गांधी, कुणाल चक्रवर्ती और नयनजोत लाहिड़ी सहित कई इतिहासकारों के अनुसार, अशोक के नमूनों की तुलना में नए शेर भिन्न हैं और समान शांति और शांति नहीं देते हैं.हैदराबाद के महिंद्रा विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर ने बताया,साथी इतिहासकार पारोमिता दास गुप्ता ने इस बात से असहमति जताते हुए कहा कि हाल के कलाकारों में शेर बड़े और अधिक एनिमेटेड दिखते हैं, जो जानवर के चरित्र के लिए सही हैं.जिन कलाकारों ने उन्हें बनाया है वे 2,500 साल से अधिक अलग हैं, इसलिए शिल्प कौशल स्पष्ट रूप से भिन्न होगा. यह कार्बन कॉपी नहीं हो सकती, क्योंकि कला के दो काम समान नहीं हैं,

सारनाथ में अशोक के नए प्रतीक और मूल सिंह राजधानी के बीच अंतर बहुत दिखाई देता है. राजमोहन गांधी, एक इतिहासकार, जो वर्तमान में अर्बाना-शैंपेन में इलिनोइस विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.

महात्मा गांधी के पोते ने कहा, कोई भी प्रासंगिक तस्वीरों पर एक नजर डालने पर भी फर्क महसूस कर सकता है.मूल कार्य में गरिमा और आत्मविश्वास है. वहां के शेर सुरक्षात्मक शेर हैं. वर्तमान मूर्तिकला क्रोध और बेचौनी को दर्शाता है. यहां के शेर आक्रामक है.जाने-माने इतिहासकार हरबंस मुखिया ने भी ऐसा ही मत व्यक्त किया है. उन्होंने कहा, शेरों को आक्रामक माना जाता है, लेकिन ये शेर (अशोक) आक्रामक नहीं हैं. वे शांति और सुरक्षा का संदेश देते हैं. सौम्य प्रकार के शेर हैं. नए शेरों में दांत अधिक दिखाई देते हैं जो पुराने शेरों में नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि दांत दिखाना आक्रामकता का एक मजबूत संकेत है जो आक्रामक राष्ट्रवाद को दर्शाता है, जिसे चित्रित करने का प्रयास किया जा रहा है.

उन्होंने कहा,यह अनजाने में नहीं किया गया है. उनके विचार में, कलाकारों को स्वतंत्रता तो है लेकिन वे उस मूल संदेश को नहीं बदल सकते जो कला का अंश व्यक्त करना चाहता है.दांत यहां विशेष रूप से आक्रामक हैं. यह मूल प्रकृति को बदल देता है. संशोधन एक अर्थ व्यक्त करते हैं. यह शासन किस तरह का संदेश देने की कोशिश कर रहा है? क्या आप भारत को एक शांतिपूर्ण देश से एक आक्रामक देश में बदल रहे हैं?”

मुखिया ने जोर देकर कहा कि मूल शेरों ने शांति और सुरक्षा का अर्थ बताया.जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए कुणाल चक्रवर्ती ने कहा कि नए संसद भवन का प्रतीक इतने सालों से जो देखा गया है, उससे अलग दिखता है.

चक्रवर्ती ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सारनाथ के शेर आंतरिक शक्ति और शांति का अनुभव करते है.उन्होंने कहा कि बेहतर आकलन के लिए उन्हें संसद भवन में लगे नए चिन्ह को और करीब से देखना होगा.

उन्होंने कहा, मैंने अशोक के शेरों को करीब से देखा है और वे शांति, शक्ति और सुरक्षा के प्रतीक हैं जो एक नए राष्ट्र के पास होनी चाहिए.उन्होंने कहा,मैं देख सकता हूं कि दांत अधिक दिखाई दे रहे हैं. मैंने टीवी पर निर्माता को यह कहते हुए भी सुना कि वे एक जैसे हैं, लेकिन वे दिखने में भिन्न हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है.

प्राचीन भारत के विशेषज्ञ नयनजोत लाहिड़ी ने यह भी बताया है कि नए शेरों के चेहरे पर क्रूर अभिव्यक्ति सारनाथ की राजधानी में उनके बैक-टू-बैक बैठे भाइयों की सौम्य आभा से गुणात्मक रूप से अलग है.
उन्होंने कहा कि मूल का सार मिटा दिया गया है.अपनी बात पर तर्क देते हुए, परोमिता दास गुप्ता ने कहा कि नए संसद भवन में हाल की नकल की छवियों में राष्ट्रीय प्रतीक के आवश्यक प्रतीक या चिह्न हैं, जिसे 1950 में भारत के गणतंत्र बनने पर अपनाया गया था.

छोटे अंतर नए अनुकूलन के आकार,आयाम में निहित हैं. हाल ही की कास्ट में शेर बड़े और अधिक एनिमेटेड दिखते हैं, जो जानवरों के लिए सही हैं.