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क्या हेमंत बिस्व सरमा जैसे नेता मुसलमानों को बीजेपी से दूर रखना चाहते हैं ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

बीजेपी नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ कई बार मुसलमानों को बीजेपी के करीब लाने का प्रयास कर चुके हैं. पीएम मोदी ने यहां तक कहा था कि मुसलमान बीजेपी दफ्तर आएं और इस पर काबिज हो जाएं. मगर, हेमंत बिस्व सरमा और पश्चिम बंगाल के कुछ बीजेपी नेता विवादास्पद बयान देकर ऐसा माहौल बना देते हैं कि बीजेपी के करीब जा रहा मुसलमान पैर पीछे खींच लेता है।

इस लोकसभा चुनाव में यह नजारा आम दिखा. बीजेपी के पाले से मुस्लिम वोट खिसकता देखकर नरेंद्र मोदी भी जनसभाओं में मुसलमानों को ठोस पहुंचाने वाले बयान देने लगे थे. अब जब कि लोकसभा चुनाव संपन्न हुए करीब दो महीने हो चुके हैं और हरियाणा, जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में चुनाव की तैयारी चल रही है, मुसलमानों को करीब लाने की जगह सरमा जैसे बीजेपी नेता विवादास्पद बयान देकर उन्हें फिर भड़काने में लगे हैं.

गुरुग्राम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले बीजेपी उम्मीदवार राव इंद्रजीत सिंह को मुस्लिम बहुल मेवात से करीब 75 हजार वोट मिले थे. इसी तरह, कश्मीर में अंदरखाने बीजेपी समर्थित एक प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब हुआ था. मगर, सरमा जैसे लोग बने-बनाए इस रिश्ते को बिगाड़ने में लगे हैं. पश्चिम बंगाल के एक बीजेपी नेता ने तो नारा दिया है- “सबका साथ, सबका विकास नहीं, जो हमारे साथ उसका विकास.”

इसी क्रम में असम के बीजेपी नेता और प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा इस सूबे की मुस्लिम आबादी को लेकर भ्रम फैला रहे हैं. आरोप है कि आबादी के अलग-अलग आंकड़े पेश कर हिंदुओं में भय पैदा करना चाहते हैं.

इसकी एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने तीखी आलोचना की है. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी कहते सुनाई दे रहे हैं, “असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा भारत के शीर्ष 5 झूठों में से एक हैं.”

उन्होंने अपने बयान में आगे कहा, “असम में 1951 में मुस्लिम आबादी 24.68 प्रतिशत थी। वह झूठे हैं और असम के मुसलमानों से नफरत करते हैं। 1951 में, असम था, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय नहीं थे। 2001 में, मुस्लिम आबादी 30.92 प्रतिशत थी और 2011 की जनगणना में, 34.22 प्रतिशत थी। उनके झूठ के कारण, पूरा प्रशासन मुसलमानों से नफरत करता है.”

ओवैसी के इस बयान वाला वीडियो न्यूज एजेंसी पीटीआई ने भी जारी किया है. हालांकि, बीजेपी की ओर से सरमा के इस बयान को लेकर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, पर भारतीय मुसलमान बिदका हुआ है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि उनके राज्य में बदलती जनसांख्यिकी एक बड़ी चिंता का विषय है. असम में मुस्लिम आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि को रेखांकित करते हुए सरमा ने कहा कि उनके लिए जनसांख्यिकी में बदलाव का मुद्दा राजनीतिक नहीं बल्कि “जीवन और मृत्यु का मामला” है.

हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा,”जनसांख्यिकी में बदलाव मेरे लिए एक बड़ा मुद्दा है. असम में, मुस्लिम आबादी आज 40 प्रतिशत तक पहुँच गई है. 1951 में, यह 12 प्रतिशत थी.”उन्होंने कहा, “हमने कई जिले खो दिए हैं. यह मेरे लिए कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है. यह मेरे लिए जीवन और मृत्यु का मामला है.” हिमंत बिस्वा सरमा की टिप्पणी पर कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिन्होंने उन पर “भूलने की बीमारी” से पीड़ित होने का आरोप लगाया.

लोकसभा चुनाव के प्रचार का जिक्र करते हुए गोगोई ने कहा कि सिर्फ दो महीने पहले, सरमा को असम के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में “नाचते और गाते” देखा गया था.सरमा पर कटाक्ष करते हुए गोगोई ने कहा कि जब वह भाजपा के लिए वोट मांग रहे थे तो यह “जीवन-मरण का मामला” नहीं था.

गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब हिमंत सरमा ने जनसंख्या वृद्धि के खिलाफ बात की है. खासकर मुस्लिम समुदाय के बीच.जून 2021 में, राज्य में सरकार बनाने के तुरंत बाद, हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा, “जनसंख्या विस्फोट असम में अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच आर्थिक असमानताओं और गरीबी का मूल कारण है.”

उन्होंने राज्य के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में लोगों के बीच जनसंख्या नियंत्रण के बारे में जागरूकता पैदा करने और गर्भनिरोधक वितरित करने की योजना की घोषणा की थी.पिछले साल, असम सरकार ने कहा था कि वह राज्य के पांच स्वदेशी मुस्लिम समुदायों का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करेगी ताकि उनके उत्थान के लिए उपाय किए जा सकें.

असम के मुख्यमंत्री ने अवैध अप्रवासियों के मुद्दे पर आगे बात की है और राज्य में अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई की है.मार्च में नागरिकता संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद, हिमंत बिस्वा सरमा ने बंगाली भाषी बांग्लादेशी मुसलमानों, जिन्हें ‘मिया’ के नाम से जाना जाता है, को राज्य में स्वदेशी लोगों के रूप में मान्यता देने के लिए शर्तें रखीं.

हिमंत सरमा ने जोर देकर कहा कि असम में मिया समुदाय को मान्यता देने के लिए, समुदाय के लोगों को कुछ सांस्कृतिक प्रथाओं और मानदंडों का पालन करना होगा. असम के मुख्यमंत्री ने परिवार के आकार को दो बच्चों तक सीमित करने, बहुविवाह को रोकने और नाबालिग बेटियों की शादी को रोकने जैसी कुछ शर्तों पर जोर दिया, जो पूर्वोत्तर राज्य में मिया समुदाय को स्वदेशी के रूप में मान्यता देने के लिए आवश्यक हैं.