बचपन से कुर्बानी तक: जानिए हज़रत इब्राहीम (अ.स.) की ज़िंदगी के तमाम अहम वाक़ियात
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मैसाह

हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) जब केवल सात वर्ष के थे, तब उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और अल्लाह की रहमत के तहत अपने पिता से उस लकड़ी के भगवान के बारे में प्रश्न किया, जिसे वे अपने हाथों से बना रहे थे। उन्हें यह विचार हास्यास्पद लगा।
जन्म और मूर्तिपूजा का विरोध
हज़रत इब्राहीम (अ.स.) का जन्म बाबुल (Babylon) में हुआ था, जहाँ लगभग सभी लोग मूर्तिपूजा करते थे। बचपन से ही वह बहुत समझदार थे और अल्लाह (सुब्हानहु व तआला) की विशेष हिफ़ाज़त में थे। उन्होंने अपने पिता से पूछा कि क्या वह स्वयं अपने हाथों से भगवान बना सकते हैं? और इस बात पर हँस दिए।
सच्चे रब की तलाश
एक रात, हज़रत इब्राहीम (अ.स.) पहाड़ पर गए और आसमान में सितारों और चाँद की ओर देखा, जिन्हें लोग पूजते थे। लेकिन जब देखा कि ये केवल कुछ समय के लिए ही दिखाई देते हैं, तो वे समझ गए कि ये अल्लाह नहीं हो सकते।
फिर अल्लाह (स.व.त.) ने उन्हें सच्चाई की राह दिखाई और वे जान गए कि केवल एक ही सच्चा रब है — अल्लाह। इसके बाद उन्होंने अपने पिता और कौम को इस्लाम की ओर बुलाया और कहा कि केवल अल्लाह की इबादत की जाए। लेकिन लोगों ने उनका विरोध किया और उन्हें सज़ा देने की धमकी दी।
मूर्तियों का विध्वंस
एक दिन जब सब लोग त्यौहार मनाने के लिए मंदिर से बाहर थे, इब्राहीम (अ.स.) ने मंदिर में रखी सभी मूर्तियों को तोड़ दिया। लेकिन उन्होंने सबसे बड़ी मूर्ति को नहीं तोड़ा, बल्कि उसी के कंधे पर कुल्हाड़ी रख दी।
अगले दिन जब लोग वापस लौटे और मूर्तियाँ टूटी हुई देखीं, तो उन्होंने इब्राहीम (अ.स.) पर शक किया। जब उनसे पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि शायद उसी बड़ी मूर्ति ने बाकी सबको तोड़ा है, क्योंकि कुल्हाड़ी उसी के पास थी।
लोग समझ तो गए कि मूर्तियाँ कुछ नहीं कर सकतीं, लेकिन फिर भी उन्होंने इब्राहीम (अ.स.) को आग में जलाने का निर्णय लिया।
अल्लाह का करिश्मा – आग बनी ठंडी
इब्राहीम (अ.स.) को लोहे की जंजीरों में बांधकर एक विशाल आग में फेंकने की तैयारी की गई। आग इतनी प्रचंड थी कि उसके पास जाना भी मुश्किल था।
फेंके जाने से पहले जिबरील (अ.स.) उनके पास आए और पूछा कि क्या उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत है। इब्राहीम (अ.स.) ने कहा, “मुझे बस अल्लाह की रज़ा चाहिए।”
जैसे ही उन्हें आग में फेंका गया, अल्लाह ने आग को आदेश दिया:
“ऐ आग! इब्राहीम के लिए ठंडी और सलामती वाली बन जा।”
और वे बिना किसी नुकसान के बाहर आ गए।
राजा से सामना और दलील
बाबुल के राजा को जब यह घटना पता चली, तो वह क्रोधित हो गया और खुद को भगवान कहने लगा। उसने इब्राहीम (अ.स.) से पूछा कि तुम्हारा रब ऐसा क्या कर सकता है जो मैं नहीं कर सकता?
इब्राहीम (अ.स.) ने कहा, “मेरा रब जीवन देता है और मृत्यु देता है।”
राजा ने कहा, “मैं भी यह कर सकता हूँ — किसी को मार सकता हूँ या किसी को क्षमा कर सकता हूँ।”
फिर इब्राहीम (अ.स.) ने कहा, “अल्लाह सूरज को पूरब से उगाता है, क्या तुम उसे पश्चिम से उगा सकते हो?”
राजा निरुत्तर रह गया।
पहला ईमान लाने वाला – लूत (अ.स.) और सारा (र.अ.)
इतनी दावत और मेहनत के बाद केवल दो लोग ईमान लाए — एक थे उनके भतीजे हज़रत लूत (अ.स.) और दूसरी थीं हज़रत सारा (र.अ.), जो बाद में उनकी पत्नी बनीं।
इसके बाद तीनों मिस्र की ओर रवाना हुए, वहाँ भी लोगों को इस्लाम की ओर बुलाते और नेकी करते रहे।
मृतकों को जीवित करने का करिश्मा
एक दिन इब्राहीम (अ.स.) ने अल्लाह (स.व.त.) से पूछा कि आप क़यामत के दिन कैसे मृतकों को जीवित करेंगे?
अल्लाह ने आदेश दिया कि चार पक्षियों को लो, उन्हें टुकड़ों में काटो और मिलाकर चार अलग-अलग पहाड़ियों पर रख दो।
फिर अल्लाह के नाम से उन्हें पुकारो — वे तुरंत जीवित होकर उड़ते हुए आ गए।
इस्माईल (अ.स.) का जन्म और ज़मज़म का पानी
मिस्र में एक अत्याचारी राजा ने हज़रत सारा (र.अ.) को नुकसान पहुँचाना चाहा, लेकिन हर बार अल्लाह ने उन्हें बचा लिया। राजा ने समझा कि वह कोई खास महिला हैं, और जाते-जाते अपनी दासी हाजिरा (र.अ.) को उनके साथ भेज दिया।
सारा (र.अ.) ने इब्राहीम (अ.स.) से कहा कि वह हाजिरा (र.अ.) से विवाह करें। उनसे हज़रत इस्माईल (अ.स.) पैदा हुए।
इब्राहीम (अ.स.), हाजिरा और इस्माईल को लेकर एक वीरान रेगिस्तान (मक्का) पहुँचे और वहाँ कुछ खाना-पानी देकर हजूर (अ.स.) दोनों को वहीं छोड़कर चले गए।
जब पानी खत्म हो गया, तो हाजिरा (र.अ.) सात बार सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच दौड़ीं। तभी एक फरिश्ता आया और ज़मज़म का पानी निकाला, जिससे वे और इस्माईल (अ.स.) को जीवन मिला।
कुर्बानी की घटना
एक रात इब्राहीम (अ.स.) ने सपना देखा कि वे अपने बेटे की कुरबानी कर रहे हैं। जब यह सपना लगातार आया, तो वे समझ गए कि यह अल्लाह का आदेश है।
उन्होंने इस्माईल (अ.स.) से कहा, तो बेटे ने जवाब दिया, “आप अल्लाह का हुक्म पूरा कीजिए।”
जब वह कुर्बानी के लिए तैयार हुए, तो शैतान ने उन्हें बहकाने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने उसे पत्थर मारकर भगा दिया (इसी याद में हज में “रमी” की रस्म होती है)।
जैसे ही उन्होंने छुरी चलाई, अल्लाह ने एक दुम्बा (भेड़) भेज दिया और बेटे को बचा लिया।
काबा का निर्माण और अंत
बाद में अल्लाह ने इब्राहीम (अ.स.) और उनके बेटे इस्माईल (अ.स.) को काबा शरीफ बनाने का आदेश दिया। उन्होंने जन्नत से आए काले पत्थर को आधार बनाकर निर्माण शुरू किया।
जिस पत्थर पर खड़े होकर इब्राहीम (अ.स.) ने निर्माण किया, वह आज भी “मक़ाम-ए-इब्राहीम” के नाम से मौजूद है।
निधन
हज़रत इब्राहीम (अ.स.) ने 175 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली और उनका मक़बरा हेब्रोन (फिलिस्तीन) में मौजूद है।
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