Muslim World

कलाल/एराकी जाति की दिशा और दशा

मो.अबुल फरह

बिहार इन दिनों देश के केन्द्र में है, क्योंकि एक ऐतिहासिक काम को अपने अंजाम के क़रीब पहुंचा दिया.जिसमें जातियों की गणना के साथ सामाजिक ओर आर्थिक आधार पर किए गए सर्वे रिपोर्ट के सम्बंध में आम लोगों की जानकारी की लिए मीडिया के समक्ष रखा. लोगों ने इस रिपोर्ट को सबके सामने रखने और प्रकाशित करने के लिए नीतीश कुमार को बधाई दी. कुछ लोगों, संगठनों और दलों ने सर्वे और उसके रिपोर्ट पर आपत्ति जतायी हैं.
मुसलमानों का सर्वे को संतुलित नहीं माना जा रहा, क्योंकि यह बात पहले से ही कही जाती रही है कि मुसलमान 16% और यादव 11%है .वहीं राजनेताओं की समझ यह थी कि मुसलमान 11% और यादव 16% है. सर्वे ने इस तथ्य को गलत साबित कर दिया. बिहार का मुसलमान अंदाजे से खुद को 25% कहने से हिचकिचाता नहीं था. इस सर्वे के आने से उस मिथ को भी धक्का लगा है.

जहां तक बिहार के धार्मिक आधार पर संख्या का विभाजन का प्रश्न है तो हिंदू 81.99% प्रतिशन का अंक प्राप्त कर सबसे बुलंदी पर है. जबकि हिन्दुओं में कई ऐसे पंथ पाए जाते हैं जो स्वयं को हिन्दू मानने को तैयार नहीं हैं फिर भी धार्मिक आधार पर इतनी जबरदस्त अंक प्राप्त करना कहीं न कहीं सर्वे करने वालों के क्रिया कलाप पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है ?

मुसलमानों का बिहार की आबादी में धार्मिक तौर पर विभाजन में 17.70 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए. मुसलमानों की कई जातियां इस सर्वे में विलुप्त पाई गई हैं उसका विस्थापन मुसलमानों की किस बिरादरी में किया गया है यह जांच का विषय है.

ज्ञात हो , बिहार में कलाल/ एराकी जाति 2% के क़रीब है, लेकिन धार्मिक विभाजन में इसे स्पष्ट तौर पर प्रकाशित नहीं करना बे ईमानी के सिवा कुछ नहीं. जहां तक कलाल/एराकी जाति को बनिया में शामिल कर गिने जाने का प्रश्न है तो यह संजोग और कानूनी बाध्यता नहीं, वरन यह एक प्रयोग है . कलाल बिरादरी को नज़र अंदाज़ कर भी दिया जाए तो वोटिंग ट्रेंड पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

अगर मान भी लिया जाए कि बनिया के ब्रैकेट में कलाल/एराकी जाति की गणना अगर 1%के आस पास है तब भी लोकतंत्र के जीवन का आधार यह समाज बन भी सकता है. सत्ता को चुनावती भी दे सकता है. मुमकिन हो गणना कर्मियों ने मनमाने तौर पर जातियों को अन्य जातियों में गणना कर दिए हों क्योंकि जब मुसलमानों के नाम सही नहीं लिख पाते तो जाति का नाम क्योंकर सही लिख पाए होंगे.

यह भी मालूम हो कि कलाल जाति नहीं बल्कि एक स्वतंत्र कबीला है जिससे कई कबीले निर्माण पाए.कलाल/एराकी बिरादरी व्यवसाय तो करती है लेकिन बनिया जाति से दूर तक सम्बंध नहीं है-

कलाल/एराकी बिरादरी शताब्दियों से जुल्म ओर ना इंसाफी की शिकार रही है. सरकार केन्द्र की हो या राज्यों की इस बिरादरी की सुधि ले और इसके उत्थान के लिए कार्य किए जाएं. इस बिरादरी को राजनैतिक,सामाजिक और आर्थिक अवसरों में सम्यक विकास के लिए अनुसूचीत जन जाति में शामिल कर विकसित समाज बनने का विशेष अवसर प्रदान किए जाएं.

लेखक: अखिल भारतीय कलाल/एराकी महासभा, नई दिल्ली