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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत और समुदाय के बदलते राजनीतिक रुझान

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे कई अहम राजनीतिक संदेश लेकर आए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी की, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को भारी नुकसान उठाना पड़ा. इस चुनाव में मुस्लिम बहुल सीटों पर भी रोचक परिणाम सामने आए। जहां आप ने अधिकांश मुस्लिम बहुल सीटों पर कब्जा बरकरार रखा, वहीं भाजपा ने पहली बार मुस्तफाबाद सीट जीतकर इस समुदाय के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराई.

मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में आप की पकड़ बरकरार

इस बार दिल्ली विधानसभा में चार मुस्लिम विधायक चुनकर पहुंचे, जो कि पिछली विधानसभा से एक कम है। 2020 में आप ने मुस्लिम आबादी वाली सभी सात सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2025 में मुस्तफाबाद में मुस्लिम वोटों के विभाजन का फायदा भाजपा को मिला.।

चार विजयी मुस्लिम उम्मीदवार:

  1. इमरान हुसैन (बल्लीमारान) – अरविंद केजरीवाल के करीबी माने जाने वाले इमरान हुसैन ने लगातार तीसरी बार इस सीट पर जीत दर्ज की.
  2. आले मोहम्मद इकबाल (मटिया महल) – आप के वरिष्ठ नेता और नगर निगम में भी अहम भूमिका निभा चुके हैं.
  3. अमानतुल्लाह खान (ओखला) – मुस्लिम समुदाय में बेहद प्रभावशाली नेता माने जाते हैं, जिन्होंने भारी मतों से जीत हासिल की.
  4. चौधरी जुबैर अहमद (सीलमपुर) – उन्होंने भी अपने प्रतिद्वंद्वियों को बड़े अंतर से हराया।.

मुस्तफाबाद में मुस्लिम वोटों का विभाजन और भाजपा की जीत

मुस्तफाबाद सीट भाजपा के खाते में गई, जहां भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने 17,578 वोटों से जीत दर्ज की। यह सीट हमेशा मुस्लिम बहुल मानी जाती रही है, लेकिन इस बार आप, कांग्रेस और एआईएमआईएम के बीच मुस्लिम वोटों के बंटवारे के कारण भाजपा को जीतने का अवसर मिला।

मुस्तफाबाद में प्रमुख आंकड़े:

  • कुल मुस्लिम उम्मीदवारों को मिले वोट: 1,12,874
  • AIMIM उम्मीदवार ताहिर हुसैन (जो दिल्ली दंगों के मामले में जेल में हैं) को मिले वोट: 33,474 (तीसरे स्थान पर रहे)
  • कांग्रेस और आप के मुस्लिम प्रत्याशी के वोट भी बंटे, जिससे भाजपा को फायदा मिला।

मुस्लिम समुदाय में तीन प्रमुख राजनीतिक ध्रुवीकरण

चुनाव पूर्व और चुनाव के दौरान दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं के बीच तीन प्रमुख सोच उभरकर सामने आई:

  1. भाजपा को हराने के लिए आप का समर्थन – यह वर्ग मानता था कि भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल की पार्टी ही एकमात्र मजबूत विकल्प है..
  2. AAP से नाराजगी और कांग्रेस की ओर झुकाव – 2020 के दंगों के दौरान आप की निष्क्रियता और तबलीगी जमात प्रकरण को लेकर कुछ मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की ओर आकर्षित हुए. वे राहुल गांधी को ‘वंचितों की आवाज’ मानते हुए कांग्रेस को समर्थन देना चाहते थे.
  3. AIMIM के प्रति आकर्षण – कुछ मतदाता मानते थे कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ही मुस्लिम मुद्दों को पूरी मजबूती से उठा सकती है. AIMIM ने CAA-NRC विरोध और 2020 के दंगों में गिरफ्तार लोगों को अपने उम्मीदवारों के रूप में खड़ा कर यह संदेश देने की कोशिश की कि वे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं.

भाजपा की ऐतिहासिक जीत और आप को झटका

दिल्ली चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित प्रदर्शन किया और 70 में से 48 सीटें जीतकर 27 साल बाद सत्ता में वापसी की. आम आदमी पार्टी मात्र 22 सीटों पर सिमट गई, जबकि कांग्रेस लगातार तीसरी बार शून्य पर रही। भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए गरीब, झुग्गी बस्तियों और मध्यम वर्ग के हिंदू वोटरों को बड़े स्तर पर अपने पक्ष में किया..

निष्कर्ष

दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में आप की पकड़ बरकरार है, लेकिन इस चुनाव में मुस्लिम वोटों का बिखराव साफ नजर आया. खासकर मुस्तफाबाद की हार ने संकेत दिया कि मुस्लिम मतदाता अब अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं. AIMIM और कांग्रेस की मौजूदगी ने इस चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक को प्रभावित किया.

भाजपा की यह जीत बताती है कि दिल्ली की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो चुका है, जहां पारंपरिक वोटिंग पैटर्न धीरे-धीरे बदल रहे हैं. अब यह देखना होगा कि आम आदमी पार्टी अपने कोर वोटर्स को फिर से एकजुट कर पाती है या नहीं, और भाजपा मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी पकड़ बना पाती है या नहीं.