Culture

अरबी साहित्य में आधुनिक चेतना की प्रतिनिधि हैं जॉर्डन की लेखिका डॉ. सना शालान

जब शब्द जन्म लेते हैं, तब चमत्कार भी जन्म लेता है। और जब विचार की गहराई अपने आप में उतरती है, तब आत्माएँ उभरती हैं जो अमरता की दिशा में बढ़ती हैं। उन्हीं अमर आत्माओं में एक नाम है – डॉ. सना अश-शालान। वह केवल एक महिला लेखक नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी कथा-शिल्पी हैं जो जीवन के रहस्यों की स्मृति में उतरती हैं, और मानवीय अनुभवों को पहचान की कविता में ढालती हैं।

डॉ. सना अश-शालान न केवल जॉर्डन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर हैं, बल्कि वह उस अकादमिक संस्था की भीतरू भाषा भी हैं – एक ऐसी अंतर्ध्वनि जो ज्ञान के रूढ़ ढांचे को तोड़ती है और जीवन के गर्भ से नया बौद्धिक स्पंदन पैदा करती है। वह न तो विचारधारा के भ्रम में उलझती हैं और न ही प्रकाश के पीछे भागती हैं। बल्कि वह अपनी रोशनी खुद बनाती हैं – एक ऐसी भाषा से जो प्रार्थनाओं जैसी लगती है, और वाक्यों से जो प्रेम-पाठ की तरह झंकृत होते हैं।

ALSO READ फिलिस्तीनी लेखिका सना अल-शालान को ज़हरत अल-मदीन पुरस्कार, समाना एसोसिएशन ने अम्मान में किया सम्मानित

सना जब लिखती हैं, तो महज़ लेखन नहीं करतीं, बल्कि बोध की नवनक्शा रचती हैं। उनके लेखन में शब्द संप्रेषण मात्र नहीं रहते, बल्कि उपचार, मुक्ति और पुनर्जन्म का माध्यम बन जाते हैं। नज़ार क़ब्बानी की तरह, जिनकी कविताएँ इंद्रियों को भिगोती हैं और आत्मा को सान देती हैं, वैसे ही सना अश-शालान के उपन्यास बरसात की तरह गिरते हैं – और पाठक की चेतना को चौंकाते नहीं, बल्कि जगाते हैं

उनकी कलम ठंडी यांत्रिकता से नहीं लिखती, बल्कि वह उन हृदयों से जन्मी है जो अन्याय की जंगलों में आग जलाना जानते हैं। वह सपनों के युग में एक खिड़की खोलती हैं, जहां से उम्मीद की रोशनी झाँकती है।

बच्चों के लिए भी उतनी ही सजीव

जब वह बच्चों के लिए लिखती हैं, तो किसी ऊँचे आसन से नहीं बोलतीं, बल्कि उनके साथ एक घास के मैदान में उतर जाती हैं – जहाँ से वह मासूम अर्थों को बटोरती हैं, और साहित्य को ऐसी आत्मा देती हैं जो पाठकों को केवल आनंद नहीं, बल्कि संस्कार भी देती है।

डॉ. सना अश-शालान की लेखनी को पृष्ठों की गिनती से नहीं, बल्कि उन आत्माओं से मापा जाना चाहिए जिन्हें उसने झकझोरा है। उनके शब्दों ने जिन प्रश्नों को जन्म दिया है, वे पाठकों को आईने की तरह खुद से मिलवाते हैं – और यह मिलन केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव जैसा होता है।

जैसे महमूद दरवेश कहते हैं – “मुझे माँ की रोटी और स्पर्श की तलब है,” वैसे ही हम सना के साहित्य में माँ की तरह की रचनात्मक ऊष्मा पाते हैं – सादा, लेकिन संतोषजनक; गहराई लिए हुए, पर कभी भी बनावटी नहीं।

हर विधा में चमकता नाम

उनकी कहानियाँ गाती हैं, नाटक प्रतिरोध करते हैं, और उपन्यास पहचान की परतों को वैसे ही खोलते हैं जैसे कोई खानसीर अपने औजारों से धरती के गर्भ को। उनके हर काम में पुरस्कार छिपा होता है, भले ही उन्हें औपचारिक सम्मान न भी मिले – पर पाठकों के दिलों में उन्होंने दर्जनों पदक जीते हैं।

डॉ. सना अश-शालान प्रकाश के पीछे नहीं भागतीं, बल्कि उससे दीया बनाती हैं, जो ग़ालिब, मَي ज़ियादह, और ग़ादः अल-सम्मान जैसे नामों की परंपरा में आगे बढ़ता है – पर एक ऐसे कदमों से जो केवल उन्हीं की छाया से मेल खाते हैं।

वह साहित्य की आत्मा हैं

वह अकादमिक दुनिया से ऊपर उठकर साहित्य को मानवता की साँस बना देती हैं। उनकी उपस्थिति, विश्वविद्यालय की कक्षा में एक व्याख्याता की नहीं, बल्कि एक चलती हुई कविता की तरह होती है – एक ऐसा शब्द जो अपनी जगह ढूँढने में सफर करता रहा, और अंततः काग़ज़ पर उतर कर पाठकों के हृदय में घर बना लेता है।


सना अश-शालान केवल एक लेखिका नहीं, एक आंदोलन हैं – उस भाषा का आंदोलन जो जब सादगी और गहराई से मिलती है, तो एक नई दुनिया रचती है।

उनका नाम उन लेखकों की सूची में चमकता है जिन्होंने अरबी साहित्य को एक नई चेतना दी है – और जिनकी लेखनी सिर्फ पढ़ी नहीं जाती, बल्कि महसूस की जाती है


लेख: प्रो. डॉ. अब्दुल मुनइम हम्मत (सूडान)
हिंदी रूपांतरण व प्रस्तुति: मुस्लिम नाउ विशेष टीम
श्रृंखला: अरबी साहित्य की नई आवाज़ें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *