जमात-ए-इस्लामी हिंद की ईद-उल-फितर पर रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों से रिश्ता बेहतर बनाने की सलाह
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
जमात-ए-इस्लामी हिंद के केंद्रीय शिक्षा बोड के निदेशक सैयद तनवीर अहमद ने ईद के शुभ अवसर पर एक बयान में मुसलमानों को अपने पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों से बेहतर रिश्ता बनाने की सलाह दी है. उन्हांेने कहा है कि अपने बच्चों के साथ ईद मनाते समय कुछ बातों का विशेष ख्याल रखंे.
उन्होंने कहा कि आप अपने बच्चों के साथ ईदगाह जाते हैं, वहां नमाज अदा करते हैं, वहां से लौटने के बाद बच्चों को अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिलने के लिए प्रोत्साहित करें. अगर व्यक्तिगत रूप से मिलने की संभावना नहीं है, तो उन्हें फोन करके ईद की बधाई दें. इससे बच्चों में दयालु होने और रिश्तों को मजबूत करने का स्वभाव पैदा होगा.
उन्होंने कहा कि ऐसा करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि कुछ बच्चे रिश्तेदारों से बात करने और उनसे मिलने से कतराते हैं. जब माता-पिता उन्हें अपने रिश्तेदारों से बात कराएंगे, तो उनकी झिझक दूर होगी. वे मानसिक और भावनात्मक रूप से उनके करीब होंग.रिश्तेदारों के अलावा पड़ोसियों से भी मिलने के मूड में होना चाहिए. जिस तरह आप अपने बच्चों को रिश्तेदारों से मिलने भेजते हैं, उसी तरह उन्हें बधाई देने के लिए बुलाएं. इसी तरह, पड़ोसियों से मिलने के लिए भेजें.
उन्होंने कहा कि अगर मालिक पड़ोस के घर में मौजूद नहीं है तो उन्हें फोन करके बधाई दें. यद्यपि आधुनिक समय में भौतिकवाद ने मानवतावाद को दबा दिया है. यही कारण है कि बहुत से लोगों के अपने पड़ोसियों के साथ सुखद संबंध नहीं हैं. अपने बच्चों को उनसे मिलने के लिए भेजें और उन्हें बेहतर रिश्ते बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करें.
सैयद तनवीर अहमद ने कहा कि इस अवसर पर रिश्तेदारों और पड़ोसियों के करीब आने का एक सबसे अच्छा तरीका है उन्हें उपहार देना. उन्हें शिर, खुरमा के साथ दावत देेना. खासकर अगर कोई गैर-मुस्लिम आपका पड़ोसी है, तो उन्हें ईद की खुशी में शामिल होने के लिए मिठाई दें. इससे उन्हें एक प्रभावी और सकारात्मक संदेश जाएगा. इसका प्रभाव बहुत सुखद होगा. बच्चे भी बहुत कुछ सीखेंगे.
उन्होंने अभिभावकों को अपने बच्चों को उनके शिक्षकों के पास भेजने की भी सलाह दी. सैयद तनवीर अहमद ने कहा कि एक दशक पहले तक, जब समाज में त्योहार का अवसर आता था, तो बच्चे अपने शिक्षकों के घर जाते थे. माता-पिता इस संबंध में विशेष ध्यान दें. यदि शिक्षक सुलभ दूरी पर रहते हैं और बच्चे स्वयं जा सकते हैं तो जाएं. यदि वे स्वयं नहीं जा सकते तो माता-पिता में से कोई भी उन्हें शिक्षकों से मिलने ले जाएं. इससे बच्चों के मन में शिक्षकों के प्रति सम्मान का भाव पैदा होगा.
सैयद तनवीर अहमद ने कहा कि इस समय माता-पिता के लिए यह भी जरूरी है कि वे अपने बच्चों के मनोविज्ञान का ध्यान रखें. देखा गया है कि महंगे कपड़े पहनने के बाद कई बच्चों में घमंड की झलक देखने को मिलती है. दूसरे बच्चों से तुलना करने लगते हैं कि मेरी ड्रेस महंगी है, तुम्हारी सस्ती है. हालांकि यह मूड बड़ों को देखकर ही बच्चों में बनता है. अक्सर यह आदत गृहिणियों में होती है. वो अधिक तुलनात्मक होती हैं और दूसरों पर अपने मूल्यवान वस्त्र होने का घमंड करती हैं. वो बच्चों में भी यह आदत डाल देते हैं, जो ठीक नहीं है. हमारे शरीयत ने किसी भी रूप में घमंड को स्वीकार नहीं किया है. अगर बच्चे इस तरह का गर्व महसूस करते हैं तो उन्हें यह बात समझाएं और उन्हें इसके नुकसान से अवगत कराएं. खासकर ईद के मौके पर जब सब एक-दूसरे को खुशियां बांट रहे हों तो शेखी बघार कर दूसरों को दुखी न करें. एक बात याद रखें कि माता-पिता की हर हरकत को बच्चे अपने जीवन में अपनाते हैं. इसलिए माता-पिता कोई भी भूमिका निभाने से पहले यह सोच लें कि कोई है जो उनके दिलो-दिमाग में उनकी हरकतों को सहेज रहा है और आने वाले जीवन में भी वही अपनाने जा रहा है. इसलिए ईद के दिन माता-पिता को चाहिए कि घर में जो भी उनसे मिलने आए, उनके साथ माता-पिता समान व्यवहार करे.