ईद-उल-अजहा पर ग़ाज़ा को इज़राइल का ‘ख़ूनी तोहफ़ा’, 75 फ़िलिस्तीनियों की मौत, मुस्लिम देश खामोश
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, रियाद
इज़राइल ने एक बार फिर ग़ाज़ा के निरीह लोगों पर बमबारी कर ईद-उल-अजहा जैसे पाक मौके को मातम में बदल दिया। ईद के दूसरे दिन हुए इन हमलों में कम से कम 75 फ़िलिस्तीनी मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। इस दर्दनाक त्रासदी पर भी अधिकांश मुस्लिम देशों की चुप्पी ने वैश्विक मुस्लिम समाज को झकझोर कर रख दिया है।
ग़ाज़ा सिटी के सबरा मोहल्ले में एक रिहायशी इमारत पर इज़राइली हवाई हमले ने पूरे परिवारों को तबाह कर दिया। बिना किसी चेतावनी के की गई इस बमबारी में कम से कम 16 लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, मारे गए। ग़ाज़ा की नागरिक सुरक्षा सेवा ने इसे “पूर्ण नरसंहार” करार दिया है। प्रवक्ता महमूद बेसेल के अनुसार, इमारत पूरी तरह नागरिकों से भरी हुई थी और अब भी 85 से अधिक लोग मलबे में दबे हुए हैं।
ईद के दिन भोजन की तलाश में निकले आठ फ़िलिस्तीनी अमेरिका समर्थित एक सहायता केंद्र पर इज़राइली हमले का शिकार हो गए। अल-शिफा अस्पताल में लाए गए शवों की तादाद इतनी थी कि वहां मातम का सन्नाटा पसरा रहा।

ग़ाज़ा में राहत कार्य चला रही संस्थाओं के मुताबिक, अमेरिका-समर्थित जीएचएफ (ग्लोबल ह्यूमैनिटी फाउंडेशन) ने कहा है कि लगातार इज़राइली हमलों के चलते सहायता वितरण केंद्र बंद रहेंगे, जिससे हालात और बदतर हो सकते हैं। इसके पहले एक हमले में ही उनके 42 वॉलंटियर्स मारे जा चुके हैं।
इस सबके बीच सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि संयुक्त राष्ट्र पहले ही ग़ाज़ा के छोटे बच्चों में तीव्र कुपोषण की चेतावनी दे चुका है, और अब सहायता बंद होने से मानवीय संकट और गहराने की आशंका है।
इज़राइल की यह बर्बरता उस समय हुई जब पूरी दुनिया के मुसलमान ईद-उल-अजहा मना रहे थे। ग़ाज़ा के कई इलाकों में लाशें बिछ गईं, शोक में डूबे लोग कब्रों की तलाश में भटकते रहे, लेकिन मुस्लिम बहुल देशों और अरब लीग की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई।
ग़ाज़ा की यह तबाही न केवल फिलिस्तीनियों का, बल्कि मानवता का भी शोक है। सवाल यह है कि क्या दुनिया अब भी आंखें मूंदे रहेगी? क्या मुस्लिम नेतृत्व अब भी मौन साधे रहेगा?
यह नरसंहार कब रुकेगा?