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मथुरा की शाही ईदगाह के सर्वे का क्या है विवाद जिसपर इलाहाबाद हाईकोर्ट आज करेगा फैसला ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

मथुरा की शाही ईदगाह में सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट गुरूवार को अपना फैसला सुना सकता है. जस्टिस मयंक कुमार जैन की एकल पीठ दोपहर 2 बजे फैसला सुनाएगी. याचिका पर सुनवाई के बाद जस्टिस मयंक कुमार जैन ने 16 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

गौरतलब है कि मथुरा विवाद से जुड़ी सभी 18 याचिकाओं पर इलाहाबाद हाई कोर्ट सुनवाई कर रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट गुरुवार को अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई करेगा. मथुरा विवाद की सुनवाई अयोध्या जन्मभूमि विवाद की तर्ज पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में हो रही है. आज कोर्ट इस याचिका पर ही फैसला सुनाएगी कि विवादित स्थल का कोर्ट कमिश्नर सर्वे कराया जा सकता है या नहीं.

बता दें कि श्री कृष्ण वीरजन्मभूमि की ओर से आदेश 26 नियम 9 के तहत एक आवेदन उच्च न्यायालय में दायर किया गया है. याचिका में एडवोकेट कमिश्नर से सर्वे कराने की मांग की गई है. जिस पर शाही ईदगाह मस्जिद और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील ने आपत्ति दाखिल की है.

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भगवान श्री कृष्ण विराजमान कटरा केशोदेव नामक संस्था के नाम से रंजन अग्निहोत्री की ओर से हाईकोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामला दायर किया गया है. याचिकाओं में 12 अक्टूबर 1968 के समझौते को अवैध बताया गया है. इसके साथ ही समझौते के तहत शाही ईदगाह मस्जिद को दी गई 13.37 एकड़ जमीन भगवान श्री कृष्ण को सौंपने की मांग की गई है. याचिका में शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग की गई है.

याचिका में कुल चार पक्ष बनाए गए हैं. शाही ईदगाह मस्जिद, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, श्रीकृष्ण जन्मभूमि शिव सिंह और श्रीकृष्ण जन्मभूमि सिंह को पक्षकार बनाया गया है. याचिका पर श्री कृष्ण वीरजमन संस्था की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने हाई कोर्ट में बहस की.

50 साल पुराना विवाद

एबीपी न्यूज ने इस विवाद पर विस्तृत रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित की है, रिपोर्ट के अनुसार, ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना का है. इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनी है. वहीं, 2.37 एकड़ हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. हिंदू पक्ष का दावा है ये पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि की है.

विवाद की शुरुआत लगभग 350 साल पहले हुई थी, जब दिल्ली की गद्दी पर औरंगजेब का शासन हुआ करता था. 1670 में औरंगजेब ने मथुरा की श्रीकृष्ण जन्म स्थान को तोड़ने का आदेश जारी किया था. इसके एक साल पहले ही काशी के मंदिर को तोड़ा गया था.

बादशाह के आदेश पर अमल हुआ और मंदिर को धराशायी कर दिया गया. इसके बाद इसी जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई. औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़े जाने की पुष्टि इतालवी यात्री निकोलस मनूची के लेख से भी होती है. मनूची मुगल दरबार में आया था. यात्रा के बारे में उसने अपनी किताब में जानकारी दी है. मुगलों के इतिहास का जिक्र करते हुए उसने यह भी बताया कि रमजान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को नष्ट किया गया.

मराठों ने वापस ली जमीन

मस्जिद बनने के बाद ये जमीन मुसलमानों के हाथ में चली गई और करीब 100 साल तक यहां हिंदुओं का प्रवेश वर्जित रहा, जब तक मुगलों और मराठों में युद्ध नहीं हुआ. 1770 के मुगल-मराठा युद्ध में बाजी मराठों के हाथ लगी और उन्होंने यहां फिर से मंदिर बनवाया. उस समय तक यह केशवदेव मंदिर हुआ करता था. मराठे मंदिर बनवाकर चले गए. मंदिर धीरे-धीरे कमजोर होता रहा और एक भूकंप की चपेट आकर गिर गया.

इसी बीच 19वीं सदी में अंग्रेज मथुरा पहुंचे और 1815 में इस जमीन को नीलाम कर दिया. काशी के राजा ने जमीन को खरीद लिया. राजा की इच्छा यहां मंदिर बनवाने की थी लेकिन मंदिर बन न सका. करीब 100 साल तक जगह ऐसे ही खाली रही और इसे लेकर विवाद शुरू हो गया. मुस्लिम पक्ष का कहना था कि इस जमीन में मुस्लिम पक्ष का भी हिस्सा था.

ट्रस्ट के पास आई जमीन

1944 में महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ जब ये जमीन मशहूर उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने खरीद ली. सौदा राजा पटनीमल के वारिसों के साथ हुआ था. इस दौरान देश आजाद हुआ और 1951 से श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना जिसे ये जमीन दे दी गई. ट्रस्ट ने चंदे के पैसे से 1953 में जमीन पर मंदिर का निर्माण शुरू किया जो 1958 तक चलता रहा. 1958 में एक नई संस्था बनी, जिसका नाम था श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान.

इसी संस्था ने 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ एक समझौता किया. इसमें कहा गया कि जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहेंगे. यहां ध्यान देने की बात ये है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने ये समझौता किया था. इस संस्था का जन्मभूमि पर कोई कानूनी दावा नहीं है. श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का कहना है कि वह इस समझौते को नहीं मानता.

काशी-मथुरा बाकी है

मंदिर-मस्जिद को लेकर दावे तो काफी समय से किए जा रहे थे लेकिन अयोध्या पर फैसले के बाद इस मामले को हवा मिलनी शुरू हुई. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया, उसके बाद से ही काशी और मथुरा को लेकर आवाज उठनी शुरू हो गई.

‘अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’, इस नारे को बार-बार दोहराया गया. काशी में ज्ञानवापी को लेकर याचिका दायर की गई जिसके बाद वहां सर्वे का आदेश दिया गया. इसके बाद मथुरा को लेकर भी हलचल तेज हुई. दिसम्बर 2022 में वो दिन आ गया जब कोर्ट ने पहली बार सर्वे का आदेश दिया.

डरने की वजह और भी है

ऐसा नहीं है कि सिर्फ कोर्ट के आदेश से ही लोग डरे हुए हैं. डरने की और वजहें भी हैं. दो साल पहले काशी में कॉरिडोर को बनाए जाने को लेकर जब जोर-शोर से काम चल रहा था तो उसके साथ ही विरोध के स्वर भी उठ रहे थे कि यहां से स्थानीय दुकानदारों को हटा दिया जा रहा है.

मथुरा में भी ऐसा ही डर है. योगी सरकार ने काशी की तरह ही मथुरा के वृंदावन में भी बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने का एलान किया है. इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है. विरोध करने वालों में पुजारी से लेकर व्यापारी तक सभी हैं. श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास रहने वाले व्यापारियों में भी डर है कि कॉरिडोर का काम शुरू हुआ तो आज नहीं कल, उनका भी नंबर आना है.