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Kargil Vijay Diwas: मुस्लिम शहीदों की वीरता को सलाम

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

मुसलमानों को अपनी उपलब्धियां सहेजनी नहीं आतीं. ‘करगिल विजय दिवस’ ने इसका एहसास शिद्दत से कराया. पाकिस्तान से लोहा लेते हुए कितने भारतीय सैनिकों ने अपनी जानें गंवाईं, यह आंकड़े तो मौजूद हैं, मगर उनमें मुस्लिम कितने थे, यह ढूंढे नहीं मिला.

बावजूद इसके बता दूं कि कम से कम 24 मुस्लिम सैनिक ऐसे थे जिन्होंने न केवल अपने सीने पर दुश्मन फौज की गोलियां खाईं, फ्रंट पर रहकर पाकिस्तानी सेना को पीछे जाने को मजबूर किया. स्थिति यह है कि आज उनका कोई नाम लेवा भी नहीं.

  • करगिल विजय दिवस: हर साल 26 जुलाई को करगिल युद्ध में भारत की जीत का जश्न मनाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है.
  • मुस्लिम शहीद: करगिल युद्ध में शहीद हुए 527 भारतीय सैनिकों में से 24 मुस्लिम सैनिक थे जिन्होंने अपनी जान की कुर्बानी दी.
  • युद्ध की शुरुआत: 3 मई 1999 को भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल युद्ध शुरू हुआ, जब पाकिस्तानी सेना ने करगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था.
  • सैनिकों की भूमिका: भारतीय सेना ने करगिल को मुक्त कराने के लिए ढाई लाख से अधिक गोले दागे, पांच हजार से अधिक बम फायर किए और वायु सेना ने 580 उड़ानें भरीं.
  • पहला हमला: 13 जून 1999 को भारतीय सेना के 17 सैनिक तब शहीद हुए जब वे तोलोलिंग की पहाड़ियों में तिरंगा फहरा रहे थे.
  • मुस्लिम सैनिकों का योगदान: मुस्लिम सैनिकों ने ग्रेनेडियर्स, गनर और राइफलमैन के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. छह मुस्लिम ग्रेनेडियर्स शहीद हुए थे.
  • प्रमुख मुस्लिम शहीद: कैप्टन हनीफ, एमएच अनिरूद्दीन, हवलदार अब्दुल करीम-ए, हवलदार अब्दुल करीम-बी, नायक डीएम खान, लांस नायक अहमद अली, जीए खान, लियाकत अली, जाकिर हुसैन, एसएम वली, नसीर अहमद, एमआई खान, रियासत अली, आबिल अली खान, जुबैर अहमद, असन मोहम्मद, अब्दुल नाजिर, मंज़ूर अहमद, मोहम्मद आलम, मोहम्मद फरीद, और रियास अली प्रमुख मुस्लिम शहीदों में शामिल हैं.
  • अनदेखा योगदान: सोशल मीडिया और मीडिया में मुस्लिम सैनिकों के योगदान का जिक्र नहीं मिलता, जबकि अन्य समुदायों ने अपने शहीदों का सम्मान किया है.
  • समुदाय की भूमिका: मुस्लिम संगठनों को भी अपने शहीदों को याद करने और उनकी जानकारी इकट्ठा करने की जरूरत है, ताकि उनकी कौम भी गर्व महसूस कर सके.

समुद्र तल से करीब 18000 फीट ऊंचाई पर करगिल की पहाड़ियों में ठिठुरा देने वाली ठंड के बीच लड़ी गई हिंदुस्तान-पाकिस्तान की जंग में देश के 527 सैनिक शहीद हुए थे और 1363 घायल. इनमें अधिकतर नॉर्दन लाइट इंफेंट्री के सैनिक थे. पाकिस्तान ने अप्रैल के अंत में अपने 5000 सैनिकों की मदद से करगिल पर कब्जा किया था. इसके बटालिक सेक्टर के गारकॉन गांव का चरवाहा ताशी नाम्ग्याल एक दिन अपने खोए याक को ढूंढता हुआ जब उस ओर पहुंचा, तो उसने पाकिस्तानी फौजियों की गतिविधियां देखीं, जिसकी जानकारी तत्काल स्थानीय सेना अधिकारियों को दे दी.

इसके बाद करगिल से खदेड़ने के लिए भारतीय और पाकिस्तानी सेना के बीच 3 मई 1999 से युद्ध शुरू हुआ. इस दौरान भारत की ओर से ढाई लाख से अधिक गोले दागे गए। पांच हजार से अधिक बम फायर हुए। तीन सौ के करीब मोर्टार, तोपें, रॉकेट चले.

वायु सेना के जहाजों ने 580 उड़ानें भरीं तथा 2500 से ज्यादा बार भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर को आकाश में चक्कर काटने पड़े। तब जाकर करगिल की पहाड़ियां पाकिस्तानी सेना से मुक्त हुईं. 14 जुलाई 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने करगिल मुक्त करने का ऐलान किया और प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को ‘करगिल विजय दिवस’ मनाने की घोषणा की.

इस क्रम में सर्वप्रथम हमारे 17 सैनिक 13 जून 1999 को तब शहीद हुए जब वे तोलोलिंग की पहाड़ियों में तिरंगा फहरा रहे थे. इस हमले में 40 भारतीय सैनिक भी घायल हुए थे, जिनमें कई मुस्लिम थे.

हालांकि देश के लिए मर-मिटने वाले सैनिकों का कोई मजहब नहीं होता. बावजूद इसके सभी धर्म, समुदाय, जाति के लोग इसका हिसाब तो रखते ही हैं कि किसी बड़ी कामयाबी में उनके लोगों की क्या भूमिका रही?

पंजाब के लोगों ने तो बाकायदा गुरुमुखी में करगिल में शहीद हुए अपने प्रदेश के जवानों की पूरी सूची सोशल मीडिया पर डाल रखी है. इस युद्ध में कितने मुस्लिम जवानों ने अपनी जिंदगियां न्योछावर कीं? इसका ब्योरा नहीं मिलता. सोशल मीडिया खंगालने पर ‘सबसे कम उम्र करगिल के शहीद’, ‘पांच शहीदों की कहानी’ और ‘करगिल विजय के 10 महत्वपूर्ण बिंदु’ जैसी अनेक कहानियां मिल जाएंगी, पर मुस्लिम सैनिकों के योग्यदान का कोई विवरण नहीं मिलेगा.
अनेक अखबारों एवं वेबसाइटों ने करगिल युद्ध पर फीचर, रिपोर्ट और लेख प्रकाशित किए, उनमें भी मुस्लिम सैनिकों के योगदान का जिक्र नहीं है, न ही किसी मुस्लिम जांबाज सैनिक की लड़ाई की दास्तां.

यहां तक कि मुस्लिम संगठनों को भी होश नहीं कि ‘विजय दिवस’ जैसे मौके पर ही सही, उन्हें याद करने के लिए नाम और तमाम जानकारियां इकट्ठी कर ली जाएं ताकि उनकी कौम भी गौरवान्वित महसूस कर सके. ऐसे तथ्यों से उनकी जुबान भी बंद की जा सकती है जो बात-बात पर मुसलमानों से भारत को बनाने और सुरक्षित रखने का हिसाब मांगते हैं.

बहरहाल, काफी ढूंढने पर 527 में 449 शहीदों के नाम मिले जिनमें 24 मुस्लिम सैनिक भी शामिल हैं। इस सूची में कैप्टन हनीफ, एमएच अनिरूद्दीन, हवलदार अब्दुल करीम-ए, हवलदार अब्दुल करीम-बी, नायक डीएम खान, लांस नायक हरियाणा के अहमद, यूपी के लांस नायक अहमद अली, जीके के लांस नायक जीए खान, लांस नायक लियाकत अली, हरियाणा के जाकिर हुसैन, आंध्र प्रदेश के एसएम वली व नसीर अहमद का जिक्र है। युद्ध के दौरान ग्रेनेडियर्स, गनर और राइफलमैन का अहम रोल होता है। ये आगे रहकर दुश्मन सेना से सीधा मोर्चा लेते हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि करगिल युद्ध में छह मुस्लिम ग्रेनेडियर्स भी दुश्मन देश से लोहा लेते शहीद हुए थे जिनमें एमआई खान, रियासत अली, आबिल अली खान, जाकिर हुसैन, जुबैर अहमद और असन मोहम्मद उल्लेखनीय हैं. युद्ध में आगे रहकर राइफलमैन केरल के अब्दुल नाजिर, राजपूताना राइफल्स के मंज़ूर अहमद, जम्मू-कश्मीर के मोहम्मद आलम और मोहम्मद फरीद तथा हरियाणा निवासी गनर रियास अली ने भी सीने पर गोलियां खाईं थीं.

बहुत ढूंढने के बाद भी और शहीदों और घायलों के नाम नहीं मिले. बावजूद इसके उम्मीद है कि उक्त सूची में भी मुस्लिम सैनिक खासी संख्या में अवश्य होंगे.