मस्जिदों में कैसे सेहत बनाई जाए इस्तांबुल से सीखें भारत के मुसलमान
Table of Contents
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली इस्तांबोल
बात-बे-बात मुस्लिम और अरब देशों की ओर ताकने वाले भारतीय मुसलमानों को मजहबी बातों के अलावा उनकी अच्छी बातें भी ग्रहण करनी चाहिए. इस दिशा में इस्तांबुल की मस्जिदों ने एक बेहतर उदाहरण पेश किया है. वहां की मस्जिदें नमाजियों को सेहतमंद रहने की गुर सिखा रही हैं.
तुर्की की मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है, ‘‘इस्तांबुल की मस्जिदों में नमाज और इबादत के बाद ‘वर्कआउट’ का सेशन चलता है. वह भी बुजुर्ग और सेवानिवृत्त पुरुषों के लिए.
भारत में मस्जिदों की अहमियत सिवाए नमाज के और कुछ नहीं. यहां तक कि जरूरी बातांे पर भी चर्चा बहुत कम होती. जुम्मे के खुतबे में मौजूद मसलों पर चर्चा करने की जगह कुछ आयें या किताबों में अरबी में छपी खुतबों को पढ़कर रस्म अदायगी कर ली जाती है. जबकि इसके अलावा भी मस्जिदों का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है. यह विभिन्न देशों की मस्जिदें हमें सिखा रही हैं.
ALSO READ रमजान 2024 में उमराह के लिए कितनी तैयार है मक्का की ग्रैंड मस्जिद
शारजाह में रमज़ान 2024 : ‘Joud’ सहायता अभियान, 13.6 करोड़ दिरहम जुटाने का लक्ष्य
सकून चाहिए तो पढ़ें अस्ताग़फिरुल्लाह, इसकी आठ महत्वपूर्ण बातें
इस्तांबुल की मस्जिदों ने भी इसी कड़ी में एक उदहारण पेश किया है. नमाज के बाद यहां चांदी सी बालों वाले बुजुर्गों को फिटनेस का प्रशिक्षक दिया जा रहा है. इस फिटनेस सेशन में इमाम भी शामिल होते हैं.
11 मस्जिद में शुरू किया गया वर्जिश का पाॅइलेट प्रोजेक्ट
बताते हैं कि पाइलेट प्रोजेक्ट के तौर पर इस साल जनवरी में इस्तांबुल के बागसीलर जिले की 11 मस्जिदों में फिटनेस क्लाॅस शुरू की गई थी. धीरे-धीरे यह खूब पाॅपुलर हो गई है. अन्य मस्जिदों में भी लोगों को अधिक व्यायाम करने की सलाह दी जाने लगी है.
चूंकि तुर्की की महिलाएं भी भारतीय महिलाओं की तरह अक्सर घरों में नमाज अदा करती हैं, इस लिए फिल्हाल उन्हें इसका लाभ नहीं मिल रहा है.तुर्की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, फज्र की नमाज के बाद, मस्जिद परिसर सेहत को लेकर चलाई जा रही गतिविधियों से गुलजार हो जाते हंै. बुजुर्ग नमाजियों को युवा फिटनेस ट्रेनर प्रशिक्षण देते दिखाई देते हैं.
वर्जिश से कम किया जा सकता है बुढ़ापे का असर
बता दें कि उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ जाती हैं. मगर शरीर चलता रहे तो जल्दी बुढ़ापा हावी नहीं होता. यही नहीं कई तरह की बीमारियों को भी रोका जा सकता है. बशर्ते की फिटनेस को दिनचर्या में शामिल किया जाए.
तुर्की के मस्जिद प्रशासन ने इस बात को गांठ बांध ली है, इसलिए अपने यहां मस्जिदों में फिटनेस की क्लास शुरू की है. तुर्की मीडिया के एक वायरल वीडियो में फिटनेस ट्रेनर को उपासकों को व्यायाम कराते हुए दिखाया गया है, जिसमें बुजुर्ग नमाजी उनके निर्देशों का पालन कर रहे हैं.
बताया गया कि जैसे ही एक मस्जिद का यह वीडियो वायरल हुआ, इसकी न केवल प्रशंसा की गई, कई अन्य इबादत गाहों में भी इसकी शुरूआत कर दी गई. साथ ही यहां मस्जिदों को सामुदायिक केंद्रों के रूप में भी बदलने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस्तांबुल की अन्य मस्जिदों ने इन कार्यक्रमों का अनुकरण प्रारंभ कर दिया है. आध्यात्मिक के साथ विभिन्न आवश्यकताओं के तहत गतिविधि चलाई जा रही हैं.
वार्जिश में क्या सिखाया जा रहा है ?
अभी वर्जिश करने वाले बुजुर्ग नमाजियों की सर्वाधिक भीड़ इस्तांबुल की अब्दुलहामिद हान मस्जिद के मोटे फिरोजा कालीन पर लग रही है.
इस दौरान उन्हें घुटनों को ऊपर उठाने, कंधों को घुमाने और 15 मिनट तक एक ही जगह पर उछलते-कूदते हरने की ट्रेनिंग दी जा रही है. इस दौरान उन्हें खुश रहने की भी हिदायत दी जाती है.जनवरी में यह फिटनेस पहल इस्तांबुल के घटनी आबादी वाले बागसीलर जिले की 11 मस्जिदों में शुरू किया गया था.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस्तांबुल के गरीब इलाकों के लोग अन्य बेहतर जिलों के लोगों की तुलना में कम पिफट रहते हैं.फ्रांस 24 की रिपोर्ट के अनुसार, 66 वर्षीय मस्जिद जाने वाले सेर्वेट अरिसी ने बताया,“एक व्यक्ति एक वाहन की तरह है. जैसे हमें वाहन के रखरखाव की आवश्यकता होती है, वैसे ही जब हम खेल खेलते हैं तो हमारे अंगों में सुधार होता है.’’
बुजुर्ग नमाजिश वर्जिश कर हैं खुश
अरिसी के बगल में खड़े समूह के अनुभवी 75 वर्षीय हुसैन काया ने कहा कि वह मेरे शरीर के हर हिस्से को हिलाने में प्रसन्न है.इससे फर्क पड़ता है. दाढ़ी वाले पूर्व टैक्सी ड्राइवर ने कहा, उसके माथे पर उसकी काली टोपी के नीचे झुर्रियाँ पड़ गई थीं.
इमाम, बुलेंट सिनार, इस बात से प्रसन्न हैं कि उनकी मस्जिद अब एक इबादतगाह से अधिक हो गई है, जो पड़ोसी मस्जिदों से फिटनेस के प्रति जागरूक वफादारों को आकर्षित करती है.इमाम ने कहा, जब हम ये अभ्यास करते हैं, तो उनकी इबादत की गुणवत्ता में सुधार होता है.वे अधिक आसानी से आगे बढ़ते हैं. उनका कायाकल्प हो गया है.”
खेलों के प्रति मुसलमानों का दृष्टिकोण अक्सर धार्मिक, सांस्कृतिक और जातीय कारकों से निर्धारित होता है.सामान्य तौर पर, इस्लाम अच्छे स्वास्थ्य और फिटनेस को बढ़ावा देता है. यही नहीं इस्लाम पुरुषों और महिलाओं, दोनों को स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करता है.